एम्स ऋषिकेश के पीएचडी स्कॉलर रोहिताश की रिसर्च कोरोना से बचाव में आ सकती है काम, पढ़ें पूरी खबर
रोहिताश यादव का कोरोना को लेकर रिसर्च पेपर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोधपत्रिका जनरल ऑफ बायोमोलिक्यूलर स्ट्रक्चर और डायनामिक्स में प्रकाशित हुआ है।
ऋषिकेश, जेएनएन। एम्स ऋषिकेश के पीएचडी रिसर्च स्कॉलर रोहिताश यादव का कोरोना को लेकर रिसर्च पेपर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोधपत्रिका 'जनरल ऑफ बायोमोलिक्यूलर स्ट्रक्चर और डायनामिक्स' में प्रकाशित हुआ है। इसमें उन्होंने कोरोना वायरस के तीन संभावित ड्रग मॉलिक्यूल्स की पहचान की है। उनका यह शोधकार्य आगे चलकर इस महामारी से बचाव में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
कोरोना संक्रमण से लोगों को निजात दिलाने के लिए देश-दुनिया के अनेक संस्थान कोविड वैक्सीन की खोज में जुटे हुए हैं। देश के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक और शोधार्थी भी इस वायरस से बचाव की कोशिशों में जुटे हुए हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रविकांत ने रिसर्च स्कॉलर को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी है। निदेशक एम्स प्रो. रविकांत ने बताया कि संस्थागत स्तर पर शोधकार्य को बढ़ावा देने के लिए लगातार कार्य हो रहा है।
इसके लिए एम्स संस्थान के स्तर पर प्रतिवर्ष पांच करोड़ की धनराशि निर्गत की गई है, जिसे आने वाले समय में बढ़ाया जा सकता है। एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत ने बताया कि जिससे एम्स संस्थान में रिसर्च को बढ़ावा दिया जा सके और शोधार्थियों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जा सके। लिहाजा युवा वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्ताओं को रिसर्च की ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में देश ही नहीं दुनिया को लाभ मिल सके।
उन्होंने बताया कि अनुसंधानकर्ता रोहिताश यादव ने इस शोधकार्य में कोरोना वायरस के विभिन्न टारगेट की पहचान कर संभावित ड्रग को खोजा है, जिसे शोधपत्र में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ता यादव ने इस शोधपत्र में कोरोना वायरस के न्यूक्लियोकैप्सिट फास्फोप्रोटीन की तीन संभावित जगहों पर 8722 नए ड्रग मॉलिक्यूल्स और 265 संक्रामक बीमारियों के काम में आने वाली दवाओं के साथ अध्ययन किया है।
इसमें उन्होंने तीन संभावित ड्रग मॉलिक्यूल्स की पहचान की है। इनमें से दो नए ड्रग मोलिक्यूल हैं, जबकि एक एचआइवी संक्रमण में काम आने वाली दवा जिडोवुडीन है। जिडोवुडीन को कोरोना के उपचार की कड़ी में एक महत्वपूर्ण ड्रग के तौर पर देखा जा सकता है, जिसकी पुष्टि आगे चलकर क्लिनीकल ट्रायल से की जा सकती है।
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