ऊर्जा से अतिकुपोषित बच्चों को मिल रहा नया जीवन
पहाड़ी उत्पादों से मिलकर बन रहा सप्तआहार अतिकुपोषित बच्चों के लिए वरदान साबित हो रहा है। भैसियाछाना ब्लाक में बन रहे इस सप्तआहार से आज तीन जिलों के अतिकुपोषित बच्चों को पोषाहार मिल नई ऊर्जा मिल रही है।
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : पहाड़ी उत्पादों से मिलकर बन रहा सप्तआहार अतिकुपोषित बच्चों के लिए वरदान साबित हो रहा है। भैसियाछाना ब्लाक में बन रहे इस सप्तआहार से आज तीन जिलों के अतिकुपोषित बच्चों को पोषाहार मिल नई ऊर्जा मिल रही है।
पहाड़ में भी कुपोषण धीरे-धीरे अपनी जड़ जमा रहा है। कई बच्चे कुपोषण की चपेट में आकर असमय दम तोड़ रहे हैं। खासकर पिछड़े, दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में। कुपोषण से निपटने के लिए भैसियाछाना ब्लाक ने जिम्मेदारी उठाई। तीन साल पूर्व यहां नारी एकता स्वायत्त सहकारिता, जमराड़ी के माध्यम से पहाड़ी अनाजों को मिलाकर रेडी टू यूज थेराप्यूटिक फूड आरयूटीएफ तैयार किया गया। अतिकुषोषित बच्चों के लिए यह भोजन तैयार किया जाना था इसके लिए इसका नाम ऊर्जा रखा गया। धीरे-धीरे जब अति कुपोषित बच्चों में इस भोजन का फायदा देखा गया तो बाल विकास विभाग के माध्यम से इसका दायरा बढ़ाया गया। आज तीन जिलों में अति कुपोषित बच्चों को यह भोजन निश्शुल्क में दिया जा रहा है।
पोषण युक्त सप्तआहार ऊर्जा अल्मोड़ा जिले के साथ पिथौरागढ़ और चम्पावत जिले के अतिकुपोषित बच्चों को पोषण दे रहा है। सहकारिता के ब्लाक समन्वयक के जगत सिंह ने बताया कि इस कार्य में कुल 12 महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है। उत्पाद निर्माण के साथ पैकेजिग का कार्य करती है। महिलाएं 10 से 15 हजार रुपए प्रतिमाह आसानी से आय अíजत कर रही है। एक पैकेट की लागत 150 रुपये आती है। अतिकुपोषित के साथ अन्य लोग भी स्वस्थ रहने के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं।
पहाड़ी घी के साथ मिलाकर बनता है उत्पाद
महिलाओं ने आयूटीएफ को बनाने की तकनीक पंतनगर में सीखी। सात अनाजों को पीस कर पहाड़ी घी के साथ पकाकर सप्तआहर ऊर्जा तैयार किया जाता है।
सप्तआहार ऊर्जा में पड़ने वाले अनाज पहाड़ी गेहूं, मडुवा व रामदाना, सोयाबीन, भुना चना, मूंगफली दाना, चीनी बुरा, पहाड़ी घी - अतिकुपोषित बच्चों के लिए जिलों में डिमांड- पिथौरागढ़ - 89 पैकेट
चम्पावत - 288 पैकेट
अल्मोड़ा - 470 पैकेट
लमगड़ा की सहकारिता बेहतरीन कार्य कर रही है। अन्य जगहों पर भी ऐसे अभिनव प्रयोग किए गए है ताकि लोगों को अधिक से अधिक रोजगार मिल सके और पहाड़ से पलायन को रोका जा सके।
- कैलाश चंद्र भट्ट, प्रबंधक, एकीकृत आजीविका परियोजना