सात समुंदर से पार से खींच लाया माटी का प्यार
रानीखेत में गाव की मिट्टी की खुशबू तथा कुछ करने की ललक उन्हें सात समुंदर पार से गांव तक खींच लाई।
संवाद सहयोगी, रानीखेत : गाव की मिट्टी की खुशबू तथा कुछ करने की ललक उन्हें सात समुंदर पार से गाव तक खींच लाई। पहले गाव पहुंचने पर जो गांव के बच्चों को पहचानते तक नहीं थे, आज गाव में ही 'होलो ब्लाक' बनाने की यूनिट स्थापित कर ग्रामीणों के लिए रोजगार का जरिया बन गए हैं।
बात हो रही है अल्मोड़ा व नैनीताल जनपद की सीमा पर स्थित बमौड़ा (सल्ट) गाव निवासी रमेश सिंह तड़ियाल की। रमेश बीते पंद्रह वषरें से दुबई में होलो ब्लॉक बनाने वाली कंपनी में कार्य करते थे। गाव में ही कार्य करने की ललक उन्हें वापस खींच लाई। लाकडाउन से एक माह पूर्व वह घर लौट आए। समीप ही बनकोटा क्षेत्र में होलो ब्लाक बनाने की यूनिट स्थापित कर दी। कर्नाटक से मशीन मंगा कर चार, छह तथा आठ इंच के तीन प्रकार के होलो ब्लाक बनाने का कार्य शुरु कर दिया। अब अच्छा खासा काम भी शुरू हो गया है। गाव के ही पंद्रह से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दे डाला। रोजाना पचास से ज्यादा होलो ब्लाक तैयार किए जाते हैं। खास बात यह है कि गाव में तैयार ब्लाक ईट से ढाई गुना मजबूत है। उष्मा रोधी होने के साथ ही भूकंपरोधी भी है। कंक्रीट, रेत व उच्च गुणवत्ता के सीमेंट के मिश्रण के बाद कर्नाटक से लाई गई हाईटेक मशीन से होलो ब्लॉक तैयार किए जाते हैं।
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गाव गाव पहुंचाना है पहली प्राथमिकता
रमेश सिंह तड़ियाल कहते हैं कि जब भी पहले गाव आते तो गाव के बच्चे उन्हें नहीं पहचानते थे। तब काफी अफसोस होता इसीलिए उन्होंने गाव में ही रह कर कुछ करने की ठान ली। अब होलो ब्लाक यूनिट स्थापना के बाद से वह अक्सर गाव में ही रहते हैं। होलो ब्लॉक देघाट, स्यालदे, गैरखेत, मासी, भिकियासैंण, मानिला आदि क्षेत्रों में भेजे जा रहे हैं। बताया कि होलो ब्लाक्स की बिक्त्री गावों में ही करने का लक्ष्य भी है।
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जल्द आसपास के बाजारों में भी उपलब्ध होंगे होलो ब्लॉक
समीपवर्ती ताड़ीखेत, मजखाली, बगवालीपोखर, बेतालघाट, गरमपानी, भतरौजखान आदि बाजारों में भी होलो ब्लाक उतारने की तैयारी है। रमेश के अनुसार जल्द ही वह छोटे छोटे बाजारों में होलो ब्लाक्स की बिक्त्री शुरु करेंगे। इसका उद्देश्य गाव में बनने वाले मकानों तक इनकी आपूर्ति करने की है।
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मित्र व रिश्तेदारों ने दिया हौंसला, बने मददगार
होलो ब्लाक की यूनिट गाव में स्थापित करने में काफी अड़चने आई पर रमेश ने हार नही मानी। रमेश कहते हैं कि कर्नाटक से आठ लाख रुपये की भारी-भरकम लागत से मशीन मंगाने में भी शुरुआती चरण में काफी दिक्कत आई। रिश्तेदारों व जान पहचान के लोगों तथा मित्रों से पैसा इकट्ठा कर बमुश्किल कर्नाटक से आठ लाख रुपये की कीमत की मशीन मंगवाई साथ ही अन्य सामग्री के लिए भी जैसे तैसे पैसे जुटाए। अब गावों में जगह-जगह आपूर्ति होने से काफी हद तक राहत मिली है।