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Buddha Purnima पर सारनाथ में अपने-अपने बौद्ध मठों में भगवान बुद्ध की हुई पूजा, रातभर चला महापरित्रण पाठ

सारनाथ में 2564 वां वैशाख बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर गुरुवार को बौद्ध भिक्षुओं ने अपने-अपने बौद्ध मठों एंव घरों में ही भगवान बुद्ध की पूजा कर विश्व कल्याण की कामना की ।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 07 May 2020 02:37 PM (IST)Updated: Thu, 07 May 2020 07:43 PM (IST)
Buddha Purnima पर सारनाथ में अपने-अपने बौद्ध मठों में भगवान बुद्ध की हुई पूजा, रातभर चला महापरित्रण पाठ
Buddha Purnima पर सारनाथ में अपने-अपने बौद्ध मठों में भगवान बुद्ध की हुई पूजा, रातभर चला महापरित्रण पाठ

वाराणसी, जेएनएन। कोरोनावायरस महामारी के चलते लॉकडाउन में भगवान बुद्ध की नगरी सारनाथ में  2564 वां वैशाख बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर गुरुवार को बौद्ध भिक्षुओं ने अपने-अपने बौद्ध मठों एंव घरों में  ही भगवान बुद्ध की पूजा कर विश्व कल्याण की कामना की। शक्ति पीठ आश्रम स्थित धम्म शिक्षण केंद्र में गुरुवार की सुबह 7 बजे भिक्षु चंदिमा के नेतृत्व में बौद्ध भिक्षु बुद्ध प्रतिमा के समक्ष दीप जला कर सूत्र पाठ किये। एवं शाम को बौद्ध मठ दीपों की रोशनी से जगमगायेगा ।

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भिक्षु चंदिमा ने बताया कि आज भी भगवान बुद्ध के संदेश प्रासंगिक है। लॉकडाउन के चलते एक से सात मई तक आॅनलाइन बुद्ध पूर्णिमा मनाया गया जिसमें पूजा, ध्यान, प्रवचन शामिल था। साथ ही कोरोना महामारी के बचाव के लिए विश्व कल्याण के लिए बुधवार की रात 8 बजे से गुरुवार की सुबह 8 बजे तक पूरी रात महापरित्रण पाठ हुआ। इसी प्रकार थाई बौद्ध बिहार, मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर, चाइनीज बौद्ध मंदिर, तिब्बती बौद्ध मंदिर व अपने अपने घरों में रह कर बौद्ध अनुयायियोंने भगवान बुद्ध की पूजा की। इस मौके पर भिक्षु प्रिय दर्शी, करुणा रक्षित, धम्म रक्षित, ज्ञान रक्षित शामिल थे। मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर में विहाराधिपति भिक्षु के मेधानकर थेरो के नेतृत्व में विश्व शांति व कोरोना महामारी के बचाव के लिए विशेष पूजा की गई। शाम सात बजे मन्दिर परिसर को दीपों से सजाया जाएगा।

सारनाथ में गौतम बुद्ध का धार्मिक संबंध

बुद्ध के प्रथम उपदेश (लगभग 533 ईपू) से 300 वर्ष बाद तक का सारनाथ का इतिहास अज्ञात है: क्योंकि उत्खनन से इस काल का कोई भी अवशेष नहीं प्राप्त हुआ है। सारनाथ की समृद्धि और बौद्ध धर्म का विकास सर्वप्रथम अशोक के शासनकाल में दृष्टिगत होता है। उसने सारनाथ में धर्मराजिका स्तूप, धमेख स्तूप एवं सिंह स्तंभ का निर्माण करवाया। अशोक के उत्तराधिकारियों के शासन-काल में पुन: सारनाथ अवनति की ओर अग्रसर होने लगा। ईपू दूसरी शती में शुंग राज्य की स्थापना हुई, लेकिन सारनाथ से इस काल का कोई लेख नहीं मिला। प्रथम शताब्दी ई. के लगभग उत्तर भारत के कुषाण राज्य की स्थापना के साथ ही एक बार पुन: बौद्ध धर्म की उन्नति हुई। कनिष्क के राज्यकाल के तीसरे वर्ष में भिक्षु बल ने यहां एक बोधिसत्व प्रतिमा की स्थापना की। कनिष्क ने अपने शासन-काल में न केवल सारनाथ में वरन् भारत के विभिन्न भागों में बहुत-से विहारों एवं स्तूपों का निर्माण करवाया। एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार बौद्ध धर्म के प्रचार के पूर्व सारनाथ शिवोपासना का केंद्र था। किंतु, जैसे गया आदि और भी कई स्थानों के इतिहास से प्रमाणित होता है बात इसकी उल्टी भी हो सकती है, अर्थात बौद्ध धर्म के पतन के पश्चात ही शिव की उपासना यहां प्रचलित हुई हो। जान पड़ता है कि जैसे कई प्राचीन विशाल नगरों के उपनगर या नगरोद्यान थे (जैसे प्राचीन विदिशा का सांची, अयोध्या का साकेत आदि) उसी प्रकार सारनाथ में मूलत: ऋषियों या तपस्वियों के आश्रम स्थित थे जो उन्होंने काशी के कोलाहल से बचने के लिए, किंतु फिर भी महान नगरी के सान्निध्य में, रहने के लिए बनाए थे।


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