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दुनिया देखेगी बनारस की नींव के पत्थर, उत्खनन स्थल के समीप खिड़किया घाट पर विकसित होंगी सैलानी सुविधाएं

गंगा और उसके घाट गलियां सारनाथ और श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर समेत देवालयों की विशाल शृंखला से भी आगे बढ़ कर पुराने शहर के नींव के पत्थरों तक जाएगी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 04:33 PM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 10:24 PM (IST)
दुनिया देखेगी बनारस की नींव के पत्थर, उत्खनन स्थल के समीप खिड़किया घाट पर विकसित होंगी सैलानी सुविधाएं
दुनिया देखेगी बनारस की नींव के पत्थर, उत्खनन स्थल के समीप खिड़किया घाट पर विकसित होंगी सैलानी सुविधाएं

वाराणसी [प्रमोद यादव]। धर्म और कला- संगीत की नगरी काशी में पर्यटन का दायरा बढऩे जा रहा है। अब बात गंगा और उसके घाट, गलियां, सारनाथ और श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर समेत देवालयों की विशाल शृंखला से भी आगे बढ़ कर पुराने शहर के नींव के पत्थरों तक जाएगी। खिड़किया घाट के पास गुमनाम पड़ी इस विरासत को देश- दुनिया देख पाएगी। इस लिहाज से आसपास के क्षेत्र को विकसित करने का नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन (एनबीसीसी) खाका खींच रहा है।

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 फिलहाल इस विशिष्ट क्षेत्र से जुड़े खिड़किया घाट को जल परिवहन टर्मिनल केरूप में विकसित किया जाएगा। यहां सीएनजी पंप स्टेशन, पार्किंग, नाव या क्रूज पर आने-जाने को जेटी समेत सैलानियों की सुविधा के लिए सुविधाएं विकसित की जाएंगी। यहां वाटर स्पोर्ट्स की संभावना भी तलाशी जाएगी। इसके लिए एनबीसीसी के अधिकारियों का दल बनारस में है जो मंगलवार की शाम मंडलायुक्त के समक्ष प्रोजेक्ट का खाका प्रस्तुत करेगा।

दैनिक जागरण ने पड़ोस में पर्यटन कॉलम के तहत नींव के पत्थरों से मुलाकात, करिए अतीत से बात शीर्षक से पुरातत्व व पर्यटन के लिहाज से समृद्ध इस क्षेत्र की महत्ता की ओर ध्यान दिलाया था। पर्यटन, पुरातत्व व संस्कृति मंत्री डा. नीलकंठ तिवारी ने इस दिशा में कार्य करने का भरोसा दिया था।

आदिकेशव से काशी स्टेशन तक छिपा बनारस का इतिहास

वरुणा संगम यानी आदिकेशव घाट से काशी स्टेशन के दक्षिण प्रह्लाद घाट तक विस्तारित भूभाग के अंतस में वाराणसी का इतिहास छिपा है। जीटी रोड से पड़ाव की ओर बढ़ते मालवीय पुल से पहले बायीं ओर लाल खां मकबरा के उत्तर दिशा में हरी घास व पेड़-पौधों के बीच प्राचीन ईंटों से बनी संरचनाएं वास्तव में इस शहर की नींव है। काशी महाजनपद की राजधानी वाराणसी की पहचान राजघाट के पास इस टीले से की गई। ईंट की संरचनाएं प्राचीन बनारस की गलियों-बाजारों के अवशेष हैैं, जहां कभी अफगानिस्तान से पांडिचेरी तक के व्यापारी लंगर डाले रहते थे। वर्ष 1939 में काशी स्टेशन क्षेत्र में रेलवे लाइन बिछाने के दौरान खोदाई में मिली प्राचीन सामग्री की पुराविदों ने जब पड़ताल की तो काशी की राजधानी के अस्तित्व के संकेत मिले। इसके अगले साल जब पुरातात्विक रीति से जांच-परख की गई तो वाराणसी का संपूर्ण अस्तित्व पूरे प्रमाण के साथ सामने आया और काशी की राजधानी वाराणसी का रहस्य खुला। कालांतर में बीएचयू के पुराविदों ने कई वर्षों तक खोद-शोध कर लगभग तीन हजार साल पुराने नगर के  कुछ भाग को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। वरुणा-अस्सी के बीच विस्तार से सदियों पूर्व वाराणसी की यही सीमा थी।

पर्यटन-पुरातत्व को मिलेगी समग्रता

पर्यटक अब तक राजघाट की ओर सिर्फ लाल खां रौजा देखने या नाव पर बैठने जाते थे। विस्तार की दृष्टि से राजघाट को सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसमें लाल खां रौजा, उत्खनन स्थल, खिड़किया घाट व राजघाट को शामिल किया जा रहा है। माना जा रहा है आगे इसे आदिकेशव तक विस्तार दिया जाएगा। इसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सहमति भी लेनी होगी। एनबीसीसी इसके लिए औपचारिक मुलाकात कर चुका है।


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