रंग लाया विंग कमांडर अनुपमा जोशी का संघर्ष, सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन का रास्ता साफ
सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन का रास्ता साफ हो गया है। इस सपने को कहीं न कहीं दून निवासी विंग कमांडर (सेनि) अनुपमा जोशी ने पंख दिए।
देहरादून, जेएनएन। सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन का रास्ता साफ हो गया है। इस सपने को कहीं न कहीं दून निवासी विंग कमांडर (सेनि) अनुपमा जोशी ने पंख दिए। महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन की उनकी अब लड़ाई मुकाम तक आ पहुंची है।
देहरादून निवासी अनुपमा जोशी ने वायु सेना में रहते हुए महिला अधिकारियों के अधिकारों की आवाज बुलंद की और अपने संघर्ष को अंजाम तक पहुंचाया। अनुपमा का 1992 में एयर फोर्स में चयन हुआ। इसके बाद वह अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर आगे बढ़ती रहीं। पहले पांच साल की सर्विस के बाद आवाज उठाई तो उन्हें तीन साल और फिर तीन साल का एक्सटेंशन मिला। हर बार टुकड़ों में मिल रहे एक्सटेंशन से वह खिन्न आ गईं। वर्ष 2002 में उन्होंने इसके लिए अपने सीनियर अधिकारियों से लिखित में जवाब मांगा। यहां से कोई जवाब न मिलने पर चीफ को पत्र लिखकर जवाब मांगा।
कहीं से कोई जवाब नहीं आया तो फिर उन्होंने इसके लिए कोर्ट में मुकदमा करने की ठान ली। 2006 में उन्होंने कोर्ट में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने इस केस की सुनवाई में नई भर्तियों को स्थायी कमीशन देने का फैसला दिया, लेकिन सेवारत महिला अधिकारियों का फैसला नहीं हो पाया।
2008 में वह रिटायर हो गईं, लेकिन उनका संघर्ष जारी रहा। इस बीच कुछ अन्य अधिकारियों ने भी सेना में तैनात महिलाओं को स्थायी कमीशन देने को मामला दायर किया। इस पर हाईकोर्ट ने महिला अधिकारियों के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया। अनुपमा का कहना है कि वायुसेना ने यह निर्णय तभी मान लिया था। जिसके तहत सरकार ने महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने की अनुमति दी। हाईकोर्ट के फैसले के नौ साल बाद सरकार ने फरवरी 2019 में सेना के 10 विभागों में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने की नीति बनाई, लेकिन यह कह दिया कि मार्च 2019 के बाद से सर्विस में आने वाली महिला अफसरों को ही इसका फायदा मिलेगा।
इस तरह वे महिलाएं स्थायी कमीशन पाने से वंचित रह गईं, जिन्होंने इस मसले पर लंबे अरसे तक कानूनी लड़ाई लड़ी। पर अब सुप्रीम कोर्ट ने एक एतिहासिक फैसला दिया है।
अनुपमा का कहना है कि यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था। खैर, देर आए दुरुस्त आए। वह अभी देश के प्रतिष्ठित दून स्कूल में डायरेक्टर पर्सनल के पद पर कार्यरत हैं। इसके अलावा सहस्रधारा क्षेत्रीय ग्रामीण फाइनेंशियल सर्विस की संस्थापक और सीईओ भी हैं। जो अपनी 28 शाखाओं के माध्यम से पहाड़ के दूर-दराज इलाकों में वित्तीय सेवाएं बढ़ाने के लिए काम कर रही है।
सेना में महिलाओं का बढ़ेगा अधिमान
भारतीय सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन मिलने के बाद अब देश की आधी आबादी यानि महिलाएं सेना के शीर्ष पदों पर पहुंच सकेंगी और पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर सीमाओं में सजग प्रहरी बनेंगी।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन की मांग को सही ठहराया। प्रदेश के शीर्ष पदों में आसीन महिला अधिकारियों ने इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया। कहा कि महिलाएं उच्च शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, इसरो, खेलकूद, अभिनय, पर्वतारोहण जैसे कई क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित कर चुकी हैं अब सेना में उन्हें अपना हुनर दिखाने का मौका मिलेगा। महिला अधिकारियों ने इस प्रकार रखी अपनी राय।
(फोटो: प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल)
प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल (कुलपति, एचएनबी गढ़वाल विवि) का कहना है कि सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन मिलने से महिला और अधिक सशक्त होकर देश व समाज के विकास में भागीदार बनेगी। न्यायालय का यह निर्णय महिला अधिकारों के लिए ऐतिहासिक व स्वागतयोग्य फैसला है।
(फोटो: डॉ. अनिता रावत )
डॉ. अनिता रावत (कुलसचिव, यूटीयू) का कहना है कि महिलाएं आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। फिर सेना में स्थायी कमीशन की मांग न्यायोचित थी। इस फैसले के बाद देश की सीमाओं की सुरक्षा में महिलाओं की भागीदारी और अधिक प्रबल होगी।
(फोटो: डॉ. ममता सिंह )
डॉ. ममता सिंह (सहायक प्रवक्ता, एमकेपी कॉलेज) का कहना है कि यह एक ऐतिहासिक फैसला कहा जा सकता है। न्यायालय का फैसला महिला सशक्तीरण की राह में एक और बढ़ता कदम है। सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन मिलने के बाद देश और अधिक मजबूती से आगे बढ़ेगा।
(फोटो: डॉ. राखी उपाध्याय )
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डॉ. राखी उपाध्याय ( प्राध्यापक डीएवी पीजी कॉलेज) का कहना है कि सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन मिलने का रास्ता साफ हो गया है। अब महिलाएं देश के सामाजिक व आर्थिक विकास के साथ-साथ सीमा सुरक्षा की बड़ी जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेंगी।
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