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World Nature Conservation Day : जब तक करेंगें प्रकृति का शोषण, नहीं मिलेगा किसी को भी पोषण

प्रकृति हमारी भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन की गतिविधियों के कारण आज विनाश के कगार पर खड़ी है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 29 Jul 2020 08:30 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 03:21 PM (IST)
World Nature Conservation Day : जब तक करेंगें प्रकृति का शोषण, नहीं मिलेगा किसी को भी पोषण
World Nature Conservation Day : जब तक करेंगें प्रकृति का शोषण, नहीं मिलेगा किसी को भी पोषण

बलिया, जेएनएन। प्रकृति हमारी भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन की गतिविधियों के कारण आज विनाश के कगार पर खड़ी है। इस विनष्ट होती प्रकृति को को बचाने में कहीं देर न हो जाए, अन्यथा पृथ्वी के सम्पूर्ण विनाश को रोकना किसी के बस की बात नहीं रह जाएगी। प्रकृति के विनष्ट होने का सबसे अहम् कारण यह है कि प्रकृति प्रदत्त जितने भी महत्वपूर्ण संसाधन रहें हैं उनका उपयोग हम बिना सोचे-समझे अपनी विकासजन्य गतिविधियों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अतिशय दोहन एवं शोषण के रूप में किया है। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर मंगलवार को आनंद नगर में लोगों ने निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया।

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समग्र विकास शोध संस्थान के सचिव व पर्यावरणविद् डॉ.गणेश कुमार पाठक ने कहा कि इन दिनों अधिकांश प्राकृतिक संसाधन समाप्ति के कगार पर हैं एवं कुछ तो सदैव के लिए समाप्त हो गए हैं, जहां तक भारत की बात है तो हमारी भारतीय संस्कृति में निहित अवधारणाएं इतनी इतनी उपयोगी एवं सबल हैं कि उनका पालन कर हम प्रकृति का संरक्षण कर सकते हैं और कर भी रहे हैं। कोरोना ने विश्व की गतिविधियों को जिस तरह से रोक दिया है, उससे पर्यावरण के कारकों में काफी सुधारात्मक लक्षण देखने को मिल रहे हैं। इससे इस बात की तो पुष्टि हो ही जा रही है कि हम प्रकृति के कारकों से जितना ही कम छेड़छाड़ करेंगे, पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। हमारी संस्कृति में ही माता'भूमि: पुत्रोअहम् पृथ्विव्या: की अवधारणा निहित है, जिसके तहत हम पृथ्वी को अपनी माता मानते हैं और अपने को पृथ्वी माता का पुत्र। इस संकल्पना के तहत हम पृथ्वी पर विद्यमान प्रकृति के तत्वों की रक्षा करते हैं। हम पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंगते हुए अपनी मूल अवधारणा को भूलते गए और अंधाधुन्ध विकास के लिए प्रकृति के संसाधनों का अतिशय दोहन एवं शोषण करते गए। इससे देश में भी प्राकृतिक संतुलन अव्यवस्थित होता जा रहा है और हमारे यहां भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

वक्ताओं ने कहा कि आज आवश्यकयता इस बात की है कि हम अपनी सनातन भारतीय संस्कृति की अवधारणा को अपनाते हुए विकास की दिशा सुनिश्चित करें, जिससे विकास भी हो और प्रकृति भी सुरक्षित एवं संतुलित रहे। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब हमारा भी विनाश अवश्यम्भावी हो जाएगा और हम अपना विनाश अपने ही हाथों कर डालेंगे और अन्तत: कुछ नहीं कर पाएंगें। कार्यक्रम का संयोजन नवचंद्र तिवारी ने किया।  


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