कूड़ा निस्तारण को 21 महीने में ही खत्म हुई 15 साल की मियाद
दून के कचरे के निस्तारण की व्यवस्था चौपट होती दिखाई दे रही है। इसके लिए पंद्रह वर्ष की क्षमता वाला जो लैंडफिल बनाया वो 21 माह में ही 85 फीसद फुल हो गया है।
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। दून शहर और इसके आसपास की नगर पालिकाओं और पंचायतों के कूड़ा निस्तारण के लिए सेलाकुई स्थितशीशमबाड़ा में शुरू किया गया पहला सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट व रिसाइक्लिंग प्लांट जल्द ही बंद पड़ सकता है। दरअसल, कूड़ा निस्तारण के बाद बचने वाले अवशेष के लिए सोलह करोड़ लागत से पंद्रह वर्ष की क्षमता वाला जो लैंडफिल बनाया गया था, वह 21 माह में ही करीब 85 फीसद फुल हो चुका है। इसकी असल वजह रैमकी कंपनी की कारस्तानी बताई जा रही है।
ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी ने कूड़े को निस्तारण के बजाए सीधे लैंडफिल में डाला, जिससे यह नौबत आई। इतना ही नहीं कूड़ा निस्तारण के बाद बनाया जा रहा आरडीएफ और खाद भी कई टन जमा पड़ा है और इसके खरीददारों की तलाश में नगर निगम हाथ-पांव मार रहा। प्लांट से रोजाना उठने वाली दुर्गंध से हजारों ग्रामीण परेशान हैं और आंदोलन भी कर रहे हैं। करीब 36 करोड़ रुपये के इस प्लांट की ऐसी दुर्गति होने के बाद नगर निगम संबंधित कंपनी के विरुद्ध सख्त कदम उठाने का दावा कर रहा है।
शीशमबाड़ा व इसके आसपास के हजारों ग्रामीणों के भारी विरोध व उपद्रव के दौरान तीन अक्टूबर-2016 को तत्कालीन महापौर विनोद चमोली ने इस प्लांट का शिलान्यास किया था। इसके निर्माण में तेरह महीने का समय लगा। करीब सवा आठ एकड़ में बने प्लांट में एक दिसंबर-17 से कूड़ा डालना शुरू किया गया था, लेकिन प्रोसेसिंग कार्य 23 जनवरी-18 को उद्घाटन के बाद शुरू हुआ। दावे किए जा रहे थे कि यह देश का पहला ऐसा वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट है, जो पूरी कवर्ड है व इससे किसी भी तरह की दुर्गंध बाहर नहीं आएगी।
नगर निगम का यह दावा शुरुआत में ही हवा हो गया था। यहां उद्घाटन के समय ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दुर्गंध पर सख्त नाराजगी जाहिर कर इसके उपचार के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद दुर्गंध कम होने के बजाय पिछले 21 माह में और बढ़ती चली गई। दिखावे के लिए निगम की ओर से वायु प्रदूषण जांच कराई गई, लेकिन निजी एजेंसी के जरिए हुई जांच भी सांठगांठ के खेल में दब गई। विरोध में जन-विरोध लगातार जारी है और दुर्गंध को लेकर स्थानीय लोग प्लांट बंद करने की मांग कर रहे।
यह होता है लैंडफिल
लैंडफिल कूड़ा निस्तारण के बाद बचे अवशेष को जमा करने का स्थान होता है। इसे ऐसी तकनीक से बनाया जाता है कि इसमें कूड़े से बचे अवशेष डंप किए जाने पर भी यह भरा हुआ नहीं दिखता। इसे जिस आयु सीमा का बनाया जाता है, उसके बाद यह पहाडऩुमा रूप ले लेता है। कूड़ा दब जाता है और यह ठोस पहाड़ बन जाता है। फिर इसका सौंदर्यीकरण किया जाता है। दिल्ली समेत कई शहरों में ऐसा किया जा चुका है मगर दून में यह कूड़े के अवशेष के बजाए सामान्य कूड़े से ही भर दिया गया।
कूड़ा निस्तारण में प्लांट भी फेल
प्लांट कूड़ा निस्तारण में प्लांट भी फेल हो चुका है। यहां न तो कूड़े का निरस्तारण हो रहा, न ही कूड़े से निकलने वाले दुर्गंध से युक्त गंदे पानी (लिचर्ड) का निस्तारण हो रहा है। स्थिति ये है कि कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं और लिचर्ड बाहर नदी में मिल रहा। कूड़े से यह प्लांट ओवरफ्लो हो चुका है। अब यहां कूड़ा डंप करने की जगह ही नहीं बची।
ऐसे में यहां सड़ रहा यह कूड़ा आसपास रहने वाले हजारों ग्रामीणों के लिए अभिशाप बन चुका है। रोजाना तकरीबन 270 मीट्रिक टन कूड़ा प्लांट में पहुंच रहा, लेकिन हकीकत यह है कि यहां 50 मीट्रिक टन का निस्तारण तक नहीं हो पा रहा।
बजट 24 करोड़ था, 36 करोड़ में बनाया गया प्लांट
जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत वर्ष 2009 में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनाने की कवायद शुरू हुई थी। उस दौरान परियोजना का बजट 24 करोड़ रुपये था। प्रक्रिया तमाम कानूनी दांवपेंचों में फंस गई व प्लांट कर निर्माण पीछे होता चला गया। बहरहाल नवंबर-2014 में सुप्रीम कोर्ट व एनजीटी ने प्लांट निर्माण को मंजूरी दी व दो साल टेंडर व बजट की प्रक्रिया चलती रही। इस कारण देरी होने से इसका बजट 36 करोड़ जा पहुंचा।
हर माह 92 लाख हो रहे खर्च
नगर निगम द्वारा प्लांट का संचालन कर रही रैमकी कंपनी को हर माह कूड़ा उठान से लेकर रिसाइकिलिंग के लिए 92 लाख रुपए दिए जा रहे हैं, लेकिन, इस रकम का कारगर उपयोग नहीं हो रहा। प्लांट में कूड़ा डंपिंग के लिए 30 चेंबर बनाए हुए हैं। कूड़े के पहाड़ में ये चेंबर दब चुके हैं। नियम के तहत एक चेंबर में कूड़े को 30 दिन रखने के बाद उससे खाद बनाई जानी थी। उसके बाद ये प्रोसेस साइक्लिंग में चलती रहती।
वहीं, इसके विपरीत जिस तेजी से यहां कूड़ा डंप किया जा रहा है, उस तेजी से खाद नहीं बनाई जा रही। ऐसे में चेंबर भी ओवरफ्लो हो गए हैं। अब कंपनी खुले आसमान के नीचे ही कूड़े के ढेर लगा रही है। कंपनी की ओर से कूड़े से बन रहे आरडीएफ (रिफ्यूज ड्राई फ्यूल) को बेचने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे।
अब हालात ये हैं कि प्लांट में लगभग 60 हजार मीट्रिक टन आरडीएफ का ढेर है और करीब छह हजार मीट्रिक टन खाद भी जमा है। इतना ही नहीं प्लांट में करीब 17 हजार मीट्रिक टन नॉन-डिग्रेडेबल कूड़ा भी जमा है। कंपनी द्वारा अभी तक इस कूड़े के निस्तारण को लेकर कोई हल नहीं निकाला गया। रोज इस ढेर में 270 मीट्रिक टन कूड़ा और डंप हो रहा है।
कूड़ा उठान में भी कंपनी नाकाम
डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन कर रही रैमकी कंपनी से जुड़ी चेन्नई एमएसडब्लू कंपनी भी कूड़ा उठान में भी नाकाम साबित हो रही है। कंपनी की ओर से शहर के साठ वार्डों में कूड़ा उठान के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन स्थिति यह है कि इसकी गाड़ी एक एक हफ्ते तक वार्ड में नहीं जा रही। पार्षद से लेकर आमजन तक इसका विरोध जता चुके हैं व शिकायतें बढ़ती जा रहीं।
चेंबर्स में ड्रेनेज सिस्टम नहीं
प्लांट में बनाए गए प्रत्येक चेंबर के लिए कूड़े से निकलने वाले गंदे पानी लिचर्ड का पाइप छोड़ा गया है, लेकिन इसके निस्तारण और सुरक्षित निकास की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में कूड़े से निकला गंदा पानी प्लांट के चारों ओर जमा हो रहा है एवं यहां काम करने वाले कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है।
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नहीं सुधरे तो सीधे होगी कार्रवाई
महापौर सुनील उनियाल गामा के मुताबिक, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में कंपनी की लापरवाही की लगातार शिकायतें मिली हैं। डेढ़ माह पूर्व भी शिकायतों पर मैनें और नगर आयुक्त ने सहसपुर विधायक सहदेव सिंह पुंडीर के साथ प्लांट का निरीक्षण कर खामियों को चिह्नित किया था। एसडीएम विकासनगर को इसकी दैनिक रिपोर्ट देने को कहा गया था। उन्होंने कहा कि रैमकी कंपनी को दी जा रही चेतावनी व मोहलत अब खत्म की जाएगी। अब सीधे कार्रवाई का वक्त है। अगर सुधार नहीं तो कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने से भी चूका नहीं जाएगा।
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