वाराणसी में लकड़ी पर नक्काशी का उद्योग एक बार फिर पकड़ी रफ्तार, प्रदर्शनी ने दी ताकत
मेलों नुमाइश और पर्यटन स्थलों पर लकड़ी के विभिन्न उत्पाद आपूर्ति किए जाते रहे हैं। लॉकडाउन के चलते कहीं भी मेले और नुमाइश नहीं लग रही थी। इसके अलावा पर्यटन स्थलों पर भी सन्नाटा रहता था। अब स्थितियां कुछ बदलाव की ओर है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। कोरोना के कारण वैश्विक महामारी के चलते देशभर में लगे लॉकडाउन के चलते जिले का काष्ठ कला उद्योग ठप हो गया था। मेलों, नुमाइश और पर्यटन स्थलों पर लकड़ी के विभिन्न उत्पाद आपूर्ति किए जाते रहे हैं। लॉकडाउन के चलते कहीं भी मेले और नुमाइश नहीं लग रही थी। इसके अलावा पर्यटन स्थलों पर भी सन्नाटा रहता था। अब स्थितियां कुछ बदलाव की ओर है।
वहीं पूरी अवधि बीत जाने के बाद लकड़ी के नक्काशी वाले सामानों की अब जाकर बहार आई है। करीब छह से सात महीने से शहर में लकड़ी के समान की दुकानें जो बंद थी उनके लिए बड़ा अवसर बनकर आया है उद्योग विभाग द्वारा लगवाई जाने वाली प्रदर्शनी। कल तक शिल्पकारों के सामने जो खाने का संकट था अब उन्होंने राहत की सांस ली है। दीनदयाल हस्तकला संकुल में उद्यों विभाग की प्रदर्शनी में कई ऐसे काष्ठकला से जुड़ें लोग आए हैं जिनकी आमदनी में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ डिक्की यानी दलित इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज की तीन दिवसीय प्रदर्शनी ने भी काफी राहत दिलाई है।
दरअसल, महीनों तक सामान की आपूर्ति बंद होने के चलते काष्ठ कला उद्योग से जुड़े लोग परेशान थे। कुछ कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का संकट है और परिवार के भूखे मरने की नौबत आ गई थी। जिले के 20 हजार परिवारों की आय का प्रमुख जरिया विश्व प्रसिद्ध काष्ठ कला उद्योग माना जाता है। इस काम ने यहां पर कुटीर उद्योग का रूप ले रखा है।
लकड़ी के खिलौने के कारोबारी उज्ज्वल बताते हैं कि बड़ी मात्रा में बनारस से सामान का निर्यात होता रहा है। कोरोना के चलते बंद हो गया था। अब धीरे धीरे निर्यात भी शुरू हो गया है। जीआई टैग मिलने से भी निर्यात पर सकारात्मक असर पड़ा है। ग्राहकों में विश्वास बढ़ा है। आने वाले दिनों में इसमें बढ़ोतरी की और उम्मीद है।