बागेश्वर के पोथिंग भगवती मंदिर में चढ़ती हैं 500 ग्राम की पूड़ी
बागेश्वर जिले में कपकोट ब्लॉक के अंतर्गत आता है पोथिंग गांव। यहां हिमालय पुत्री मां नंदा की विशेष पूजा की जाती है। मंदिर में मां को भोग लगाने के लिए 500 ग्राम वजनी पूड़ियां बनाई जाती हैं।
बागेश्वर, [जेएनएन]: जिले में कपकोट ब्लॉक के अंतर्गत आता है पोथिंग गांव। यहां हिमालय पुत्री मां नंदा की विशेष पूजा की जाती है। पोथिंग ग्राम में आदिशक्ति मां नंदा भगवती मंदिर में इस वर्ष सौंपाती पूजा है। यह पूजा पांच दिन तक चलती हैं। पंचमी पर होने वाली पूजा का बड़ा महत्व है। यह दूरदराज से आने वाले लोगों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। इसी दिन मंदिर में मां को भोग लगाने के लिए 500 ग्राम वजनी पूड़ियां बनाई जाती हैं और पूड़ियों की संख्या सैकड़ों में होती है। मोटे गेहूं के आटे से बनी भूरे रंग की इन पूड़ियों का स्वाद बड़ा लाज़बाव होता है।
इन्हें बड़ी-बड़ी कढ़ाइयों में तला जाता हैं। ग्रामीण इन्हीं पूड़ियों को अपने के सगे-संबंधियों को प्रसाद स्वरूप भेजते है। हजारों लोगों की आस्था का यह पर्व इन दिनों चल रहा है। चतुर्थी तक गांव में रातभर जागरण होता है। रात में माता की विशेष आरती होती हैं। लोग पारंपरिक झोड़ा-चांचरी गाकर अपना मनोरंजन करते हैं। यहां पर गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति का भी संगम देखने को मिलता है। हुड़कों (पारंपरिक वाद्य यंत्र) की थाप पर चांचरी से पूरी रात गुंजायमान रहती है। मां की अराधना करने के लिए दूरदराज से लोग यहां पहुंचते है।
गांव जिला मुख्यालय से 28 किमी दूरी पर स्थित है और मंदिर का रास्ता आसान कोट भ्रामरी मे मां की कटार मां नंदा की कटार बागेश्वर जिले में ही स्थित कोटभ्रामरी मंदिर में हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी से नंदा ने असुरों का नाश कर अपनी व लोगों की रक्षा की। अनादि काल से ही यह कटार पूजी जाती हैं। नंदा राजजात यात्रा के दौरान नंदा की कटार भी यही से अंतिम यात्रा पड़ाव तक ले जाई जाती है। मां के भ्रामरी रूप का पूजन कोट मंदिर में होता है। डंगोली स्थित इस मंदिर के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा है। कुमाऊं और गढ़वाल के सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर में आकर पूजा करते हैं।
पोथिंग में मां ने किया रात्रि विश्राम
पहाड़ा वाली शेरावाली माता की तरह पिण्डों में प्रकट होने वाली माता के पोथिंग स्थित भवन में जनश्रुति के अनुसार एक शंख, चिमटा, नगारा, घंटी एवं धूप प्रज्वलित करने वाला धुपैंण स्वयं प्रकट हुए थे। भक्ति से ओतप्रोत साधक को आज भी इन दर्शन सुलभ हो सकते हैं। कहा जाता है कि हिमालय जाते वक्त मां नंदा ने पोथिंग ग्राम में रात्रि विश्राम किया था। बदरीनाथ तथा केदारनाथ धाम की तरह ही पोथिंग में स्थित देवी धाम के कपाट भी परंपरानुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी एवं अष्टमी (एक वर्ष पंचमी एवं एक वर्ष अष्टमी) की तिथि को ही भव्य आयोजन के साथ खोले जाते हैं। इन तिथियों की पूर्व रात्रियों में भगवती जागरण, डंगरियों में देवी अवतरण आदि अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं।
ढोल-नगाड़ें आदि वाद्य यंत्रों की ध्वनि से अंचल गुंजित रहता है। आशा, उल्लास और भक्ति की त्रिवेणी में जन समुदाय नहाने लगता है। हुड़के की थाप के साथ शुचिता, स्नेह और शालीनता के पुष्प बिखेरना, झोड़ें-चांचरी का मन भावन आयोजन साथ-साथ चलता रहता है। इस समय चैत्र मास में बोई गई लहलहाते खेतों में धान की फसल कट रही होती है और मां को अर्पित करने को नया चावल प्रस्तुत हो रहा होता है।
आठों और स्यौपाती मेला
पोथिंग में मनाये जाने वाले इस महोत्सव को स्थानीय बोली में आठों और स्यौपाती पुकारा जाता है। आठों पूजा अष्टमी एवं स्यौपाती पूजा पंचमी तक चलती है। नैनीताल और अल्मोड़ा में मनाये जाने वाले नंदा महोत्सव में कदली वृक्ष से मां नंदा-सुनंदा के मूर्तियों के निर्माण की तरह पोथिंग में भी कपकोट घाटी में स्थित मां का मायका कहे जाने वाले गांव उतरौड़ा से आयोजन पूर्वक हरेला पर्व पर आमंत्रित कर कदली वृक्ष ले जाया जाता है। ढोल-नगाड़े वादन के साथ तथा डंगरिये में देवी अवतरण के साथ जिस कदली वृक्ष में कंपन पैदा होती है उसी में मां के धरा पर अवतरण की अनुभूति कर पोथिंग ले जाया जाता है। वहां पूर्वजों द्वारा निर्धारित स्थान पर इन कदली वृक्षों को रोपकर करीब एक माह तक गाय से दूध से सींचा जाता है। भाद्रपद सप्तमी को इन वृक्षों को मन्दिर में ढोल-दमाऊं, झांजर, भकोरों और माता के जयकारों के साथ देव डंगरियों की उपस्थिति में मुख्य मंदिर भंडार के साथ ले जाया जाता है। इस कदली वृक्ष के तने से मां नंदा भगवती की मूर्ति का निर्माण किया जाता है।
ग्रामीण जुटाते हैं प्रसाद की सामग्री
परमानन्द का क्षण भोग और प्रसाद की संपूर्ण सामग्री गांव के निवासी ही मिलकर इकट्ठा करते है। पनचक्की से सारा गेहूं पीसा जाता है। उल्लेखनीय है कि हजारों की संख्या में मेले में उपस्थित हुए प्रत्येक व्यक्ति को महोत्सव के अंत में प्रसाद के रूप में एक भारी-भरकम पूड़ी प्रदान की जाता है। इस पूड़ी का वजन करीब 400 से 500 ग्राम तक होता है। पूजा के अंत में डिकर सेवाना की पवित्र एवं भावपूर्ण रस्म अदा की जाती है। बाजे गाजे के साथ डंगरिये नृत्यपूर्वक विविध अलंकरणों से अलंकृत मां के विग्रह को गोद में लिए हुये भक्त मंडली के जयकारे के साथ पास में बहने वाले जल के स्रोत पर जाते हैं और विग्रह विसर्जन की रस्म पूर्ण करते हैं। मर्म की छू लेने वाली मां की इस विदाई वेला पर सहज ही श्रद्धालु जनों की आंखें छलक उठती हैं। तत्पश्चात मन्दिर के पट सालभर के लिए बंद हो जाते हैं।
पूजा में शामिल सामग्री
भगवती मंदिर पोथिंग में इस पूजा का आयोजन यहां के वाशिन्दों द्वारा किया जाता है। हर परिवार द्वारा माता के इस पूजा के लिए निर्धारित गेहूं, जौ, तिल, तेल एवं रूपये मंदिर में पहुंचाए जाते हैं। इसी रुपये और अनाज से माँ की पूजा विधि-विधान से संपन्न कराई जाती है।
गढ़िया परिवारों की मां भगवती
पोथिंग भगवती मन्दिर में इस पूजा का आयोजन सर्वप्रथम गढि़या परिवार के पूर्वज श्री भीम सिंह गढ़िया, बलाव सिंह गढ़िया, हरमल सिंह गढ़िया, कल्याण सिंह एवं जैमन सिंह गढ़िया के परिवार द्वारा सैकड़ों वर्ष पूर्व किया गया था। उन्हीं के द्वारा नियुक्त दानू और कन्याल परिवार के लोग मंदिर के धामी हैं। गांव के निवासी जोशी परिवार माता की पूजा संपन्न करवाते हैं।
मंदिर के कपाट एक साल के लिए कर दिए गए बंद
आदिशक्ति मां नन्दा भगवती मंदिर पोथिंग में हर वर्ष होने वाली पूजा का समापन विशाल भंडारे के साथ संपन्न हुआ। पूजा संपन्न होने के साथ ही मंदिर के कपाट एक साल के लिए बंद कर दिए हैं। कपकोट ब्लॉक के पोथिंग में सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा। उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों से लोग मां के धाम में पहुंचे और सुख-समृद्धि और कुशलता की कामना की। दूर-दूर से पहुंचे व्यापारियों ने इस मेले में अपनी दुकानें सजाई। दिन भर मंदिर में दर्शनाथियों का तांता लगा रहा। गांव की शादीशुदा बेटियों ने अपने मायके की आराध्य मां नंदा के धाम में आकर पूजा-अर्चना की। शाम डिकर सेवाना की पवित्र और भावपूर्ण रस्म अदा की गई। इसके बाद माता के मंदिर में बनी हजारों पूड़ियों का वितरण हुआ। मां नंदा को नम आंखों से उनके ससुराल कैलाश को विदाई दी गई। इस दौरान बड़ी संख्या में दूर -दराज से आए लोग मौजूद रहे।
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