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बायोलाजिकल ब्रेन डिसआर्डर है नशावृत्ति

बढ़ता तनाव शहरीकरण बेरोजगारी युवाओं में जोखिम लेने वाले व्यवहार का बढ़ना घरेलू कारण अथवा साथियों का दबाव वर्तमान दौर में नशावृत्ति का बड़ी वजह बन रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Aug 2021 07:57 PM (IST)Updated: Tue, 10 Aug 2021 07:57 PM (IST)
बायोलाजिकल ब्रेन डिसआर्डर है नशावृत्ति
बायोलाजिकल ब्रेन डिसआर्डर है नशावृत्ति

जागरण संवाददाता, ऋषिकेश :

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बढ़ता तनाव, शहरीकरण, बेरोजगारी, युवाओं में जोखिम लेने वाले व्यवहार का बढ़ना, घरेलू कारण अथवा साथियों का दबाव वर्तमान दौर में नशावृत्ति का बड़ी वजह बन रहा है। मगर यहां यह स्पष्ट करना जरुरी है कि नशा करते रहना एक प्रवृत्ति नहीं बल्कि एक बायोलाजिकल ब्रेन डिसआर्डर है। जिसमें व्यक्ति के दिमाग में कई अस्थायी व स्थायी बदलाव आते हैं तथा इस रोग से छुटकारा पाने के लिए उपचार की नितांत जरुरत पड़ती है। नशे के रोग को इलाज (दवाओं और स्टरक्चरड काउंसिलिग) की मदद से ठीक किया जा सकता है।

उत्तराखंड राज्य में सबसे अधिक किए जाने वाले नशों में शराब, कैनाबिस (गांजा, भांग आदि) अथवा ओपियाइड्स का नशा मुख्य है। नशे का समग्र उपचार मरीज को नशा मुक्ति केंद्रों में दाखिल कर या अस्पताल की ओपीडी के स्तर पर किया जाता है। वर्तमान में उपलब्ध संसाधनों मसलन बेहतर दवाओं और काउंसिलिग सुविधाओं के माध्यम से ज्यादातर मरीजों को नशा मुक्ति केंद्र व अस्पतालों में दाखिले की जरूरत नहीं पड़ती।

निदेशक एम्स ऋषिकेश पद्मश्री प्रो. डा. रवि कांत ने बताया कि एम्स में एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी (एटीएफ) का संचालन किया जा रहा है, जिसके तहत नशे के रोगियों को उच्चस्तरीय इलाज निश्शुल्क प्रदान किया जा रहा है। लिहाजा इस तरह के रोगों से ग्रसित मरीजों को समय रहते इस सुविधा का लाभ लेना चाहिए व अपने जीवन का संरक्षण करना चाहिए। ऐसा करने से वह अपनी खोई हुई सेहत व सामाजिक प्रतिष्ठा को भी फिर से पा सकते हैं और समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकते हैं।

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नशामुक्ति केंद्र का पंजीकृत होना जरूरी

मनोरोग विभाग के एडिशनल प्रोफेसर व (एटीएफ) के नोडल ऑफिसर डा. विशाल धीमान ने बताया कि नशे की बीमारी एक मानसिक रोग है, मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017, के अनुरूप हर नशा मुक्ति केंद्र को 'मेंटल हेल्थ एस्टेबलिसमेंट' के तौर पर रजिस्टर होना अनिवार्य है, जहां इस कानून के अनुरूप मरीज को पंजीकृत किया जाएगा। एक्ट के मुताबिक नशा मुक्ति केंद्रों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास सुचारु सुविधाओं और इलाज के लिए पर्याप्त जगह, बिस्तर, दवाएं, डाक्टर, नर्स, काउंसलर आदि उपलब्ध हैं अथवा नहीं। यह सुनिश्चित होने की स्थिति में ही यह मेंटल हेल्थ एस्टेबलिसमेंट की तरह कार्य कर सकते हैं। स्टेट मेंटल हेल्थ अथारिटी उत्तराखंड द्वारा सभी नशा मुक्ति केंद्रों का विनियमन किया जाना है तथा पंजीकरण करना है।


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