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गंगा को निर्मल बनाने के लिए 1100 करोड़ के प्रोजेक्ट, मंजिल को अभी इंतजार

उत्तराखंड में नमामि गंगे परियोजना के तहत उत्तराखंड प्रदेश कार्यक्रम प्रबंधन समूह को अभी तक 1134.24 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 08 Jun 2019 12:48 PM (IST)Updated: Sat, 08 Jun 2019 08:32 PM (IST)
गंगा को निर्मल बनाने के लिए 1100 करोड़ के प्रोजेक्ट, मंजिल को अभी इंतजार
गंगा को निर्मल बनाने के लिए 1100 करोड़ के प्रोजेक्ट, मंजिल को अभी इंतजार

देहरादून, राज्य ब्यूरो। जीवनदायिनी गंगा का सिर्फ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व ही नहीं है, बल्कि अर्थव्यवस्था में भी उसकी अहम भागीदारी है। करोड़ों लोगों की आजीविका इसी नदी पर निर्भर है। इस सबको ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा गंगा को प्रदूषण मुक्त कर स्वच्छ एवं निर्मल बनाने के लिए संचालित की जा रही है नमामि गंगे परियोजना। उत्तराखंड में इस परियोजना के तहत उत्तराखंड प्रदेश कार्यक्रम प्रबंधन समूह को अभी तक 1134.24 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।

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इसे नगरीय सीवेज प्रबंधन, पुराने घाटों का विकास, नए घाटों व श्मशान घाटों का निर्माण, गंगा व उसकी सहायक नदियों से लगे क्षेत्रों में पौधरोपण, गंगा नदी के सतह की सफाई से संबंधित 65 कार्यों पर खर्च किया जाना है। हालांकि, कुछ कार्य पूरे हो गए हैं, जबकि कुछ अभी होने बाकी हैं। यानी, गंगा की निर्मलता के इन कार्यों को मंजिल तक पहुंचने में अभी कुछ और वक्त लगेगा।

गंगा को सीवेज मुक्त करने के लिए 15 शहर, 132 गांव चयनित किए गए हैं। मुख्य शहरों में हरिद्वार, ऋषिकेश, मुनि की रेती, तपोवन, देवप्रयाग, उत्तरकाशी, कीर्तिनगर, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गौचर, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, जोशीमठ, बदरीनाथ शामिल हैं। 

इन शहरों से निकलने वाले 135 नाले गंगा में गिरते हैं। नमामि गंगे की सीवेज प्रबंधन योजनाओं के तहत नगरों से निकलने वाले सीवेज को एसटीपी तक ले जाकर निस्तारण किया जाना है। इस कड़ी में पूर्व में 13 नगरीय सीवेज प्रबंधन परियोजनाएं पूरी कर ली गई हैं और 73 किमी सीवर नेटवर्क बिछ चुका है। साथ ही 35 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता स्थापित की जा चुकी है। इन पर 139.35 करोड़ की राशि खर्च की गई है।

885 करोड़ की 18 योजनाएं

नमामि गंगे में 885 करोड़ की लागत से 18 नई योजनाएं शुरू की गई हैं। इनके तहत 132 एमएलडी क्षमता के 31 नए एसटीपी लगाए हैं, जबकि छह एसटीपी पहले से मौजूद थे। नाला टैपिंग के तहत 59 नाले टैप किए जा रहे हैं। वर्ष 2017 तक गंगा से लगे शहरों-गांवों से रोजाना 146 एमएलडी सीवेज निकलता था, जिसमें से 89 एमएलडी ही साफ हो पाता था। हरिद्वार में 82 एमएलडी क्षमता के दो एसटीपी स्थापित किए जा रहे हैं। इनमें एक पूरा हो चुका है ,जबकि दूसरे का कार्य प्रगति पर है।

रिवर फ्रंट डेवलपमेंट

गंगा किनारे 250 करोड़ की लागत से 70 से ज्यादा स्नानघाट और श्मशान घाटों का निर्माण किया जा रहा है। घाटों में चंडीघाट, रुद्रप्रयाग, कोटेश्वर, केदार व उमरकोट मुख्य हैं। इनमें चेंजिंग रूम के साथ ही सीवेज शोधन व्यवस्था से युक्त शौचालयों का निर्माण भी कराया गया है। श्मशान घाटों में ऐसी व्यवस्था की गई है, जिसमें लकड़ी की दो से ढाई कुंतल के बीच खपत कम होती है। साथ ही वायु प्रदूषण न हो, इसका भी ध्यान रखा जा रहा है।

रिवर सरफेस क्लीनिंग

हरिद्वार में गंगा की सतह की सफाई के लिए ट्रैश स्किमर वोट के संचालन को तीन साल के लिए 10 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है। दावा किया गया कि यह वोट हर माह लगभग सात टन क्यूबिक मीटर कचरा गंगा से बाहर निकाल रहा है।

वनीकरण को 886 करोड़

राज्य में 2016 से 2021 तक गंगा व उसकी सहायक नदियों के किनारे के 55 हजार हेक्टेयर क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए वृहद पौधरोपण की योजना है। इसके लिए 886 करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया है। इस परियोजना में पांच वर्ष की अवधि में 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में पौधरोपण होना है। वर्ष 2016-17 में 315 हेक्टेयर में 56 हजार पौधे लगाए गए। 

पौधरोपण के लिए 28 लाख पौधे तैयार कराने का दावा है। यही नहीं, ऋषिकेश, उत्तरकाशी, हरिद्वार व गौहरी क्षेत्रों में गंगा वाटिकाएं और पार्क विकसित किए गए हैं। इसके साथ ही इको पार्क बनाने की भी योजना है।

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