दावानल के कहर से खतरे में हिमालय के भूगर्भीय जल भंडार
संवाद सहयोगी रानीखेत साल दर साल वनाग्नि के कहर से धरती की कोख कराहने लगी है। वजह दावान
संवाद सहयोगी, रानीखेत : साल दर साल वनाग्नि के कहर से धरती की कोख कराहने लगी है। वजह, दावानल की लपटें कुदरत के उस प्राकृतिक विज्ञान को भी खाक कर रही, जो वर्षाजल को भूमिगत जल भंडारों तक पहुंचाता है। ताजा शोध रिपोर्ट पर गौर करें तो आग से बेहाल जंगलात की मिट्टी में बरसाती पानी को खुद में समेटने की कूवत खत्म होने लगी है। नतीजा, 88 फीसद बारिश का पानी उपजाऊ मिट्टी को बहाता हुआ सीधा बर्बाद हो रहा है। यानी धरा की कोख में मात्र 12 प्रतिशत पानी ही पहुंच रहा है। वैज्ञानिक आगाह करते हैं कि यदि वनाग्नि पर प्रभावी नियंत्रण को ठोस नीति न बनी तो भूजल भंडार बेपानी हो जाएंगे। इससे नदियों को पानी मिलना ही बंद हो जाएगा।
दरअसल, नदियों को सींचने के लिए प्रकृति का अपना विज्ञान काम करता है। चौड़ी पत्ती वाले मिश्रित वन क्षेत्र। नीचे छोटी झाड़ियां व लताएं, सड़ी पत्तियां, फिर घास। सबसे नीचे धरती की सतह पर उपजाऊ मिट्टी की परत। वर्षाजल चौड़ी पत्तियों से टकरा कर झाड़ियों पर गिरा। लताओं के जरिये सड़ी पत्तियों से सरकता घास फिर मिट्टी की परत से रिस कर भूजल मंडार तक पहुंचा। मगर पिछले डेढ़ दो दशक से प्राकृतिक विज्ञान वनाग्नि से तबाह होता जा रहा। कोसी आदि गैरहिमानी नदियों के पुनर्जनन में जुटे जियो स्पेशल चेयरप्रोफेसर राष्ट्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग प्रो. जीवन सिंह रावत अपने शोध का हवाला दे कहते हैं, जंगलात खोखले होते जा रहे हैं। दावानल से बेजार 70 फीसद चीड़ वन क्षेत्रों में बरसाती पानी भूजल तल की ओर रिसने के बजाय आग से कमजोर कई टन उपजाऊ मिट्टी को सीधा बहा ले जा रही। इससे नदियों का जलस्तर व प्रवाह पर भी संकट बढ़ रहा।
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कभी 90 फीसद पानी होता था स्टॉक
हिमालयी क्षेत्र के भूगर्भीय भंडारों तक छह दशक पूर्व तक 90 फीसद वर्षाजल स्टॉक होता था। 30 साल पहले यह आंकड़ा 35 प्रतिशत और अब 12 प्रतिशत पानी ही धरा की कोख तक पहुंच रहा है।
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किस जंगल में कितना पानी स्टॉक
क्षेत्र क्षमता (फीसद)
= बांज जोन : 23
= चीड़ जोन : 08
= कृषि भूमि : 15
= बंजर भूमि : 05
= कंक्रीट जंगल: 02
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दावानल और घातक
अपघटित चीड़ वन क्षेत्रों में वनाग्नि के बाद बरसात में मात्र आठ फीसद पानी ही भूगर्भीय जल भंडार तक पहुंच रहा। यानी 92 प्रतिशत वर्षा जल बेकार।
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'हम संकट के दौर से गुजर रहे। वनाग्नि जल व जंगल की बड़ी दुश्मन है। हिमालयी राज्य में 100 मिमी वर्षा के बावजूद 12 मिमी पानी का भूगर्भीय जल भंडारों तक पहुंचना खतरनाक है। नदियों के पुनर्जनन से पूर्व वनाग्नि से निपटने को ठोस नीति बनानी होगी। भूमिगत जल भंडार ही नहीं भरेंगे तो नदियां कैसे बचेंगी।
-प्रो.जीवन सिंह रावत, निदेशक एनआरडीएमएस कुमाऊं विवि'