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ट्रॉली के सहारे झूल रही सीमांत गांवों में जिंदगी

ऋषिगंगा घाटी में सात फरवरी को आई आपदा के जख्म अब भी पूरी तरह नहीं भरे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 06 Mar 2021 10:25 PM (IST)Updated: Sat, 06 Mar 2021 10:25 PM (IST)
ट्रॉली के सहारे झूल रही सीमांत गांवों में जिंदगी

संवाद सहयोगी, गोपेश्वर: ऋषिगंगा घाटी में सात फरवरी को आई आपदा के जख्म अब भी पूरी तरह नहीं भरे हैं। आपदा में बहे झूला पुलों के निर्माण के लिए 13 सीमांत गांवों को अभी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। फिलहाल इन गांवों में जिंदगी की गाड़ी ट्रॉली के सहारे झूल रही है। ये ट्रॉलियां भी तभी काम कर रही हैं, जब मौके पर रस्सियां खींचने के लिए नदी के दोनों छोर पर चार लोग मौजूद हों।

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सात फरवरी को ऋषिगंगा में जलप्रलय से भारी तबाही मची थी। इस दौरान ऋषिगंगा, धौली गंगा व अलकनंदा नदी में सैलाब से नदी घाटी में गांवों को जाने वाले छह झूलापुल बह गए थे। ये झूला पुल क्षेत्र के 13 गांवों की लाइफलाइन माने जाते हैं। हालांकि आपदा के तुरंत बाद अस्थायी व्यवस्था के तौर पर गैर भंग्यूल, जुआग्वाड़ और रैणी में लोक निर्माण विभाग की ओर से ट्रॉलियां लगा दी गई थी। लेकिन, ट्रॉलियों पर मोटर लगाने का काम अभी बाकी है। स्थायी व्यवस्था के रूप में जुआग्वाड़, भंग्यूल गैर, जुगजू झूला पुल निर्माण के लिए 22 करोड़ का आगणन भेजा है, लेकिन इस पर अभी धनावंटन दूर की कौड़ी है। विष्णुप्रयाग में भी आपदा से पुल क्षतिग्रस्त पड़ा है।

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झूला पुल निर्माण व मरम्मत के लिए आगणन शासन को भेजा गया है। फिलहाल तीन जगह ट्रॉलियों से आवाजाही कराई जा रही है। ट्रॉलियों में भविष्य में मोटर लगाना प्रस्तावित भी है।

शिव कुमार मित्तल, सहायक अभियंता लोक निर्माण विभाग

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पगडंडिया नापकर गांव पहुंच रहे ग्रामीण

आपदा प्रभावित जुगजू गांव जाने के लिए अभी भी लाता से चार किमी पहाड़ी नापकर गांव तक पहुंचना पड़ रहा है। यह सफर इतना खतरनाक है कि ग्रामीण आवश्यक कार्य के लिए ही सड़क तक आ रहे हैं। जोशीमठ विकासखंड का जुगजू गांव रैणी के ठीक सामने धौली गंगा किनारे बसा है। गांव तक जाने के लिए एकमात्र झूला पुल आपदा में बह गया था। गांव में 10 से अधिक परिवारों की 70 से अधिक जनसंख्या है। स्थिति यह है कि आपदा के दिन से ही ग्रामीण ट्रॉली या अस्थायी पुल की मांग कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन ने यहां ट्रॉली तक नहीं लगाई है। नतीजतन, ग्रामीण रैणी से चार किमी होते हुए लाता झूला पुल से गांव पहुंच रहे हैं। गांव तक खतरनाक चट्टान के बीच पैदल रास्ता भी नहीं है। जंगलों में घास लाने के लिए प्रयोग में आने वाली पगडंडियों को नापकर ग्रामीण गांव तक पहुंच रहे हैं। ग्रामीण मुरली सिंह का कहना है कि चार किमी पैदल चलकर गांव पहुंचने के लिए पैदल रास्ता न होना सबसे बड़ी मुसीबत है। ग्रामीण सिर्फ दिन में ही आवाजाही कर पा रहे हैं।


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