जवाहर की जेल को जेलर तो दिला दो हुजूर
राहुल पाडेय, अल्मोड़ा अंग्रेजों के जमाने में बनी जिला जेल अपनी बदहाली पर आंसू बही रहा है।
राहुल पाडेय, अल्मोड़ा
अंग्रेजों के जमाने में बनी जिला जेल अपनी बदहाली पर आंसू बही रहा है। इस जेल की कई बैरकें कैदियों के रहने लायक ही नहीं बची हैं। जिनकी हालत कुछ ठीक है उनमें भेंड़- बकरियों की तरह कैदियों को ठूंसा गया है। यह ऐतिहासिक जेल 146 साल की आयु पूरी कर चुकी है। इस जेल में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल व पं. गोविंद बल्लभ पंत जैसी नामी हस्तिया अंग्रेजों के कैदी के रूप में रह चुके हैं।
अल्मोड़ा जेल की चाहे सुरक्षा हो या प्रबंधन बुरी तरह बदहाल है। चार जिलों के कैदियों को संभालने वाली जेल में सृजित पदों में से अधिकाश खाली पड़े हैं। इस जेल में जेलर तक की तैनाती नहीं है। जबकि डिप्टी जेलरों के भी तीन पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। बंदी रक्षक के 40 पद सृजित होने के बाद भी महज 24 से ही काम चलाया जा रहा है। अल्मोड़ा की कड़कड़ाती ठंड में यदि कोई कैदी बीमार हुआ तो उसे देखने के लिए न तो स्थायी चिकित्सक हैं और न ही बीमार को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस है। जेल प्रशासन रिक्त पदों को भरने व सुविधाओं को बढ़ाने के लिए शासन से कई बार फरियाद कर चुका है। लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
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अल्मोड़ा जिला जेल में यह पद है रिक्त
पद - स्वीकृत - कार्यरत - रिक्त
जेलर , 01 - 0 - 0़1
चिकित्साधिकारी 01 - 0 - 01
डिप्टी जेलर 04 - 01 - 03
प्रधान बंदी रक्षक 06 - 04 - 02
महिला प्रधान बंदी रक्षक 01 - 00 - 01
बंदी रक्षक , 40 - 24 - 20
रिजर्व बंदी रक्षक 04 - 00 - 04
एंबुलेंस 01 - 00 - 01
बारबर 01 - 0 - 01
अनुसेवक 70 - 39 - 31
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पुरानी नीलाम हो तो मिले नई एंबुलेंस
अल्मोड़ा जेल में कैदियों का स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें अस्पताल
ले जाने के लिए एंबुलेंस तक नसीब नहीं है। पूर्व में मिली एंबुलेंस अब खटारा हो
चुकी है। सरकारी पेंच यह है कि जब तक पुरानी नीलाम न हो तब तक नई नसीब
नहीं हो सकती।
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यह स्वतंत्रता सेनानी रहे जेल में
जिला कारागार अल्मोड़ा में पं जवाहर लाल नेहरू पहले तीन माह व दोबारा एक साल, हरगोविंद पंत तीन माह, गोविंद बल्लभ पंत 11 माह, देवी दत्त पंत तीन माह, आचार्य नरेंद्र देव पाच दिन, बद्री दत्त पाडे तीन माह, खान अब्दुल गफ्फार खा दो माह, सैय्यद अली जहीर दो माह, दुर्गा सिंह रावत नौ दिन अंग्रेजो की कैद में रहे।
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जेल की घटी से होता था अल्मोड़े का भोर
जेल की स्थापना के समय घडियों का चलन न के बराबर था, तब जेल के बाहर एक घटी लगायी गयी थी। तब अल्मोड़ा वासियों को चाहे स्कूल जाना हो या आफिस समय का यही बोध कराती थी। यह घटी जेल के बाहर आज भी मौजूद है।
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अल्मोड़ा जेल काफी पुरानी हो चुकी है। बैरकों की हालत ठीक न होने से क्षमता से चार गुने अधिक कैदी एक बैरक में रखने पड़ रहे हैं। वर्तमान में बैरकों की मरम्मत का कार्य किया जा रहा है। कर्मचारियों की कमी व सुविधाएं बहाल करने के लिए शासन से पत्राचार किया जा रहा है।
-एसके सुखीजा, जेल अधीक्षक, अल्मोड़ा