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World Environment Day 2021: भारत ने दुनिया को दिया मानसूनी वन का विज्ञान

World Environment Day 2021 बीएचयू के वनस्पति विज्ञानी प्रो. रामदेव मिश्रा के सुझाव पर बना पर्यावरण मंत्रालय1972 में पर्यावरण को लेकर हुई पहली विश्वस्तरीय बैठक स्टॉकहोम सम्मेलन के लिए प्रो. रामदेव मिश्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भाषण की ड्राफ्टिंग भी की थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 05 Jun 2021 07:48 AM (IST)Updated: Sat, 05 Jun 2021 07:55 AM (IST)
World Environment Day 2021: भारत ने दुनिया को दिया मानसूनी वन का विज्ञान
पंचममढ़ी के मानसूनी वन ’ फोटो: मध्य प्रदेश वन विभाग

हिमांशु अस्थाना, वाराणसी। World Environment Day 2021 शाखों से गिरते पत्ते आज हमें भले ही फोटोग्राफी की ओर आकर्षित करते हों, मगर करीब साठ साल पहले एक वनस्पति विज्ञानी को इसमें विज्ञान नजर आ गया था। पत्ते गिराने वाले (पतझड़) वृक्ष हर मामले में अन्य वनस्पतियों से काफी अलग थे, इस बात को दुनिया को सबसे पहले भारत ने ही समझाया। मानसूनी वनों में उन्होंने ऐसी वनस्पतियों को चिह्नित किया, जो वहां बेहतर तरीके से पनपी थीं। इससे पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत हुआ। गौरतलब है कि इस बार के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली’ है।

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विश्व में मानसूनी वनों का पहला अध्ययन और शोध भारत में इकोलॉजी के जनक और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वनस्पति विज्ञानी प्रो. रामदेव मिश्रा ने किया था। भारत के वनों में 70 फीसद की हिस्सेदारी रखने वाले इन मानसूनी या पतझड़ वन (उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन) के बारे में पिछली सदी के छठे दशक तक लोगों को जानकारी नहीं थी। लोगों को उष्ण कटिबंधीय सदाबहार या वर्षा वन ही पता थे, जबकि जलवायु के आधार पर इनकी विशेषता बिल्कुल ही अलग थी। वर्षा वन में पूरे साल 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है और इनके पेड़ों की पत्तियां बेहद कम गिरतीं, जबकि प्रो. मिश्र ने देखा कि मानसूनी वन 70 से 100 सेंटीमीटर सालाना वर्षा वाले क्षेत्रों में ही हैं। उन्होंने वर्गीकरण के तहत मानसूनी वन वाले जलवायु की मैंपिंग की और वहां पर तेजी से विकास करने वाले वृक्षों, जैसे साल, सागवान, नीम व शीशम आदि को चिह्नित किया। फिर इनको तरजीह दी गई।

भारत समेत दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य अमेरिका और उत्तरी आस्ट्रेलिया में एकसमान जलवायु वाले क्षेत्रों में भी इसी तरह के वृक्षों पर ध्यान दिया गया। इससे वहां इनकी बेहतर बढ़ोतरी देखी गई, क्योंकि वैज्ञानिक तौर पर अब यह सिद्ध हो चुका था कि इन क्षेत्रों में मानसूनी वन के उक्त तरह के वृक्ष ही बेहतर विकास करते हैं। इससे लाभ यह हुआ कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा आदि क्षेत्रों के मानसूनी वनों में शीशम, सागवान, साल, आम, चंदन, तेंदु व आंवला जैसे वृक्षों का विस्तार तेजी से किया गया।

..तो भारत पतझड़ वनों के शोध पर करता दुनिया का नेतृत्व: पर्णपाती वनों पर सबसे पहले डाक्टर आफ फिलासफी (पीएचडी) करने वाले प्रो. मिश्र के छात्र और बीएचयू के पूर्व इकोलॉजिस्ट प्रो. केपी सिंह ने बताया कि इस शोध से प्रभावित होकर जार्जिया विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञानी प्रो. गॉली बीएचयू आए और विंध्य क्षेत्र में नौगढ़ के जंगलों में ही एक उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन संस्थान स्थापित करने का प्रस्ताव प्रो. मिश्र को दिया, पर स्थानीय स्तर पर विरोध के कारण यह मध्य अमेरिका के कोस्टा रिका में बनाया गया। यदि वह संस्थान यहां बन जाता तो विंध्य क्षेत्र में नक्सल के बजाय दुनियाभर के पर्यावरण विज्ञानियों का समागम होता और पतझड़ वनों के शोध पर भारत दुनिया का नेतृत्व करता।

ज्ञात की वृक्षों की उत्तरजीविता: प्रो. मिश्र की बेटी और पूर्व वनाधिकारी डा. गोपा पांडेय ने बताया कि जैव विविधता शब्द भले ही 1985 के बाद आया हो, पर इसके संरक्षण के लिए पहला कदम प्रो. रामदेव मिश्र ने ही उठाया था। उन्होंने प्लांट पॉपुलेशन का एक सिद्धांत दिया था, जिसके तहत एक जीवोम (जैवक्षेत्र)में एक साथ विकास कर रहे विविध वृक्षों की उत्तरजीविता ज्ञात की जाती थी। अर्थात वनस्पतियों की प्रतिस्पर्धा में कौन-कौन सी प्रजातियां लंबी अवधि तक टिक सकती हैं और कौन सी कम, इसको पता लगाने की विधा उन्होंने खोजी थी। इसके साथ ही इसका मापन वनस्पति की फ्रिक्वेंसी, सघनता और प्रचुरता (बेसल एरिया) के आधार पर किया।

वृक्षों को पारिस्थितिकी तंत्र के अनुसार दें तरजीह भारत में जितने भी राष्ट्रीय पार्क व अभयारण्य आदि हैं, वहां की इकोलॉजी का संतुलन मानसूनी पेड़ों पर ही आधारित है। रामदेव के शोध से यह पता चलता है कि शीत कटिबंध वाले वृक्षों चीड़, देवदार या फिर वर्षा वन वाले महोगनी, आबनूस व रोजवुड आदि का मानसूनी वन क्षेत्र में विकास नहीं हो सकता। पारिस्थितिकी तंत्र जिन वृक्षों से संतुलित रहे, वहां पर उन्हीं पेड़ों को तरजीह दी जानी चाहिए।

मिश्र के सुझाव पर बना पर्यावरण मंत्रालय1972 में पर्यावरण को लेकर हुई पहली विश्वस्तरीय बैठक स्टॉकहोम सम्मेलन के लिए प्रो. रामदेव मिश्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भाषण की ड्राफ्टिंग भी की थी। उन्हीं के सुझाव पर देश में पर्यावरण विभाग को अलग मंत्रालय का दर्जा मिला था


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