Uttarakhand Chamoli Glacier Tragedy: जल प्रलय के दिन सुरंग में फंसे फोरमैन ने दूसरी बार दी मौत को मात
Uttarakhand Chamoli Glacier Tragedy चमोली जिले में सुरंग में फंसे एक फोरमैन वीरेंद्र कुमार गौतम ने दूसरी बार मौत को मात दी है। वह उन भाग्यशाली में से एक हैं जो जिन्हें जलप्रलय के बाद आइटीबीपी के जवानों ने सुरंग से जीवित निकालने में सफलता हासिल की।
रणजीत सिंह रावत, जोशीमठ (चमोली)। Uttarakhand Chamoli Glacier Tragedy चमोली जिले में तपोवन-विष्णुगाड परियोजना की सुरंग में फंसे एक फोरमैन वीरेंद्र कुमार गौतम ने दूसरी बार मौत को मात दी है। वह उन 12 भाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हैं जो जिन्हें सात फरवरी के दिन आई जलप्रलय के बाद आइटीबीपी के जवानों ने सुरंग से जीवित निकालने में सफलता हासिल की थी। वीरेंद्र कहते हैं कि वर्ष 2006 में असोम में भी एक परियोजना में काम करते हुए भूस्खलन के बाद सुरंग में मलबा भर गया था और वह अपने 15 अन्य साथियों के साथ 16 घंटे अंदर फंसे रहे थे। इस बार वही अनुभव काम आया और उनके साथ ही अन्य सहयोगियों की जान बच गई।
उत्तर प्रदेश के जौलान जिले में खरा गांव के रहने वाले वीरेंद्र कुमार गौतम एनटीपीसी की 520 मेगावाट की तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना में कार्य कर रही ऋत्विक कंपनी में फोरमैन के पद पर हैं। जल प्रलय के दिन को याद करते हुए वह बताते हैं कि आपदा के दिन सात फरवरी को वह अपने 11 अन्य साथियों के साथ सुरंग में 350 मीटर भीतर काम कर रहे थे। ठीक साढ़े दस बजे बिजली चली गई और कुछ शोर सुनाई दिया। इस पर दो श्रमिकों को बाहर भेजा गया कि देखो मामला क्या है। वह बताते हैं कि कुछ ही देर में दोनों चीखते हुए भीतर की तरफ दौड़ और बताया कि पानी के साथ भारी मात्रा में मलबा सुरंग में आ रहा है।
गौतम के अनुसार कुछ ही देर में मलबा वहां पहुंच गया, जहां काम चल रहा था। बाले 'मैं समझ गया कि कहीं ग्लेश्यिर में झील फट गई है।' सभी लोग घबराए हुए थे। मैंने एक साथी को मोबाइल फोन की टॉर्च जलाने को कहा। रोशनी में यह अंदाजा लगाने की कोशिश की क्या पानी और मलबा स्थिर हो गया है। साथियों से कहा कि शांत रहें और सुरंग की छत पर लगे सरिये को पकड़कर खड़े हो जाएं। जब पानी शांत हो गया तो सभी को धीरे-धीरे सुरंग के गेट की ओर बढ़ने को कहा।
गौतम कहते हैं कि सिर्फ मलबे के बीच 350 मीटर की दूरी पार करने में करीब तीन घंटे लग गए। हर पल मौत का एहसास हो रहा था, लेकिन गौतम साथियों की हिम्मत बढ़ाते रहे। वह कहते हैं कि 'गेट के पास पहुंचने पर हमने परियोजना के महाप्रबंधक राकेश डिमरी को फोन किया। इसके बाद आइटीबीपी के जवान देवदूत बनकर आए और हमें बचा लिया।' वह कहते हैं कि यह जिंदगी का सबसे बुरा दौर था।
गौतम कहते हैं कि इससे पहले भी वह ऐसी परिस्थिति में फंस चुके हैं। 14 वर्ष पहले असोम के धेमाजी जिले में दो हजार मेगावाट की जल विद्युत परियोजना के लिए सुरंग बनाने के दौरान हुए भूस्खलन के बाद भी वह मलबे के बीच फंस गए थे। तब भी उन्होंने अपने साथियों के साथ सुरंग से लगी सरिया को पकड़कर जान बचाई थी। तब वह लार्सन एंड ट्रुबो कंपनी में फोरमैन थे। यही अनुभव अब भी काम आया।
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