आशाओं ने किया सचिवालय कूच, पुलिस ने रोका तो सड़क पर ही दिया धरना
12 सूत्री मांगों का समाधान नहीं होने से आशाओं में राज्य सरकार के प्रति गुस्सा है।बुधवार को सीटू से संबद्ध आशा कार्यकत्री यूनियन से जुड़ी आशाओं ने बुधवार को फिर सचिवालय कूच किया। हालांकि पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर उन्हें सचिवालय से पहले ही रोक दिया।
जागरण संवाददाता, देहरादून: 12 सूत्री मांगों का समाधान नहीं होने से आशाओं में राज्य सरकार के प्रति गुस्सा है। मानदेय वृद्धि का शासनादेश जारी करने समेत अन्य लंबित मांगों को लेकर वह पिछले कई दिनों से आंदोलित हैं। सीटू से संबद्ध आशा कार्यकत्री यूनियन से जुड़ी आशाओं ने बुधवार को फिर सचिवालय कूच किया। हालांकि पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर उन्हें सचिवालय से पहले ही रोक दिया। इससे नाराज आशाओं ने सड़क पर धरना दिया। बाद में सीएम के ओएसडी मौके पर पहुंचे और आशाओं से वार्ता की। हालांकि आशाएं लिखित आश्वासन देने की मांग पर अडिग रही। इस पर सीएम के ओएसडी वापस चले गए।
आशाएं पिछले लंबे समय से आंदोलित हैं। वह विधानसभा, सचिवालय व सीएम आवास कूच कर चुकी हैं। बीती नौ अगस्त को उनकी वार्ता स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी से भी हुई थी, जिनमें कुछ मांगों पर सहमति बनी थी। बाद में एनएचएम की मिशन निदेशक और स्वास्थ्य महानिदेशक से भी आशाओं की वार्ता हुई। यूनियन की प्रांतीय अध्यक्ष शिवा दुबे ने कहा कि वार्ता में जिन मांगों पर सहमति बनी थी, उन पर अब तक अमल नहीं किया गया है। ऐसे में आशाओं के पास आंदोलन जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि आशाओं के मानदेय में प्रतिमाह चार हजार रुपये की बढ़ोत्तरी करने का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया था, लेकिन इस पर भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
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उन्होंने मांग की है कि आशा वर्करों को भी सरकारी सेवक का दर्जा देकर न्यूनतम वेतन 21 हजार रुपये किया जाए। वेतन निर्धारण होने तक उन्हें स्कीम वर्कर की भांति सम्मानजनक मानदेय दिया जाए। कोविड कार्य में लगी आशाओं को 50 लाख का बीमा व स्वास्थ्य बीमा का लाभ दिया जाए। कोरोनाकाल में मृतक आशाओं के परिवार को 50 लाख का मुआवजा देने की मांग भी उन्होंने की है। सचिवालय कूच करने वालों में सुनीता चौहान, मीना जखमोला, आशा चौधरी, लोकेश देवी, मीनाक्षी, नीरा आदि शामिल रहीं।
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