ग्वाल पूजे संरक्षण की दिशा में आगे बढ़े कदम
फूलदेई के बाद अब ग्वाल पूजे उत्सव संरक्षण की दिशा में कार्य हो रहा है।
गोपेश्वर : फूलदेई के बाद अब ग्वाल पूजे उत्सव संरक्षण की दिशा में कार्य हो रहा है। फूलदेई संरक्षण अभियान से जुड़े शशिभूषण मैठाणी के नेतृत्व में मैठाणा में ग्वाल पूजे यानी गाय चुगाने वाले ग्वालों की ओर से की जाने वाली पूजा कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस दौरान देहरादून राजभवन व मुख्यमंत्री आवास से मिले शगुन (गेहूं, चावल, गुड़) को भी पूजा में शामिल कर सामूहिक भोज बनाया गया। साथ ही आटे व मिट्टंी से बाघ का प्रतिरूप बनाकर व विषैले पौधों की पूजा कर आह्वान किया गया कि वे हमारे मवेशियों को नुकसान न पहुंचाए।
चैत्रमास की संक्रांति को आरंभ हुए फूलदेई पर्व अब पहाड़ से लेकर मैदानों तक बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा है। ढाई-तीन दशक पहले तक यह बाल पर्व विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया था। वर्ष 2003 में सीमांत जनपद चमोली मुख्यालय गोपेश्वर व आसपास के मैठाणा, पपड़ियाणा, पाडुली, वैरागणा, देवलधार, पलेठी सहित दर्जनों गांवों में बच्चों के समूह बनाकर फूलदेई मनाकर इस त्योहार को शशिभूषण मैठाणी के नेतृत्व में व्यापक रूप दिया गया था।
अब यूथ आइकॉन क्रिएटिव फाउंडेशन के संस्थापक व संस्कृति प्रेमी शशिभूषण मैठाणी पारस की ओर से फूलदेई विसर्जन कार्यक्रम ग्वाल पूजा संरक्षण अभियान को भी शुरू कर दिया है। ग्वाल पूजा के दिन जंगल में ग्वालों की ओर से सामूहिक रूप से रंग बिरंगे फूलों से भगवान कृष्ण का डोल (झूला) सजाया जाता है। बच्चे बारी-बारी झूले में कृष्ण भगवान को झूला झुलाते हैं, तो दूसरी ओर माताएं ग्वालों का भोजन तैयार करती हैं। आखिर में सभी महिलाएं आटे व मिट्टंी से बाघ, सांप का प्रतिरूप बनाकर उनकी व जहरीले घास की पूजा करती हैं। उन्हें टीका लगाकर गांव की सीमा से बाहर जाने का अनुरोध करती हैं। भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाकर गांव की सुख समृद्धि की कामना करती हैं। (संस)