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भांग की खेती हटते ही अध्यादेश को हरी झंडी, छह माह से लटका था मामला

प्रदेश में भांग की खेती को अनुमति देने के फैसले से सरकार के कदम पीछे खींचते ही उत्तराखंड जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम में संशोधन अध्यादेश अस्तित्व में आ गया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 04:48 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 04:48 PM (IST)
भांग की खेती हटते ही अध्यादेश को हरी झंडी, छह माह से लटका था मामला
भांग की खेती हटते ही अध्यादेश को हरी झंडी, छह माह से लटका था मामला

देहरादून, राज्य ब्यूरो। आखिरकार प्रदेश में भांग की खेती को अनुमति देने के फैसले से सरकार के कदम पीछे खींचते ही उत्तराखंड जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम में संशोधन अध्यादेश अस्तित्व में आ गया। राजभवन ने इस अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। आखिरकार छह महीने बाद ये अध्यादेश लागू हो गया। 

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दरअसल, इस अध्यादेश में भांग की खेती का प्रावधान जोड़े जाने के बाद इसे लेकर असमंजस गहरा गया था। मंत्रिमंडल ने बीती चार जून को बैठक कर प्रदेश में उद्योगों को बढ़ावा देने को 12.5 एकड़ से ज्यादा भूमि खरीदने या लीज पर देने की राह तैयार की थी। बाद में राजभवन से अध्यादेश को मंगाकर उसमें औषधीय उपयोग के लिए भांग की खेती के प्रावधान को जोड़ दिया गया।

इस प्रावधान के बाद राजभवन भी अध्यादेश को मंजूरी देने में ठिठका रहा। अब बीती 13 नवंबर को मंत्रिमंडल ने उक्त अध्यादेश से भांग की खेती को अनुमति देने का प्रावधान समाप्त करने का निर्णय लिया। इसके स्थान पर वैकल्पिक ऊर्जा, चाय बागान प्रसंस्करण, कृषि आदि को उक्त अध्यादेश का अंग बनाया गया है। उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम में संशोधन के तहत कृषि, बागवानी, वृक्षारोपण, मत्स्य पालन में 30 वर्षों के लिए पट्टा दिया जा सकेगा। 

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दरअसल इस अध्यादेश में प्रदेश के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्यान, पर्यटन आदि सेक्टर में औद्योगिक उपयोग के लिए 12.5 एकड़ से अधिक भूमि खरीदने या लीज पर देने को संबंधित एक्ट में संशोधन किया गया। इस अध्यादेश की धारा 156 में बागवानी, कृषि, पशुपालन आदि के लिए जमीन को 30 वर्ष के लिए लीज देने के प्रावधान का विस्तार कर इसमें सौर ऊर्जा और भांग की खेती को भी शामिल किया गया है। अब राजभवन ने उक्त अध्यादेश पर मुहर लगा दी है। 

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