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अमर सेनानी चंद्र सिंह गढ़वाली ने आज ही के दिन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बुलंद की थी आवाज

उमराव सिंह नेगी, चौखुटिया: यूं तो आज 23 अप्रैल को पूरे देश में पेशावर कांड की बरसी मना

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Apr 2018 03:59 AM (IST)Updated: Mon, 23 Apr 2018 03:59 AM (IST)
अमर सेनानी चंद्र सिंह गढ़वाली ने आज ही के दिन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बुलंद की थी आवाज
अमर सेनानी चंद्र सिंह गढ़वाली ने आज ही के दिन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बुलंद की थी आवाज

उमराव सिंह नेगी, चौखुटिया: यूं तो आज 23 अप्रैल को पूरे देश में पेशावर कांड की बरसी मनाई जाएगी। उत्तराखंड में भी इस दिन का खास महत्व है। आज के ही दिन 23 अप्रैल 1930 को पेशावर कांड के नायक हवलदार वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने गढ़वाल राइफल के अपने सभी साथियों के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह खड़ा कर दिया था तथा उन्होंने पठानों के शांति पूर्ण जुलूस पर गोली चलाने से मना कर दिया। इसलिए उत्तराखंड में आज गढ़वाली की वीरता को याद किया जाएगा। चौखुटिया से लगे उनके गृह क्षेत्र रैंणीसेरा व गैरसैंण में भी कार्यक्रम होंगे तथा उनकी गैरसैंण के रामलीला मैदान में लगी मूर्ति पर माल्यार्पण किया जाएगा।

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वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसंबर 1899 में गढ़वाल के चमोली जनपद के अंतर्गत चौहान पट्टी के रैंणीसेरा गांव में जाथली सिंह भंडारी के घर में हुआ। दूर गांव की मांटी में जन्मे एवं रचे-बसे वीर चंद्र सिंह गढ़वाली गरीबी के चलते प्राइमरी तक ही शिक्षा ग्रहण कर सके। परिवार की बेहद माली हालत के चलते उन्होंने छोटी उम्र में ही रोजगार के लिए घर व गांव छोड़ दिया एवं गाइड बनकर अंग्रेजी शासकों के साथ काम करना शुरू कर दिया। मगर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली इस नौकरी से कभी खुश नहीं रहे।

चूंकि गढ़वाली के नस-नस में अपनी माटी व थाती के प्रति अटूट प्रेम भरा था, इसके चलते उन्हें यह काम रास नहीं आया। इसी बीच प्रथम युद्ध की शुरूआत हो गई तथा अंग्रेजों ने गांव गांव जाकर सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी। इसी क्रम में सैंणीसेरा गांव में भी कैंप लगा तथा चंद्र सिंह भी सेना में शामिल हो गए। 11 सितंबर 1994 में उन्हें लैंसडाउन स्थित गढ़वाल राइफल की छठी कंपनी में तैनाती मिल गई।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गढ़वाली तुर्की व मेसोपोटनिया समेत कई अन्य स्थानों पर लड़ाई के मोर्चे पर गए। उनकी वीरता को देख उन्हें सैनिक से हवलदार बना दिया गया तथा फिर उन्हें गढ़वाली की उपाधि भी मिल गई। आखिर में जब प्रथम महायुद्ध समाप्त हो गया तो अंग्रेज शासकों ने जीवित रह गए आधे से अधिक सैनिकों को वापस उनके घरों को भेज दिया गया। इन्हीं में वारी चंद्र सिंह भी शामिल थे। यहीं से उनके मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत के भाव उत्पन्न हो गए तथा इसी दौरान महात्मा गांधी के आंदोलन एवं जलियावालाबाग जैसे क्रूर कांड ने समूचे देश वासियों को झकझोर कर रख दिया।

इस घटना से वीर चंद्र सिंह भी बेहद आहत हो उठे। देश में आजादी के आंदोलन के चलते अंग्रेजों ने फिर गढ़वाली सहित अन्य सैनिकों को वापस बुला लिया तथा गढ़वाली भी फिर नौकरी पर चले गए। आजादी की लड़ाई को देख सैनिक होते हुए भी चंद्र सिंह के मन में देशभक्ति की भावना जागने लगी। इसी बीच 23 अप्रैल 1930 को पेशावर कांड का ऐतिहासिक दिन आ गया, जब चंद्र सिंह गढ़वाली ने गढ़वाल राइफल के अपने सभी साथियों के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह किया। ================ 11 वर्ष से अधिक समय जेल में काटा

आदेश की अवहेलना पर उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। साथ ही उन्हें आजीवन कालापानी, संपत्ति जब्त व हवलदारी भी समाप्ति करने की सजा भी दी गई। बाद में अंग्रेजों ने उन्हें फिर 26 दिसंबर 1941 को रिहा कर दिया। इस प्रकार पेशावर कांड के नायक चंद्र सिंह ने 11 वर्ष 3 माह 18 दिन जेल में ही काटे। जो रिहा होने के बाद 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय हो गए तथा अंग्रेज शासकों के खिलाफ जगह जगह आवाज बुलंद कर लड़ाई लड़ी। इस दौरान फिर अंग्रेज शासकों ने उन्हें जेल में बंद कर दिया तथा उन्हें सजा काटनी पड़ी। बाद में उन्हें 1945 में रिहा कर दिया गया।


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