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लेखन शैली बन गईं मुंशी जी की जमीनी बातें, जयंती पर वाराणसी में हुए कई कार्यक्रम

मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर शुक्रवार को कई जगहों पर विविध आयोजन हुए। जन्म स्थली लमही में केक काटा गया तो वेब संगोष्ठी और चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 10:06 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 12:59 AM (IST)
लेखन शैली बन गईं मुंशी जी की जमीनी बातें, जयंती पर वाराणसी में हुए कई कार्यक्रम
लेखन शैली बन गईं मुंशी जी की जमीनी बातें, जयंती पर वाराणसी में हुए कई कार्यक्रम

वाराणसी, जेएनएन। मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर शुक्रवार को कई जगहों पर विविध आयोजन हुए। जन्म स्थली लमही में केक काटा गया तो वेब संगोष्ठी और चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।कोरोना महामारी के कारण मुंशी प्रेमचंद की 140वीं जयंती पर शुक्रवार को उनके गांव लमही में भले मेला न सजा लेकिन गरीब-गुरबा की आवाज को कलम से मुखर करने वाले उपन्यास सम्राट घर-घर याद किए गए। इस बार कोरोना महामारी के कारण गांव में कोई आयोजन तो नहीं किया गया हिंदीसेवियों ने पुष्पांजलि अर्पित कर चरण रज सिर-माथे लगाई। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. श्रद्धानंद ने कहा कि मुंशी जी ने उपन्यास और कहानियों से समाज को पैगाम दिया है। उनके साथ प्रभारी क्षेत्रीय सांस्कृतिक अधिकारी डा. यशवंत सिंह राठौर, सुरेश चंद्र दुबे, सलीम राजा, दुर्गा श्रीवास्तव, अतुल सिंह, कांग्रेस नेता मनीष चौबे ने मुंशी जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। मुंशी जी की जयंती पर हर वर्ष की तरह इस बार भी लमही का जन्मदिन मनाया गया। ग्राम प्रधान ने स्मारक स्थल पर गांव के लोगों के साथ केक काटा।

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सपा व कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दी पुष्पांजलि

पांडेयपुर चौराहा स्थित मुंशी जी की प्रतिमा पर कांग्रेस महानगर उद्योग व्यापार समिति अध्यक्ष मनीष चौबे ने सुजीत गुप्ता, हृदय गुप्ता, राजीव यादव, शिवशंकर विश्वकर्मा के साथ पुष्पांजलि अर्पित की। सपा नेता आशुतोष सिन्हा, राहुल श्रीवास्तव, दिनेश प्रताप सिंह, गोपाल पांडेय, विष्णु गुप्ता, विवेक श्रीवास्तव ने माल्यार्पण कर उन्हेंं याद किया।

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी बेबाक लेखनी और साहित्य के माध्यम से समाज को अक्स दिखाया

फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने अपनी बेबाक लेखनी और साहित्य के माध्यम से समाज को अक्स दिखाया। उनकी जमीनी बातें उनके लेखन कला की एक शैली बन गईं। नामदेव मुंशी प्रेमचंद जयंती पर शुक्रवार को बीएचयू की ओर से आयोजित वेब संगोष्ठी में मुख्य अतिथि थे। उन्होंने अजय मिश्र और प्रो. मंजीत चतुर्वेदी के संयुक्त लेखन की नाट्य व उपन्यास रचना तर्पण ताम-ढकोसला का ऑनलाइन विमोचन किया।मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं, कफन व मंत्र पर आधारित नाट्य संग्रह भी जनता को समर्पित किया। उन्होंने मुंशी जी की कृतियों और वर्तमान में उनके प्रभाव और प्रासंगिकता पर ढाई घंटे तक विमर्श किया। इस दौरान काशी विद्यापीठ के पूर्व कुलपति पृथ्वीश नाग, भोजपुरी अध्ययन केंद्र के प्रो. सदानंद शाही, सोफिया यूनिवॢसटी बुल्गारिया के प्रो. आनंद वर्धन शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार शिव कुमार, लंदन से प्रो. केदार द्विवेदी, बीएचयू के प्रो. भूपेंद्र विक्रम सिंह, रंगकर्मी और पूर्व छात्रनेता रत्नाकर त्रिपाठी ने अपने संबोधन में मुंशी जी को अनंत काल तक पढ़े जाने वाला लेखक बताया।

साहित्यकारों ने कहा कि उनका लेखन समाज की वेदना और संवेदना का पैमाना है। जब भी अन्याय, शोषण और अत्याचार की बात उठेगी उसके मायने मुंशी प्रेमचंद की लेखनी में ही तलाशे जाएंगे। संचालन उपपुस्तकालाध्यक्ष डा. संजीव सराफ, स्वागत प्रो. मंजीत चतुर्वेदी व धन्यवाद ज्ञापन फिल्मकार अरूण श्रीवास्तव ने किया।

मुंशी प्रेमचंद ने समाज की कुरीतियों पर किया प्रहार

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर प्रहार किया। उनकी रचनाओं में सामाजिक विचार, हालात व समस्या ही नहीं उसका निदान भी देखने को मिलता है।

मुंशी प्रेमचंद्र की जयंती के उपलक्ष्य में हिंदी विभाग, अग्रसेन पीजी कालेज की ओर से शुक्रवार को आयोजित 'हमारे समय में प्रेमचंद' विषयक वेबिनार में ये बातें वक्ताओं ने कही। मुख्य वक्ता ङ्क्षहदी विभाग, बीएचयू के प्रो. सदानंद ने कहा कि प्रेमचंद को पढऩे व समझने के लिए व्यापक दृष्टि रखनी होगी। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार व समीक्षक डा. राम सुधार सिंह ने कहा कि प्रेमचंद को समझने के लिए उनके लेख और पत्रों को भी पढऩा होगा।

संस्था के प्रबंधक अनिल कुमार जैन ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में गांव व शहर दोनों का परिवेश झलकता हैं। वहीं, आधुनिक की चकाचौंध भी उनकी रचनाओं में देखने को मिलती है। प्राचार्य डा. कुमकुम मालवीय ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास अपने युग का दस्तावेज है, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने विचारों को बहुत ही रोचकता के साथ प्रस्तुत किया था। संचालन डा. अर्चना सिंह, संयोजन प्रियंका अग्रवाल व धन्यवाद ज्ञापन डा. आरती सिंह ने किया।


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