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अब कुमाऊंनी में पढ़ने को मिलेगी युग पुरुष की आत्मकथा

दीप सिंह बोरा अल्मोड़ा एकात्म मानववाद के प्रणेता स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा अब कुमाऊंन

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 05:00 AM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 05:14 AM (IST)
अब कुमाऊंनी में पढ़ने को मिलेगी युग पुरुष की आत्मकथा
अब कुमाऊंनी में पढ़ने को मिलेगी युग पुरुष की आत्मकथा

दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा

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एकात्म मानववाद के प्रणेता स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा अब कुमाऊंनी में पढ़ने को मिलेगी। हिमालय यात्रा के दौरान अलौकिक काकड़ीघाट में जिस ज्ञानवृक्ष की छांव में आत्मज्ञान के साथ उन्हें दिव्य अनुभूति हुई थी, उसे सेवानिवृत्त शिक्षक एवं कवि ने आंचलिक भाषा में अनुवाद करने की अनूठी पहल शुरू की है। इससे आम आदमी इस स्थल की महत्ता व युग पुरुष के रिश्तों को जान सकेगा। कुमाऊंनी बोली को नई पहचान भी मिलेगी।

स्वामी विवेकानंद 29 अगस्त 1890 को अल्मोड़ा की ओर जाते वक्त अपने गुरुभाई स्वामी अखंडानंद के साथ सिरौत, कोसी व शिप्रा की त्रिवेणी पर रुके। उन्हें काकड़ीघाट की सकारात्मक तरंगों ने मुग्ध कर दिया था। रात्रि विश्राम के बाद अगली सुबह युग पुरुष एक शिला के पास पीपलवृक्ष की छांव में ध्यान लगाकर बैठ गए। कुछ ही पलों में दिव्य स्थल पर उन्हें जो अनुभूति हुई उसे उन्होंने गुरुभाई को बताया। आत्मकथा में भी लिखा। अब स्वामी विवेकानंद की उसी अनुभूति व विचारों को सेवानिवृत्त शिक्षक एवं हिदी व कुमाऊंनी कवि देवकीनंदन कांडपाल ने आंचलिक भाषा में अनुवाद किया है। वह देवभूमि में पहाड़ की तरफ बढ़ते कदम खासतौर पर काकड़ीघाट से जुड़े युग पुरुष के अन्य संस्मरण, अनुभव व विचारों को भी कुमाऊंनी में अनुवाद करने की तैयारी में हैं।

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अनुभूति जिसे विज्ञान ने दी मान्यता

स्वामी विवेकानंद ने काकड़ीघाट में जो अनुभव किया, उस पर लिखा था- 'अभी अभी मैं अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षण से गुजरा हूं। इस पीपल वृक्ष के नीचे मेरे जीवन की एक महान समस्या का समाधान हो गया है। मैंने सूक्ष्म ब्रह्मांड और वृहत ब्रह्मांड के एकत्व का अनुभव किया है। जो कुछ ब्रह्मांड में है, वही इस शरीर रूपी पिंड में भी है। मैंने संपूर्ण ब्रह्मांड को एक परमाणु के अंदर देखा है'। उनकी इस अनुभूति को विज्ञान ने भी माना।

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युग पुरुष काकड़ीघाट में रुके, ध्यान लगाया, उन्हें सूक्ष्म व वृहद ब्रह्मांड के एकत्व का ज्ञान यहीं मिला। जाहिर है स्वामी जी की तपोस्थली कुमाऊं की धरोहर है। इसलिए स्वामी जी के विचारों को कुमाऊंनी बोली में अनुवाद करना यहां की भाषा को सम्मान देने जैसा है।

- देवकीनंदन कांडपाल, सेवानिवृत्त शिक्षक एवं कवि

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यह देवकीनंदन मास्साब की सराहनीय पहल है। इससे हरेक ग्रामीण विशेषतौर पर युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद के बारे में बहुत कुछ जान सकेगी। कुमाऊंनी भाषा बोली को संरक्षण व बढ़ावा देने में मदद भी मिलेगी।

- हरीश सिंह परिहार, अध्यक्ष विवेकानंद सेवा समिति काकड़ीघाट शाखा


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