बिरजू महाराज का देहरादून में आशियाना बनाने का सपना रह गया अधूरा, जानिए दून से क्या था उनका नाता
कथक नर्तक पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज का देहरादून से गहरा नाता था। आपको बता दें कि उनका देहरादून में आशियाना बनाने का सपना था जो अधूरा रह गया। बिरजू महाराज के पिता देहरादून के राजपुर रोड पर कथक सिखाया करते थे।
जागरण संवाददाता, देहरादून। भारतीय नृत्य कला को विश्व पटल पर विशिष्ट पहचान दिलाने वाले कथक नर्तक पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज का उत्तराखंड और देहरादून से गहरा नाता रहा। उनके पिता अच्छन महाराज (जगन्नाथ प्रसाद) यहां राजपुर रोड पर कथक सिखाया करते थे। पंडित बिरजू महाराज पहली बार चार वर्ष की उम्र में देहरादून आए थे। इसके बाद उनका यहां आना-जाना लगातार बना रहा। दून की शांत वादियां उन्हें खूब भाती थीं। वह यहां आशियाना बनाना चाहते थे और उत्तराखंड के बच्चों को कथक का प्रशिक्षण देना चाहते थे। वर्ष 2019 में अपनी यह दिली इच्छा खुद पंडित बिरजू महाराज ने जाहिर की थी, जब वह दून आए थे। बदकिस्मती से नियति को कुछ और ही मंजूर था। सोमवार को सांसों की डोर के साथ उनका यह सपना भी टूट गया। उनके निधन से दून के कथक प्रेमियों में शोक की लहर छाई है। उन्होंने कथक के लिए पंडित बिरजू महाराज के दिए योगदान को कभी न भूलने वाला बताया।
कथक को घर-घर पहुंचाने का दिलाया था संकल्प
पंडित बिरजू महाराज अंतिम बार जून 2019 में देहरादून आए थे। तब उनके साथ शिष्या शाश्वती सेन भी थीं। वह रायपुर में आयोजित गुरु प्रणाम कार्यशाला में शामिल होने आए थे। तीन दिवसीय इस कार्यशाला में उन्होंने विभिन्न जिलों से आए कथक प्रेमियों को घर-घर कथक पहुंचाने का संकल्प दिलाया था। नर्तकों को कथक की बारीकियां भी सिखाई थीं। इस कार्यशाला का हिस्सा रहीं देहरादून की कथक नर्तक संध्या जोशी बताती हैं कि 20 से 22 जून तक हुए इस आयोजन में पंडित बिरजू महाराज ने हर कथक नर्तक से बात की और उन्हें इस नृत्य कला की बारीकियों से अवगत कराया। उनका कहना था कि कथक सिर्फ नृत्य नहीं, बल्कि पारंपरिक कला को आगे बढ़ाने का मंच है। कथक को इतने सरल ढंग से आमजन तक पहुंचाया जाए कि वह इसका आनंद लें।
कथक को आसान बनाकर सबकी पसंद बना दिया
एकलव्य थिएटर देहरादून के निदेशक अखिलेश नारायण ने पंडित बिरजू महाराज के निधन को रंगमंच के लिए अपूरणीय क्षति बताया। वहीं, संभव मंच परिवार के निदेशक अभिषेक मैंदोला का कहना है कि उन्होंने कथक को आसान बनाकर सबकी पसंद बना दिया। देहरादून निवासी शास्त्रीय गायक हिमांशु दरमोड़ा का कहना है कि कथक को आमजन तक आसानी से पहुंचाने की कला सिर्फ पंडित बिरजू महाराज में थी।
नृत्य कला सिखाने के लिए गुरुकुल खोलने की थी प्रबल इच्छा
स्पिक मैके की कोआर्डिनेटर विद्या वासन बताती हैं कि पंडित बिरजू महाराज की दून में नृत्य कला सिखाने के लिए गुरुकुल खोलने की प्रबल इच्छा थी। अप्रैल 2012 में जब पंडित बिरजू महाराज देहरादून आए थे, तब भी उन्होंने अपनी यह इच्छा प्रकट की थी। तब वह इस संबंध में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से भी मिले थे। उन्होंने वेल्हम ब्वायज स्कूल, दून यूनिवर्सिटी, डीएवी पब्लिक स्कूल, टचवुड स्कूल में कथक की प्रस्तुति दी थी और बच्चों से मुलाकात भी की थी। इससे पहले उन्होंने वर्ष 2009 में एफआरआइ के आडिटोरियम में प्रस्तुति दी थी।