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शिव संकल्प व अखंड सौभाग्य का प्रतीक पर्व करवाचौथ

सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक माह की चतुर्थी भगवान विनायक गणेश की उपासना के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। काíतक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का तो और भी अधिक महत्व है। इस दिन विवाहिताएं अपने पति के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ आयु के लिए चंद्रमा को अ‌र्घ्य प्रदान करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 04:15 PM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 04:15 PM (IST)
शिव संकल्प व अखंड सौभाग्य का प्रतीक पर्व करवाचौथ
शिव संकल्प व अखंड सौभाग्य का प्रतीक पर्व करवाचौथ

जासं, बागेश्वर : भारतीय सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक माह की चतुर्थी भगवान विनायक गणेश की उपासना के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। काíतक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का तो और भी अधिक महत्व है। इस दिन विवाहिताएं अपने पति के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ आयु के लिए चंद्रमा को अ‌र्घ्य प्रदान करते हैं। करवाचौथ या करक चतुर्थी का यह पर्व पति और पत्नी के एक दूसरे के प्रति समर्पण व विश्वास का प्रतीक है। इस दिन केवल चंद्रमा का ही नहीं वरन शिव-पावती सहित काíतकेय की भी पूजा की जाती है। जिस प्रकार पार्वती ने अखंड तप से शिव को प्राप्त किया और शिव ने पार्वती को अपनी शक्ति के रूप में स्वीकार कर प्रकृति और पुरुष की एकता को प्रगट किया, उसी प्रकार पति व पत्नी को भी एक होकर श्रेष्ठ कार्य करने चाहिए। यही करवाचौथ का भाव है। वनवास के समय जब अर्जुन तप करने इंद्रनील पर्वत चले गए और लंबे समय तक वापस नहीं आए। तब द्रोपदी चितित होने लगी। तभी भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को इस व्रत का विधान बताया और शिव-पार्वती कथा भी बताई। तभी से यह व्रत आरंभ हुआ। व्रत का अर्थ भूखा रहना मात्र नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य मन पर नियंत्रण व आहार की शुद्धता से है।

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चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव शब्द कल्याण व पार्वती शक्ति का प्रतीक है। चंद्रपूजन से सिद्ध किया जाता है कि मन की दृढ़ता से ही प्राणी कल्याणकारी विचारों को प्राप्त कर शक्ति संपन्न हो सकता है। यही व्रत का उद्देश्य है। हमें अपने व्रत व पर्वों के वास्तविक अर्थ को समझने का प्रयास करना चाहिए। तभी संस्कृति की रक्षा हो सकती है। - डा. गोपाल कृष्ण जोशी, प्रवक्ता इंका क्वैराली, बागेश्वर


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