उत्तराखंड में फिर हांफने लगी जीवनदायिनी 108, जानिए वजह
आपातकालीन सेवा 108 एक बार फिर हांफने लगी है। सेवा का संचालन कर रही कंपनी जीवीके ईएमआरआइ का अनुबंध मार्च में खत्म हो रहा है।
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में आपातकालीन सेवा 108 एक बार फिर हांफने लगी है। सेवा का संचालन कर रही कंपनी जीवीके ईएमआरआइ का अनुबंध मार्च में खत्म हो रहा है। इसके बाद संचालन कैंप (कम्युनिटी एक्शन थ्रू मोटिवेशनल प्रोग्राम) करेगी। ऐसे में अंतिम दौर में जीवीके ईएमआरआइ ने बेरुखी दिखानी शुरू कर दी है। ईंधन से लेकर गाड़ियों के रखरखाव तक पर अब कंपनी हाथ खींचकर पैसा खर्च कर रही है। जिस कारण प्रदेशभर में करीब 40 फीसद गाड़ियों के पहिये थम गए हैं। अन्य गाड़ियों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। वहीं कर्मचारी भी बिना वेतन काम कर रहे हैं। जिस कारण कई ने नौकरी तक छोड़ दी है।
बता दें, प्रदेश में वर्ष 2008 में 108 सेवा शुरू की गई थी। इसका संचालन तभी से जीवीके ईएमआरआइ कंपनी के पास है। कंपनी का अनुबंध पूर्व में ही खत्म हो चुका है और फिलहाल सात मार्च तक का एक्सटेंशन कंपनी को मिला हुआ है। वर्तमान में 108 सेवा के तहत 139 एंबुलेंस का संचालन प्रदेशभर में किया जा रहा है, जबकि 95 वाहन खुशियों की सवारी भी संचालित की जा रही हैं। जिसके माध्यम से प्रसव उपरांत जच्चा-बच्चा को घर तक छोड़ने की व्यवस्था है।
नए टेंडर के तहत कंपनी के संचालन का जिम्मा अब कैंप को मिला है। ऐसे में वर्तमान कंपनी अब संजीदगी से काम नहीं कर रही है। बताया गया कि न ईंधन पर पर्याप्त रकम खर्च की जा रही है और न गाड़ियों के रखरखाव पर। कर्मचारियों को पिछले दो माह से वेतन नहीं मिला है। ऐसे में वे भी अब काम छोड़कर जा रहे हैं।
इधर, 108 के स्टेट हेड मनीष टिंकू का कहना है कि गाड़ियों के संचालन को लेकर कर्मचारी बिना वजह का भ्रम फैला रहे हैं। ऐसा कुछ नहीं है। जहां तक वेतन के भुगतान का प्रश्न है, यह भी जल्द कर दिया जाएगा।
हीमोफीलिया के मरीजों की जांच सांसत में
हीमोफीलिया का दर्द झेल रहे मरीजों की परेशानी और बढ़ गई है। प्रदेश के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में शुमार दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में फैक्टर-8 खत्म है, ऐसे में मरीजों को इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा परेशानी गरीब तबके के मरीजों को झेलनी पड़ रही है। क्योंकि, आर्थिक रूप से कमजोर ये लोग निजी अस्पतालों में इलाज नहीं करा सकते और पूरी तरह सरकारी तंत्र पर निर्भर हैं। हीमोफीलिया की दवा के टोटे से इन मरीजों की जान सांसत में है।
प्रदेश में हीमोफीलिया के 180 से अधिक मरीज पंजीकृत हैं। इनमें सबसे अधिक 130 मरीज फैक्टर-8 पर निर्भर हैं, 33 का इलाज फैक्टर-9 और 19 का फैक्टर-7 से होता है। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में फैक्टर-8 पिछले एक अर्से से खत्म है। यह हाल तब है जब हीमोफीलिया पर विभाग खास सतर्कता बरतने की बात करता है। बावजूद इसके दवा की कमी से अक्सर मरीजों की जान सांसत में होती है।
चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने बताया कि दवा का पर्याप्त स्टॉक होने पर भी, कंपनी को इसका ऑर्डर दे दिया गया था। पर कंपनी ने अभी तक सप्लाई नहीं दी है। जिस पर रिमाइंडर भेजा गया है। एकाध दिन के भीतर दवा की आपूर्ति हो जाएगी।
क्या है हीमोफीलिया
हीमोफीलिया एक आनुवांशिक रोग है, इसमें मरीज को चोट लगने पर ब्लड की क्लॉटिंग नहीं हो पाती। खून बहता रहता है, जिसे बंद करने के लिए दवाएं लेनी जरूरी होती हैं। शरीर के बाहरी या अंदरूनी हिस्से में चोट लगने पर ब्लीडिंग शुरू हो जाए तो मरीज को कम से कम 20 हजार रुपये की दवा लेनी होती है। सरकारी अस्पताल में यह निश्शुल्क मिलती है।
जब तक संतोषजनक वार्ता नहीं, जारी रहेगी हड़ताल
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) की प्रदेश स्तरीय बैठक में लीगल व एक्शन समिति गठित करते हुए एलान किया कि सरकार से संतोषजनक वार्ता होने पर ही बेमियादी हड़ताल खत्म होगी। क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के विरोध में तीन दिन से प्रदेशभर के निजी अस्पताल व क्लीनिक बंद हैं।
आइएमए भवन कल्याणम में रविवार शाम हुई बैठक में वक्ताओं ने कहा कि क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट का विरोध होने पर सरकार ने एक्ट में संशोधन करने का भरोसा दिलाया था, मगर सरकार वायदे पर खरा नहीं उतर सकी। मरीजों के लिहाज से भी यह एक्ट व्यवहारिक नहीं है। अगर एक्ट का पालन किया जाता है तो पहले से बने कई अस्पताल बंद हो जाएंगे।
सरकारी अस्पताल ही एक्ट के मानक पूरे नहीं कर पा रहे हैं। कुछ दिन पहले सरकार से वार्ता हुई थी तो सरकार ने 20 जनवरी तक एक्ट में संशोधन कर कैबिनेट में पास करने को कहा था। बिल तो पास हुआ नहीं, उलटे निजी क्लीनिकों को सील किया जा रहा है। आइएमए के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. बीएस जज ने कहा कि एक्ट के विरोध में बेमियादी हड़ताल जारी रहेगी। 20 सदस्यीय एक्शन कमेटी गठित की गई है, जो इस मामले में रणनीति तय करेगी। लीगल सेल का भी गठन हो रहा है। बैठक में प्रदेशभर से करीब180 चिकित्सक मौजूद थे।
केंद्रीय टीम ने देखी दून अस्पताल की व्यवस्थाएं
दून अस्पताल में रविवार को स्वास्थ्य मंत्रलय दिल्ली से आई पांच सदस्यीय टीम ने दौरा किया। टीम ने स्वाइन फ्लू वार्ड को लेकर किए गए इंतजामात का जायजा लिया। उन्होंने आइसोलेशन वार्ड, वेंटिलेटर व दवा की उपलब्धता आदि की जानकारी प्राप्त की। टीम ने अस्पताल की व्यवस्थाओं को संतोषजनक पाया।
चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने टीम को बताया कि अब तक यहां 47 मरीज भर्ती हो चुके हैं। इनमें से 18 में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। अभी तीन मरीज भर्ती है। वेंटिलेटर की भी सुविधा है और 1044 गोलियां टेमीफ्लू की वार्ड में मौजूद हैं। इतना ही नहीं, चिकित्सक एवं स्टॉफ को भी वैक्सीन लगवा दी गई है। टीम वार्ड को देखकर संतुष्ट थी।
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