देहरादून में भिक्षावृत्ति पर नहीं लग पाई रोक, शासन- प्रशासन हुआ बेबस
देहरादून में भिक्षावृत्ति पर रोक नहीं लग पाई है। देहरादून में इनका जमावड़ा कारगी चौक प्रिंस चौक दर्शन लाल चौक शिमला बाइपास राजपुर रोड रिस्पना पुल पर लगा रहता है। पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी प्रतिदिन यहां से गुजरते हैं लेकिन इनके आगे बेबस हैं।
जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड में भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध के बावजूद इस पर रोक नहीं लग पा रही है। सड़क, फुटपाथ, मंदिर और माल के आसपास बच्चे भीख मांगते हुए नजर आते हैं। कुछ बच्चे पेट पालने तो कुछ नशा करने के लिए भीख मांग रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी प्रतिदिन इन्हीं जगहों से गुजरते हैं, लेकिन भिक्षावृत्ति के आगे शासन-प्रशासन बेबस है।
कारगी चौक, प्रिंस चौक, दर्शन लाल चौक, शिमला बाइपास, राजपुर रोड, रिस्पना पुल सहित कुछ धार्मिक स्थल ऐसे हैं जहां पर इनका जमावड़ा लगा रहता है। उनकी नजरें हमेशा होटल या दुकानों से निकलने वाले व्यक्तियों को तलाशती रहती हैं।
भीख मांगने वाले बच्चों के साथ कुछ महिलाएं भी नजर आती हैं, लेकिन न तो प्रशासन कोई अभियान चलाता है और न ही पुलिस। साल में एक-दो बार अभियान चलाकर महज खानापूर्ति की जाती है। जबकि सच्चाई यह है कि शहर में हर जगह बच्चे भीख मांगते हुए नजर आते हैं।
भीख के पैसों से कर रहे नशा
सड़कों पर भिक्षावृत्ति के धंधे में बच्चे ही नहीं, बल्कि कुछ ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो भिक्षावृत्ति में मिले कुछ रुपयों से शाम को नशा खरीद लेते हैं। कुछ बच्चों को भिक्षावृत्ति की आड़ में नशा भी सप्लाई करवाया जा रहा है। समाजसेवी संस्थाओं की ओर से रेस्क्यू किए गए बच्चों से जब पूछताछ की गई तो उन्होंने यह बात बताई।
मंत्री-विधायकों तक इन बच्चों के स्वजन के संपर्क
सड़कों पर भिक्षावृत्ति में लिप्त इन बच्चों के स्वजन की पहुंच मंत्री और विधायकों तक है। मैक संस्था व बचपन बचाओ संस्था ने एक बच्चे को रेस्क्यू किया। हैरानी की बात यह है कि थोड़ी देर बाद एक विधायक बच्चे को छोड़ने के लिए फोन करने लगे। पूछताछ में बच्चे ने बताया कि दिन में वह भिक्षावृत्ति करता है और इसके साथ ही खुद नशा करने के साथ नशे की सप्लाई भी करता है।
उत्तराखंड में भीख देना व लेना अपराध
प्रदेश सरकार ने भिक्षावृत्ति पर रोक के लिए भिक्षावृत्ति निषेध अधिनियम लागू किया हुआ है। इस अधिनियम में व्यवस्था है कि सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगना या देना, दोनों ही अपराध की श्रेणी में आएगा। इसमें बगैर वारंट गिरफ्तारी का भी प्रविधान है। दूसरी बार अपराध सिद्ध होने पर सजा की अवधि पांच साल तक हो सकती है।
पुलिस की ओर से चलाया गया है 'आपरेशन मुक्ति' अभियान
- 11 दिसंबर 2017 से 25 दिसंबर 2017 तक देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल व ऊधमसिंहनगर में अभियान चलाया गया। इस दौरान 393 बच्चों का सत्यापन किया गया, 388 बच्चों को सौंपा गया। पांच को बाल संरक्षण गृह और 60 बच्चों में स्कूलों में दाखिल करवाया गया।
- 25 फरवरी 2019 से 16 मार्च 2019 तक देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल व ऊधमसिंहनगर में अभियान चलाया गया। इस दौरान 342 बच्चों का सत्यापन किया गया, 337 बच्चों को स्वजन को सौंपा गया। पांच बच्चे बाल संरक्षण और 35 स्कूल भेजे गए।
- एक मई 2019 से 31 अक्टूबर तक देहरादून जिले में अभियान चलाया गया। इस दौरान 292 बच्चों का सत्यापन किया गया। इन सभी बच्चों को उनके स्वजन को सौंपे गए, जिनमें से 68 स्कूल भेजे गए।
- एक सितंबर 2019 से 31 अक्टूबर 2019 तक हरिद्वार जिले में अभियान चलायाकर 463 का सत्यापन किया गया। इनमें से 460 बच्चों को स्वजन को सौंपा गया। तीन को बाल संरक्षण और 275 का स्कूलों में दाखिला करवाया गया।
- एक फरवरी 2020 से 21 मार्च 2020 तक पूरे प्रदेश में अभियान चलाया गया। 736 बच्चों का सत्यापन किया गया, जिन्हें स्वजन को सौंपा गया। इनमें से 279 बच्चों का स्कूलों में दाखिला करवाया गया।
- एक मार्च 2021 से 30 मार्च 2021 तक पूरे प्रदेश में अभियान चलाया गया। 1865 बच्चों का सत्यापन किया गया जिसमें 713 बच्चों का स्कूलों में दाखिला करवाया गया। अभियान के तहत पांच के खिलाफ केस भी दर्ज करवाए गए।
क्या कहते हैं समाजसेवी
- जहांगीर आलम (मदर्स एंजल चिल्ड्रन सोसाइटी) का कहना है कि हमारी संस्था की ओर से भिक्षावृत्ति की रोकथाम के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। समय-समय पर रेस्क्यू अभियान भी चलाया जाता है, लेकिन शासन प्रशासन के पास ऐसे बच्चों के लिए उचित व्यवस्था ना होने के कारण ऐसे बच्चों का सही से पुनर्वास तक नहीं हो पा रहा है। भिक्षावृत्ति में लिप्त बच्चे नशा बेचने वालों के चंगुल में फंस कर पैसा कमाने के लालच में नशा कर भी रहे हैं और बेच भी रहे हैं। जोकि एक बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
- सुरेश उनियाल (राज्य समन्वयक बचपन बचाओ समिति) का कहना है कि समाज में भिक्षावृत्ति की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती ही जा रही है। बिहार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से परिवार यहां आकर बच्चों से भीख मंगवा रहे हैं। हमारे पास इतने संसाधन नहीं हैं कि इन बच्चों का पुनर्वास किया जाए। हमारी संस्थाओं की ओर से बच्चों को रेस्क्यू कर बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन बच्चों का परिवार आकर बच्चे को छुड़ा ले जाता है। भिक्षावृत्ति को खत्म करने के लिए बाल अधिकार संरक्षण समिति को ठोस कदम उठाने होंगे।