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भाजपा और कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं निकाय चुनाव

विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल कर सत्तासीन हुई भाजपा के साथ ही कांग्रेस के लिए निकाय चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।

By BhanuEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 11:00 AM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 01:19 PM (IST)
भाजपा और कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं निकाय चुनाव
भाजपा और कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं निकाय चुनाव

देहरादून, राज्य ब्यूरो। विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल कर सत्तासीन हुई भाजपा के लिए निकाय चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। यही स्थिति कांग्रेस के साथ भी है। दोनों ही पार्टियां इस चुनाव को आगामी लोकसभा चुनाव की रिहर्सल के रूप में देख रही हैं। 

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प्रदेश में सत्तारूढ़ होने के बाद पहली मर्तबा निकाय चुनाव में जनता के बीच गई भाजपा ने इसमें भी परचम लहराने के लिए पूरी ताकत झोंकी। मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के मंत्री, विधायक, सांसद और पार्टी के सभी पदाधिकारी माहभर से चुनाव अभियान में जुटे रहे। 

ऐसे में पार्टी की निगाहें रविवार को होने वाले मतदान पर टिक गई हैं कि उसकी मेहनत कितना रंग ला पाती है। हालांकि, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का दावा है कि राज्य में भाजपा के पक्ष में लहर है और निकाय चुनाव में जनता उसका ही साथ देगी। 

निकाय चुनाव इस लिहाज से भी अहम है कि विस चुनाव के बाद पहली बार भाजपा इतने बड़े स्तर पर जनता के बीच गई है। यही नहीं, निकाय चुनावों को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के रिहर्सल के तौर पर भी देखा जा रहा है। यही कारण भी रहा कि भाजपा ने निकाय चुनाव को लेकर पहले से ही कसरत भी प्रारंभ कर दी थी। 

इस कड़ी में दो बार सर्वे कराकर प्रत्याशियों के पैनल तय किए गए। हालांकि, टिकट वितरण के बाद भाजपा को कई जगह असंतोष का सामना करना पड़ा। हालांकि, पार्टी ने दावा किया कि डैमेज कंट्रोल कर लिया गया है, लेकिन कुछ निकायों में वह बगावती तेवर अपनाने वालों को मनाने में कामयाब नहीं हो पाई। 

अलबत्ता, ऐसे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाकर पार्टी ने संभलने की कोशिश की। बात चुनाव प्रचार की करें तो पार्टी ने माहभर से पूरी ताकत झोंकी हुई थी। नगर निगमों के चुनाव की जिम्मेदारी सीधे तौर पर मंत्रियों व वरिष्ठ पदाधिकारियों को सौंपी गई। 

साथ ही विधायकों व पार्टीजनों को अन्य निकायों में। खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय व प्रांतीय नेताओं के साथ ही सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री प्रचार में जुटे हुए थे। दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी भी प्रचार के लिए उत्तराखंड पहुंचे। यही नहीं, पार्टी ने पूरा फोकस बूथों पर केंद्रित रखा। 

बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां सौंपी गई। इनके जरिये प्रत्येक बूथ के एक-एक मतदाता से संपर्क का दावा किया गया। पार्टी की कोशिश है कि अधिक से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करें। 

उधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा कि भाजपा विकास की राजनीति करती है और जनता भाजपा के साथ है। उन्होंने दावा किया कि निकाय चुनाव में राज्यभर में भाजपा का परचम लहराएगा।

शहरी सरकार की जंग में कांग्रेस की अग्निपरीक्षा

सात नगर निगमों समेत 84 नगर निकायों के लिए चुनाव कांग्रेस के दावों और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह की अग्नि परीक्षा होंगे। पहले हैवीवेट प्रत्याशियों के चयन और तकरीबन महीनेभर तक चले चुनाव प्रचार में प्रमुख प्रतिपक्षी दल ने सत्तारूढ़ भाजपा की घेराबंदी में पूरी ताकत झोंकी। 

पूरे प्रचार अभियान के दौरान कांग्रेस ने भाजपा पर हमले का कोई मौका नहीं चूका। चुनावी समर में भाजपा के सामने मजबूती से खम ठोक रही कांग्रेस अंदरखाने डैमेज कंट्रोल को कितना काबू कर पाई और चुनाव के लिए उसकी रणनीति कितनी कारगर रही, ये सबकुछ इस चुनाव में तय हो जाएगा। 

लोकसभा चुनाव से ऐन पहले हो रहे नगर निकाय चुनाव कांग्रेस के लिए कई मायनों में अहम हैं। इसे पार्टी के लिए सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। निकाय चुनाव ये भी तय करेंगे कि प्रदेश की सियासी जमीन में कांग्रेस कितनी मजबूती से खम ठोक रही है। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी किस हद तक भाजपा की बेचैनी बढ़ाने जा रही है। 

निकाय चुनाव के नतीजे कांग्रेस और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह दोनों के लिए ही कसौटी बने हैं। अंदरखाने पार्टी पर ये दबाव ही रहा कि उसने निकाय चुनाव की बिसात पर सधे अंदाज में कदम बढ़ाए। यही वजह है कि प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह पहले स्तर पर ही मजबूत प्रत्याशियों के तौर पर कांग्रेस की ओर से सजाई गई फील्डिंग का ही असर रहा कि इस चुनाव में सत्तारूढ़ दल को निकायवार खासतौर पर सात नगर निगमों में मजबूती से जुटना पड़ा है। 

बीती 15 अक्टूबर को निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद से ही कांग्रेस निकायों के प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव की रणनीति को कारगर तरीके से अंजाम देने को हाथ-पांव मार रही है। प्रत्याशियों के चयन के दौरान बगावत के सुर भी फूटे। बागियों पर शुरुआती दौर में नरम तेवर अपनाने के बाद पार्टी ने अंतिम दौर में पहुंचने तक बागियों व उनके समर्थकों समेत 70 से अधिक लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। 

पहले डैमेज कंट्रोल और फिर आत्मविश्वास के साथ बड़ी संख्या में बागियों से निपटने की कार्रवाई के बूते पार्टी ने संदेश तो दिया है, लेकिन चुनावी जंग में पार्टी की रणनीति कितना कारगर रही, रविवार को मतदाता इसका पूरा हिसाब-किताब कर देंगे।

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