ग्रामीणों ने पीपल-बरगद का कराया विवाह, जानिए इसके पीछे की मान्यता
अल्मोड़ा जिले के जैंती कस्बा क्षेत्र में तल्ला सालम के गांव चौकुना में ग्रामीणों ने पीपल-बरगद के पेड़ का विवाह कराया। इस मौके पर गांव के सभी घरों से आई महिलाओं ने मंगलगीत गाए।
जैंती, अल्मोड़ा [जेएनएन]: पर्यावरण संरक्षण के लिए ग्रामीणों ने ढोल-ताशों के बीच नाचते-गाते हुए पीपल-बरगद का विवाह कराया। इस मौके पर गांव के सभी घरों से आई महिलाओं ने मंगलगीत गाए। स्थानीय कलाकारों ने छोलिया नृत्य प्रस्तुत कर कुमाऊंनी संस्कृति की छाप छोड़ी।
जैंती कस्बा क्षेत्र में तल्ला सालम के गांव चौकुना में ग्रामीणों ने पीपल-बरगद के पेड़ का विवाह कराने के लिए पुरोहित बुलाकर द्वार सजाया। ऐंपण बनाकर महिलाओं ने मंगल गीत गाए और कुमाऊंनी गीतों धुन पर बराती व घराती की भूमिका में नजर आए। स्थानीय कलाकारों ने छोलिया नृत्य की थाप के बीच ढोल-ताशों के साथ पर्यावरण संरक्षण की शपथ ली। इस अजूबी बरात में सैनोली गांव, बिरखम, दाडि़मी, सीम, बरम, थामथोली, नोगांव, मझाऊ, सिरकोट, अल्यूर,बाराकोट सहित दर्जन भर से अधिक गांवों के पुरुष व महिलाओं ने हर्षोल्लास के साथ भागीदारी की। पुरोहित हेमचंद्र गुरुरानी ने मंत्रोच्चार के बीच सर्वप्रथम बरगद का यज्ञोपवीत संस्कार कराकर पीपल के पेड़ के साथ विवाह संपन्न कराया।
हिंदू धर्म में है विवाह की महत्ता
पीपल-बरगद के विवाह के पीछे हिंदू धर्म की एक बड़ी मान्यता भी निहित है। वट सावित्री पूजन एवं पीपलपानी संस्कार आदि के लिए ये एक साथ उगे वृक्ष तभी पवित्र माने जाते हैं जब इनका विवाह हुआ हो। पांच साल पूर्व शिक्षिका कला नेगी ने हरज्यू मंदिर परिसर में पीपल व बरगद के पौध रोपे थे। विवाह के बाद अब दोनों वृक्षों को पूजा व कर्मकांड के लिहाज से मान्यता मिल गई है। पर्यावरण संरक्षण भी इसका एक बड़ा उद्देश्य है।
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