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Apple Farmer: 74 वर्ष की उम्र में सेब के उत्पादन से कर रहे हर साल 8 लाख रुपये की कमाई

Apple Farmer इंद्र सिंह पूरी नीती घाटी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। जेलम में जो सेब पैदा होता है उसकी मिठास व गुणवत्ता का कोई जवाब नहीं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 11 Oct 2019 09:56 AM (IST)Updated: Fri, 11 Oct 2019 11:40 AM (IST)
Apple Farmer: 74 वर्ष की उम्र में सेब के उत्पादन से कर रहे हर साल 8 लाख रुपये की कमाई
Apple Farmer: 74 वर्ष की उम्र में सेब के उत्पादन से कर रहे हर साल 8 लाख रुपये की कमाई

रणजीत सिंह रावत, जोशीमठ (चमोली)। Apple Farmer जेठ के उमसभरे दिन हों या सावन-भादौ की झमाझम पड़ती बौछारें अथवा पौष की हाड़ कंपाने वाली ठंड, भारत-चीन सीमा से लगी चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक की रोंग्पा- नीती घाटी के जेलम गांव में एक बुजुर्ग आपको सेब के बागीचों की रखवाली करते मिल जाएगा। 74-वर्षीय इस शख्स का नाम है इंद्र सिंह बिष्ट, लेकिन घाटी में लोग इन्हें ‘एपल मैन’ के नाम से ज्यादा जानते हैं।

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बागीचे को तैयार करने में लगे दस साल

इंद्र सिंह की हाड़तोड़ मेहनत का ही नतीजा है कि वह हर साल सेब बेचकर सात से आठ लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं। उनसे प्रेरित होकर घाटी के अन्य काश्तकार भी बागवानी के प्रति प्रेरित हो रहे हैं। इंद्र सिंह को सेब के इस बागीचे को तैयार करने में दस साल लगे। इस अवधि में तमाम विपरीत परिस्थितियां भी उनका हौसला नहीं डिगा पाईं। इंद्र सिंह के संघर्ष की कहानी पिछली सदी के नौवें दशक से शुरू होती है। वर्ष 1988 में उन्होंने यहां-वहां से कर्ज लेकर 20 हजार रुपये का इंतजाम किया।

इस राशि से उन्होंने जेलम गांव में बंजर पड़ी भूमि पर सेब के सौ पौधे लगाए। तब ग्रामीणों ने उनकी इस पहल का मखौल उड़ाते हुए कहा था कि यहां सेब के पौधे कैसे हो सकते हैं। लेकिन, इंद्र सिंह ने हार नहीं मानी और ठीक दस साल तक इन पौधों की बच्चों की तरह परवरिश की। आज उनकी दो हेक्टेयर भूमि पर 400 से अधिक सेब, नाशपाती व बादाम के पेड़ लहलहा रहे हैं।

बकौल इंद्र सिंह, ‘ये दस साल मेरे जीवन के सबसे संघर्षमय साल थे। वर्ष 1998 में मुझे पहली खुशी तब मिली, जब सेब के पेड़ों ने फल देना शुरू किया। फिर तो मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज 31 साल बाद मेरे पास अच्छा-खासा मुनाफा देने वाला सेब का एक भरा-पूरा बागीचा है। सीजन से पहले ही मेरे पास सेब की डिमांड आ जाती है। कभी-कभी तो मैं डिमांड पूरी भी नहीं कर पाता।’

शीतकाल के दौरान भी अकेले ही करते हैं बागीचे की देखभाल

इंद्र सिंह इस काम में पुत्रों की भी मदद नहीं लेते। उन्हें सभी कार्य स्वयं ही करने में आनंद आता है। शीतकाल में जब भोटिया जनजाति के लोग माइग्रेशन कर चमोली जिले के निचले इलाकों में छह महीने के प्रवास पर आ जाते हैं, तब भी इंद्र सिंह गांव में ही डटे रहते हैं। कहते हैं, शीतकाल में जंगली जानवर सेब के पेड़ों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए वह इस अवधि में भी गांव में ही रहकर बागीचे की देखभाल करते हैं।

सेब की छह प्रजाति की हैं विकसित

इंद्र सिंह ने अपने बागीचे में सेब की रॉयल डेलिसस, रेड डेलिसस, गोल्डन डेलिसस, राइमर, स्पर और हेरिसन प्रजाति विकसित की हैं। इसके अलावा उच्च गुणवत्ता वाली नाशपाती और बादाम के पेड़ भी उनके बागीचे में हैं, जो उन्हें अच्छीखासी आमदनी देते हैं।

इंद्र सिंह पूरी नीती घाटी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। जेलम में जो सेब पैदा होता है, उसकी मिठास व गुणवत्ता का कोई जवाब नहीं। वह सेब के पेड़ों पर रसायनों का छिड़काव भी नहीं करते। जेलम का सेब पूरी तरह जैविक सेब है। इंद्र सिंह से प्रेरणा लेकर नीती घाटी के कई लोग सेब उत्पादन करने लगे हैं।

(डीपी डंगवाल, उद्यान निरीक्षक, तपोवन चमोली)


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