ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का साधन बन सकता है पिरूल
पर्वतीय इलाकों में स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं।
संस, अल्मोड़ा: पर्वतीय इलाकों में स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं। यहां के लोग पिरूल का उपयोग कर इसे आजीविका का आधार बना सकते हैं। इसके लिए संस्थान समय-समय पर ग्रामीणों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन भी करता है।
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कटारमल में आयोजित एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करते हुए केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. जीसीएस नेगी ने किसानों को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि किसान संस्थान द्वारा दिए गए प्रशिक्षण के तकनीकी ज्ञान को अपने जीवन में उतारें। नेगी ने बताया कि ग्रामीण पिरूल से कोयला बनाकर जहां आजीविका के साधनों को बढ़ा सकते हैं वहीं इससे जंगलों में लगने वाली आग पर भी काबू पाया जा सकता है। प्रशिक्षण के दौरान परियोजना में चयनित सकार एवं पिथराड़ गांव के प्रगतिशील किसानों को चीड़ की सूखी पत्तियों से जैव ईधन तैयार करने, आजीविका वृद्धि हेतु संरक्षित खेती, मत्स्य पालन, नकदी फसलों के उत्पादन और जैविक खाद के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। प्रशिक्षण के दौरान निदेशक आरएस रावल ने किसानों को धुआं रहित चूल्हों का वितरण भी किया गया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में डा. एससी आर्या, डा. शैलजा पुनेठा, राजेंद्र कांडपाल, मुकेश देवराड़ी आदि अनेक लोग मौजूद रहे।