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ये पेड़ खुद को करता है मां नंदा-सुनंदा को अर्पित, जानिए इसके पीछे की मान्यता

कदली का वृक्ष मां नंदा-सुनंदा की के लिए अर्पण को तत्पर रहता है। इसके लिए वृक्ष के चयन की प्रक्रिया बेहद अद्भुत है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 02 May 2018 08:56 PM (IST)Updated: Fri, 04 May 2018 05:08 PM (IST)
ये पेड़ खुद को करता है मां नंदा-सुनंदा को अर्पित, जानिए इसके पीछे की मान्यता
ये पेड़ खुद को करता है मां नंदा-सुनंदा को अर्पित, जानिए इसके पीछे की मान्यता

रानीखेत, [जेएनएन]: 'स्वर्गफल' कदली वृक्ष देवभूमि की आराध्य मां नंदा-सुनंदा के लिए अर्पण को तत्पर रहता है। खास बात ये है कि मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमा के लिए कदली के योग्य वृक्ष के चयन की प्रक्रिया बड़ी अद्भुत है, जो आध्यात्म पर आधारित है।

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केले के बागान (किंवाड़ी) में शुभ मुहूर्त में पुरोहित अभिमंत्रित चावल फेंकते हैं। तभी मां को अर्पित किए जाने योग्य कदली वृक्ष का तना व उसकी पत्तियां हिल कर संकेत दे देती हैं। पंडित, शास्त्री व यजमान उसी वृक्ष का चयन कर उसको गंगा जल से स्नान कराते हैं। फिर तिलक-चंदन और लाल व सफेद वस्त्र बांधते हैं। उसे काटे जाने तक नियमित पूजन किया जाता है।

इसलिए चुना जाता है स्वर्गफल का ही पेड़ 

लोककथा के अनुसार ससुराल को जाते वक्त मां नंदा व सुनंदा पर एक भैंसे ने हमला बोल दिया। बचने के लिए दोनों बहनें कदली के बागान (किंवाड़ी) में जा छिपी। तभी बकरा उधर पहुंचा और उसने प्रवृत्ति के अनुरूप केले के पत्ते खा लिए। किंवदती है कि कदली के वृक्षों के पीछे छिपकर बैठीं नंदा-सुनंदा को भैंसे ने देख लिया और दोबारा हमला बोल दिया। तभी से कदली वृक्ष से प्रतिमा बनाने की परंपरा शुरू हुई। 

दूसरी कथा के मुताबिक कदली को स्वर्ग फल कहा जाता है जो सबसे शुद्ध पेड़ माना जाता है। इसीलिए आराध्य देवी की प्रतिमा बनाने में इसी वृक्ष के तनों व पत्तों का इस्तेमाल होता आ रहा है। 

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