टिफिन में ही रह गर्इं मां की बनाई रोटियां
सात फरवरी को ऋषिगंगा नदी में आई जलप्रलय सैकड़ों परिवारों को अपनों से बिछड़ने का दंश दे गई। लापता व्यक्तियों के स्वजन अब उस घड़ी को कोस रहे हैं जब उनके अपने रोजगार की खातिर परियोजना पर काम करने गए थे।
देवेंद्र रावत, तपोवन (चमोली)
सात फरवरी को ऋषिगंगा नदी में आई जलप्रलय सैकड़ों परिवारों को अपनों से बिछड़ने का दंश दे गई। लापता व्यक्तियों के स्वजन अब उस घड़ी को कोस रहे हैं, जब उनके अपने रोजगार की खातिर परियोजना पर काम करने गए थे। ग्राम करछौं निवासी ओमप्रकाश फस्र्वाण भी तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना की टनल में पंप पर ड्यूटी के दौरान आपदा की चपेट में आ गए थे तबसे उनका कोई पता नहीं है। तबाही के वक्त ओमप्रकाश के पिता प्रेम सिंह फस्र्वाण उनके लिए टिफिन में रोटियां लेकर जा रहे थे, लेकिन इसी बीच वहां सब-कुछ तबाह हो गया और रोटियां टिफिन में ही रह गई।
प्रेम सिंह तब से रोजाना रेस्क्यू स्थल पर पहुंच जाते हैं। उन्हें अब भी बेटे के लौटने की उम्मीद है। आपदा के उस मनहूस घड़ी को याद करते हुए प्रेम सिंह कहते हैं, 'ओमप्रकाश परियोजना में पंप पर काम करता था। उस दिन रविवार होने के कारण वह बिना कुछ खाए सुबह ही कार्य पर चला गया। खेत से लौटने पर ओमप्रकाश की मां चंद्रकला को जब यह बात पता चली तो उन्होंने तत्काल रोटियां बनाई और कर मुझसे तुरंत उसे टिफिन दे आने को कहा। मैं तपोवन पहुंचा ही थी कि अपनी आंखों के सामने धौलीगंगा में तबाही का मंजर देख जड़वत रह गया।'
ओमप्रकाश के परिवार में वही एकमात्र कमाने वाला सदस्य था। उसका छोटा भाई अभी पढ़ाई कर रहा है। परिवार में माता-पिता के अलावा 80-वर्षीय दादा शेर सिंह, पत्नी रिकी व छह माह की बेटी ईशानी भी है। प्रेम सिंह कहते हैं कि ओमप्रकाश के बिना परिवार का कोई सहारा नहीं रह गया है।