मानस को किसी भी हाल में वश में नहीं किया जा सकता : मोरारी बापू
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : कथा के दूसरे दिन डोल आश्रम में श्रीराम कथा सुनाते हुए संत मुरार
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : कथा के दूसरे दिन डोल आश्रम में श्रीराम कथा सुनाते हुए संत मुरारी बापू ने कहा कि मानस को किसी भी हाल में वश में नहीं किया जा सकता। शास्त्र को सिर्फ कंठस्थ किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि राजा को जहां खुश नहीं किया जा सकता तो मातृ शक्ति को भी किसी भी तरह वश में करना बेमानी है। यह खुद में सर्वश्रेष्ठ है। बापू ने कहा कि मानस को भगवान शंकर ने अपने पास धारण किया।
कथा के दूसरे दिन डोल आश्रम में जहां श्रद्धा का सैलाब उमड़ता दिखाई दिया। कथा सुनाते हुए संत मोरारी बापू ने बताया कि मानस श्री की कथा का क्या औचित्य है। शास्त्र को कंठस्थ किया जा सकता है, किसी संदूक में नहीं रखा जा सकता। इसको मन व हृदय में ही रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम की महिमा का बखान किसी भी तरह नहीं हो सकता। न तो हम प्रभु की महिमा को पूरी तरह जान सकते हैं। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के अयोध्याकांड व अरण्यकांड में आए श्री शब्द की व्याख्या की। बापू ने कहा कि प्रभु तो खुद भक्त के पास जाते हैं। शबरी के जूठे बेर खाने के लिए खुद उसके पास चलकर गए। प्रभु के सामने सोने का मृग होना छल है। मारीच में जहां कपट है तो वहीं छल है। क्योंकि वह सोने का मृग बनकर सामने आया। प्रभु का कहना है कि ऐसे अवगुणों से युक्त हमारा प्रिय नहीं हो सकता। लेकिन इसके बाद भी प्रभु सोने के मृग के पीछे भागे-भागे चले गए। यदि प्रभु श्रीराम आपके पास आना चाहते हैं तो उनको कौन रोक सकता है। वह सारी रस्में तोड़कर आने वाले हैं तो उनको कौन रोकेगा। यही प्रभु श्रीराम की महिमा है, जिसे जितना भी यशोगान में पिरोया जाए वह कम ही है। मोरारी बापू ने कहा कि साधना संपन्न व्यक्ति का स्पर्श ही सर्वोपरि है। धर्म की मुद्रा, अर्थ की मुद्रा है। संत के सामने यदि माला हो, माल भी हो तो कमाल हो सकता है। यह काम की मुद्रा है। एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि पुष्पवाटिका में जब जानकी घूम रही थीं तो प्रभु से संकेत में कहा कि वह इसी समय दूसरे दिन यहां मिलेंगी। इसकी महिमा अपरमपार है। इस मौके पर आश्रम के संस्थापक बाबा कल्याणदास, पूर्व मुख्यमंत्री भगत ¨सह कोश्यारी सहित साधु-संत व बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।