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अब काकड़ीघाट में रोज दम तोड़ रहीं सैकड़ों मछलियां

ऐतिहासिक विश्वनाथ तीर्थ में सुवाल नदी में महासीर के बाद अब जीवनदायिनी कोसी में बड़ी संख्या में रोहू मछलियां रहस्यमय तरीके से दम तोड़ रही हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 04 Jan 2021 10:59 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jan 2021 10:59 PM (IST)
अब काकड़ीघाट में रोज दम तोड़ रहीं सैकड़ों मछलियां
अब काकड़ीघाट में रोज दम तोड़ रहीं सैकड़ों मछलियां

जागरण टीम, अल्मोड़ा/रानीखेत : ऐतिहासिक विश्वनाथ तीर्थ में सुवाल नदी में महासीर के बाद अब अब जीवनदायिनी कोसी में बड़ी संख्या में रोहू मछलियां रहस्यमय तरीके से दम तोड़ रही हैं। हालांकि स्थानीय बाशिंदों ने मछलियों के अवैध शिकार के लिए घातक रसायन के इस्तेमाल की आशंका जता जांच की मांग उठाई है। इधर मत्स्य विभाग ने जांच को काकड़ीघाट से सुयालबाड़ी क्षेत्र तक मृत मछलियों व पानी के नमूने लेकर भीमताल स्थित लैब में भेजने की बात कही है। ताकि मछलियों की मौत के रहस्य से पर्दा उठ सके।

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कोसी नदी में काकड़ीघाट से सुयालबाड़ी क्षेत्र तक रोहू मछलियों पर अस्तित्व का संकट छा गया है। यहां रोजाना अनगिनत मछलियां अचेत होने के बाद दम तोड़ती जा रही हैं। आसपास के ग्रामीणों की मानें तो भीषण ठंड के प्रकोप से आक्सीजन की कमी के चलते काफी कम मछलियां ही मरती थीं। मगर अबकी बड़ी संख्या में बेमौत मारी जा रहीं।

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हाईवे पर बाजारों में खूब बिक रहीं

दम तोड़ती जा रही मछलियां इन दिनों अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे किनारे बाजारों में खूब बिक रही हैं। काकड़ीघाट क्षेत्र के गोपाल सिंह के मुताबिक यदि घातक रसायन के इस्तेमाल से मछलियां मारी जा रही हैं तो इनका सेवन मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। उन्होंने इस मामले में जाच पर जोर दिया।

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रहस्य बना है विश्वनाथ तीर्थ का मामला

याद रहे हालिया अल्मोड़ा के विश्वनाथ तीर्थ में कोसी की सहायक सुवाल नदी में भी असंख्यों संरक्षित प्रजाति की महासीर मछलियां बेमौत मारी गई। स्थानीय लोगों ने तब अवैध शिकार को खतरनाक रसायन के इस्तेमाल का अंदेशा जताया था। हालांकि पानी के नमूने व मृत मछलियों की लैब रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है।

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विश्वनाथ घाट स्थित सुवाल नदी में मरी महासीर मछलियों के मामले में लैब रिपोर्ट भीमताल से आनी है। काकड़ीघाट के मामले में मौका मुआयना करने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। वहां से भी पानी के नमूने आदि लेकर जांच कराएंगे। हो सकता है कि बीते दिवस वर्षा या अन्य कारणों से कोई प्रभाव पड़ा हो।

-रितेश चंद्र, सहायक निदेशक मत्स्य विभाग


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