चित्रकार सलीम ने पहाड़ को दी आवाज
भारत के महान समकालीन चित्रकार मो. सलीम का निधन हो गया।
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा: भारत के महान समकालीन चित्रकार मो. सलीम का निधन हो गया। पहाड़ उनके दिल में बसा हुआ था। चित्रों के जरिए उन्होंने पहाड़ के समाजिक जीवन को आवाज दी।
चित्रकार मो. सलीम का जन्म 5 जुलाई 1939 में अल्मोड़ा के एक साधारण परिवार में हुआ था। अल्मोड़ा में जन्म होने के कारण उनकी कला में बचपन से ही यहां के सौंदर्य का प्रभाव रहा। मो. सलीम अपनी कला यात्रा में हमेशा समय के साथ चलते रहे। कुमाऊँ के वास्तविक लोक जीवन शैली पर उनके बने चित्र समाज और जीवन को हुबहू कैनवास पर उतार देते थे। उनकी कला में लोक जीवन, संस्कार, लोक कला, त्यौहार आदि का भी विशेष प्रभाव दृष्टिगोचर होता है, कुमाऊं के लोक उत्सव, जीवन की सांझ, तीज त्यौहार, हुड़किया बोल की रोपाई, और यहां की पर्वत श्रृंखलाएं, लोक आभूषण में स्त्री आकृतियां, अल्मोड़ा के पुराने भवन व बाजार, ग्रामीण दृश्य, आदि अनेक चित्र उनकी तूलिका के श्रृंगार रहे हैं। कला जगत में काला रंग का प्रयोग आम तौर पर कलाकार अपनी कला में नहीं करते है । कहा जाता है कि काला रंग भावात्मक दृष्टि से सही नही होता है। लेकिन मो. सलीम ने अपनी कला में इस मिथक को भी तोड़ डाला।
वह इंग्लैंड के प्रसिद्ध जल रंग चित्रकार सर विलियम रसल फिलन्ट के प्रयोगों से प्रभावित थे। मो. सलीम बताते है कि जब वे छोटी कक्षाओं में पढ़ा करते थे तो स्लेट या पत्थरों के ऊपर कोयलों से चित्र बनाते थे, लेकिन लखनऊ कला विद्यालय ने उनके मस्तिष्क की परतें खोल दी और उनकी कल्पना शक्ति को नए आयाम प्रदान किए। उनके चले जाने से कला जगत को अपूर्णीय क्षति हुई है।