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गेहूं खरीद पर तीरथ सरकार के खाते में बड़ी उपलब्धि

कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के बीच उत्तराखंड की तीरथ सिंह रावत सरकार के खाते में गेहूं खरीद को लेकर नई उपलब्धि दर्ज हो गई। 10 सालों में पहली दफा राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की खरीद 14 लाख क्विंटल को पार कर गई।

By Sumit KumarEdited By: Published: Fri, 04 Jun 2021 05:10 AM (IST)Updated: Fri, 04 Jun 2021 06:32 AM (IST)
गेहूं खरीद पर तीरथ सरकार के खाते में बड़ी उपलब्धि
10 सालों में पहली दफा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की खरीद 14 लाख क्विंटल को पार कर गई।

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून: कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के बीच उत्तराखंड की तीरथ सिंह रावत सरकार के खाते में गेहूं खरीद को लेकर नई उपलब्धि दर्ज हो गई। 10 सालों में पहली दफा राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की खरीद 14 लाख क्विंटल को पार कर गई। 20594 किसानों ने सरकारी खरीद केंद्रों में गेहूं बेचा। पिछले साल यानी 2020-21 में सरकारी कीमत पर गेहूं बेचने के लिए महज 4656 किसान पहुंचे थे।

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केंद्र की मोदी सरकार और भाजपाशासित राज्यों पर एमएसपी पर गेहूं की खरीद को हतोत्साहित करने के किसानों और विपक्षी दलों के आरोपों के बीच सरकारी आंकड़े कुछ अलहदा कहानी बयां कर रहे हैं। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में किसान अच्छी संख्या में खरीद केंद्रों पर उमड़े तो सरकारी कीमत पर गेहूं की खरीद की तस्वीर ही बदल गई। हालांकि गेहूं की खरीद चालू रबी सत्र 2021-22 के लिए निर्धारित लक्ष्य से कम रही है। इस सत्र में कुल 22 लाख क्विंटल गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया था। प्रदेश में गेहूं की खरीद के लिए 241 केंद्र बनाए गए थे। गेहूं उत्पादन के लिहाज से ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले से ही गेहूं की सबसे ज्यादा खरीद होती है। इन दो जिलों में भी ऊधमसिंह नगर का पलड़ा बहुत ज्यादा भारी रहता है। यूं तो सरकारी कीमत पर खरीद का मकसद किसानों को मदद करना है, ताकि उन्हें इससे कम कीमत पर गेहूं बेचने को बाध्य न होना पड़े। बाजार में ज्यादा कीमत मिलने की स्थिति में सरकारी खरीद केंद्रों पर किसानों की आमद कम होती है। इस बार गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल रहा। प्रति क्विंटल 20 रुपये बोनस भी दिया गया।

पिछली कांग्रेस सरकार में भी कम हुई खरीद

उत्तराखंड में इस बार 30 मई तक विस्तारित की गई तारीख तक गेहूं की कुल खरीद 14.35 लाख क्विंटल हुई है। हकीकत ये है कि लक्ष्य से करीब 7.60 लाख क्विंटल पीछे रहने के बावजूद गेहूं की खरीद 10 सालों में सर्वाधिक हुई है। वर्ष 2012-13 में 13.93 लाख क्विंटल गेहूं की खरीद के बाद 2020-21 तक इस आंकड़े को छुआ नहीं जा सका। पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी गेहूं खरीद की ये स्थिति महज एक सत्र तक सिमटी रही और इसके आगे चार सत्रों में यह आंकड़ा 5.50 लाख क्विंटल के आंकड़े को छू नहीं पाया था।

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21,103 किसानों ने कराया था पंजीकरण

वर्ष 2017 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद दूसरे सत्र यानी 2018-19 में गेहूं खरीद 10.96 लाख क्विंटल तक पहुंची, लेकिन इसके बाद अगले दो सत्रों में यह नीचे गोता लगा गई। पिछले रबी सत्र 2020-21 में महज 3.86 लाख क्विंटल तक खरीद हो पाई। खरीद केंद्रों तक किसानों की आमद के मामले में भी 2021-22 अच्छा रहा है। गेहूं खरीद केंद्रों पर 21,103 किसानों ने पंजीकरण कराया था। 20594 किसानों ने गेहूं बेचा। 2020-21 में महज 4656 किसान, 2019-20 में 6886 किसान और 2018-19 में 15,987 किसानों ने गेहूं क्रय केंद्रों का रुख किया।

कोरोना की मार, 29 करोड़ बकाया

चालू सत्र में किसानों की आमद बढ़ने को सरकार राहत के रूप में देख रही है। खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले मंत्री बंशीधर भगत इस उपलब्धि के लिए विभाग की पीठ थपथपा चुके हैं। खाद्य सचिव सुशील कुमार ने बताया कि किसानों को अब तक गेहूं की कीमत के रूप में 256 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है। करीब 29 करोड़ बकाया है। गेहूं खरीद से जुड़े अधिकारियों और बैंकों में अधिकृत हस्ताक्षरियों के कोरोना संक्रमित होने की वजह से भुगतान में देरी हुई है। बकाया भुगतान जल्द करने के निर्देश दिए गए हैं।

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