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प्रवासी के जुनून से बंजर में खिल उठा 'लाल सोना'

लाकडाउन में पहाड़ लौटे प्रवासी का जुनून बंजर में सोना उगलने लगा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 08 Dec 2020 11:53 PM (IST)Updated: Tue, 08 Dec 2020 11:53 PM (IST)
प्रवासी के जुनून से बंजर में खिल उठा 'लाल सोना'
प्रवासी के जुनून से बंजर में खिल उठा 'लाल सोना'

दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा

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लाकडाउन में पहाड़ लौटे प्रवासी का जुनून बंजर में सोना उगलने लगा है। पलायन से ऊसर पड़ी पुश्तैनी जमीन पर चीड़ का जंगल साफ कर उसे नौजवान ने नए सिरे से खेतों की शक्ल दी। उसका जज्बा देख उद्यान विभाग ने मदद को हाथ बढ़ाए। शेर ए कश्मीर विश्वविद्यालय के विज्ञानियों के दल ने उसे केसर उत्पादन का खास प्रशिक्षण दिया। प्रयोग के तौर पर 12 किलो कश्मीरी केसर के बल्ब लगाए गए। रानीखेत व शीतलाखेत से गरम कोसी के धासम गांव में पहले ही सीजन में 'लाल सोने' की पैदावार ने सुनहरे भविष्य की राह दिखाई है। विज्ञानियों व विशेषज्ञों की मानें तो अगले वर्ष और अधिक गुणवत्ता वाले केसर के फूल खिलेंगे। रकबा भी बढ़ाया जाएगा।

धामस गांव (हवालबाग ब्लाक) के रणजीत सिंह बिष्ट लाकडाउन में दिल्ली से गांव लौट आए। वैश्विक महासंकट के रोजगार छिनने की पीड़ा को भूल इस जुनूनी युवा ने बाबा दादाओं की जोड़ी जमीन तलाश की। पलायन से जंगल व पहाड़ीनुमा टीला बन चुकी भूमि पर फावड़ा गैंती चला खेत बनाए। कृषि बागवानी के जरिये बेरोजगारी दूर करने की ठानी। अब रणजीत सिंह 50 नाली कृषि भूमि पर हाड़तोड़ मेहनत कर तमाम फसलें उगा रहे। कश्मीरी केसर पर सफल प्रयोग से उत्साहित प्रवासी अगले सीजन में क्षेत्रफल बढ़ाने का मन बना चुका है। साथ ही तीन चार अन्य ग्रामीणों को स्वरोजगार से भी जोड़ लिया है।

शुरूआत चुनौतीपूर्ण रही

प्रवासी रणजीत सिंह शुरूआत में व्यवस्था से हारने लगा था। जंगली सूअरों व अन्य जानवरों से फसल बचाने को चहारदीवारी के लिए ब्लाक के चक्कर लगाए। पर मनरेगा से काम न हो सका। अधिकारियों ने भी आश्वासन दिया पर काम न हो सके। प्रवासी की इस पीड़ा को 'दैनिक जागरण' ने प्रमुखता से उभारा।

ऐसे जगी उम्मीद

इसी बीच मुख्य उद्यान अधिकारी त्रिलोकीनाथ पांडेय ने प्रवासी को प्रोत्साहित किया। दो पालीहाउस मंजूर किए। बीज उपलब्ध कराए। जीबी पंत संस्थान के राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत केसर पर शोध व अध्ययन में जुटे शेर ए कश्मीर विवि के विज्ञानियों के दल का दौरा कराया। प्रायोगिक तौर पर 12 किलो (करीब 600 बल्ब) कश्मीरी केसर के बल्ब लगाए गए जो इस सीजन अच्छाखासा खिल उठा है। शेर ए कश्मीर विवि के विज्ञानी तौशीर अली ने भी रणजीत सिंह के जज्बे की सराहना की है। 'उद्यान विभाग से बहुत सहयोग मिला। गुणवत्ता जांच के लिए जीबी पंत संस्थान के विज्ञानियों व उद्यान अधिकारी त्रिलोकीनाथ पांडेय की मदद ली जाएगी। बल्ब सितंबर आखिर में लगाए थे। अक्टूबर आखिर में फूल निकले। एक बल्ब में दो फूल भी आए। अगले वर्ष केसर का क्षेत्रफल बढ़ाया जाएगा।

- रणजीत सिंह बिष्ट, प्रवासी धामस गांव' 'धामस के प्रवासीय युवा ने वाकई मेहनत की है। पहले वर्ष फूल कम निकलते हैं। अगले वर्ष और अच्छे फूल खिलेंगे तो केसर उत्पादन भी बढ़ने लगेगा। बल्ब चार वर्ष तक स्वस्थ रहते हैं। हम लगातार प्रोत्साहित भी कर रहे। चौबटिया, खनिया, शीतलाखेत व जलना लमगड़ा क्षेत्र में भी ग्रामीणों को प्रेरित कर रहे। केसर की कीमत डेढ़ से तीन लाख रुपये प्रति किग्रा तक है।

- त्रिलोकीनाथ पांडेय, मुख्य उद्यान अधिकारी'


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