चमोली आपदा के बाद अलकनंदा नदी में 16 गुना अधिक गाद पहुंची
सात फरवरी को निकली जलप्रलय में उतना नुकसान पानी के तेज बहाव से नहीं हुआ जितना उसके साथ बहकर आए मलबे से हुआ। मलबे का स्तर रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में इतना अधिक था कि उससे पानी में गाद की मात्रा में 16 गुना तक का इजाफा हो गया था।
सुमन सेमवाल, देहरादून। ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र से सात फरवरी को निकली जलप्रलय में उतना नुकसान पानी के तेज बहाव से नहीं हुआ, जितना उसके साथ बहकर या उखड़कर आए मलबे से हुआ। मलबे का स्तर रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में इतना अधिक था कि उससे पानी में गाद (सिल्ट) की मात्रा में 16 गुना तक का इजाफा हो गया था। गाद की यह स्थिति केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों में पता चली। इसी तरह श्रीनगर में नदी में भी गाद का स्तर उच्चतम पाया गया। हालांकि, यहां तक आते-आते मलबा ऊपरी क्षेत्र में ही डंप होने लगा था। फिर भी यहां गाद का स्तर 12 गुना पाया गया।
केंद्रीय जल आयोग के अधीक्षण अभियंता राजेश कुमार के मुताबिक आठ फरवरी को रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी के पानी में गाद का स्तर एक लाख 60 हजार टन पाया गया। श्रीनगर में 10 फरवरी से पानी के सैंपल लिए गए। तब यहां गाद की स्थिति 60 हजार टन के करीब थी। जैसे-जैसे दिन बढ़े तो गाद की स्थिति भी सामान्य होने लगी थी। 15 फरवरी से रुद्रप्रयाग व श्रीनगर में गाद का स्तर सामान्य दिनों की तरह हो गया था। स्पष्ट है कि जलप्रलय के साथ भारी मात्रा में मलबे के रूप में बोल्डर, मिट्टी-पत्थर बहकर आए थे और इसके निशान अभी भी समूचे क्षेत्र में देखे जा सकते हैं।
उच्च क्षेत्रों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाएगा जल आयोग
ऋषिगंगा की आपदा के बाद तमाम सरकारी एजेंसियों को अर्ली वार्निंग सिस्टम की अहमियत समझ में आने लगी है। केंद्र सरकार ने भी इस आपदा को गंभीरता से लिया है। यही वजह है कि केंद्रीय जल आयोग भी अब अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की तैयारी कर रहा है। ऋषिगंगा व तपोवन क्षेत्र से लौटे केंद्रीय जल आयोग के अधीक्षण अभियंता राजेश कुमार ने कहा कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने क संभावना तलाशी गई है। आपदाग्रस्त क्षेत्र में एसडीआरएफ भी अर्ली वार्निंग सिस्टम लगा रही है। आयोग ने भी तय किया है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों की नदियों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए जाएं। इस संबंध में केंद्र सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेजा जाएगा। स्वीकृति मिलते ही योजना को धरातल पर उतारने का काम शुरू किया जाएगा। उच्च क्षेत्रों में ऐसे स्थल तलाश किए जा रहे हैं, जहां मोबाइल सिग्नल में मिल रहे हों। ताकि आपदा के समय रियल टाइम पर सूचना मिल सके।
यह भी पढ़ें-नौ मीटर गहरी है ऋषिगंगा पर बनी झील, नौसेना के गोताखोरों ने ईको सेंसर्स से मापी झील की गहराई
Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें