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Women's Day 2021 : कोरोना के तेज धूप में मजदूरों-जानवरों की छांव बनीं आजमगढ़ की मीरा

आजमगढ़ की मीरा चौहान पूरे कोरोना काल में न सिर्फ सबकी मदद करती रहीं बल्कि अपने और परिवार की सेहत का ध्यान भी रखती रहीं। बड़ी संख्या में पैदल अपने घर जाने वालों की भी मीरा ने बहुत मदद की।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 06 Mar 2021 02:08 PM (IST)Updated: Sat, 06 Mar 2021 05:48 PM (IST)
मीरा पूरे कोरोना काल में न सिर्फ सबकी मदद करती रहीं बल्कि अपने और परिवार का ध्यान भी रखती रहीं।

आजमगढ़ [शक्ति शरण पंत] । मुसीबत सबसे पहले इंसान के हौसले पर वार करती है। जिसका हौसला डिगा वह उसका सामना नहीं कर पाता वहीं कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मुसीबत में भी डटे रहते हैं। ऐसा ही एक नाम है आजमगढ़ के नीबी गांव निवासी मीरा चौहान का। मीरा पूरे कोरोना काल में न सिर्फ सबकी मदद करती रहीं बल्कि अपने और परिवार की सेहत का ध्यान भी रखती रहीं।

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मजबूर श्रमिकों को देख पसीजा दिल : बात तब की है जब कोरोना महामारी की गंभीरता लोगों की समझ में आने लगी थी। मीरा के पड़ोस में एक भवन का निर्माण चल रहा था। ठेके पर बिहार से आए बीस मजदूर पूरी तन्मयता से काम कर रहे थे। एक दिन अचानक उनका ठेकेदार बिना बताए और बिना उनको कोई भुगतान किए चला गया। मजदूरों को पहले तो लगा कि ठेकेदार एक-दो दिन में आ जाएगा लेकिन वह नहीं आया। धीरे-धीरे उनके पास बचा-खुचा पैसा भी खत्म हो गया। हालत यह हो गई कि वे लोग भूखे सोने लगे। धीरे-धीरे बात गांव में फैली और मीरा तक पहुंची। जानकारी मिलते ही उन्होंने सबसे पहले बीसों मजदूरों के लिए राशन का इंतजाम किया और अपने पास से कुछ पैसे उनके लिए भिजवाए। उनका मन नहीं माना तो उन्होंने जाकर मजदूरों से मुलाकात भी की और हिम्मत भी बंधाई। मजदूर भोजन की कोई व्यवस्था नहीं कर सके तो मीरा ने करीब डेढ़ महीने तक बीसों मजदूरों के लिए राशन का इंतजाम किया। बीच-बीच में उनको छोटी-मोटी आॢथक मदद भी करती रहीं। इस दौरान कई बार ऐसा भी हुआ कि उनके घर में राशन खत्म हो गया। ऐसी स्थिति में उन्होंने सामाजिक संगठनों की मदद ली और मजदूरों के लिए अन्नपूर्णा का आशीर्वाद बनीं।

रोक-रोककर नाश्ता कराया : कोरोना काल में बड़ी संख्या में पैदल अपने घर जाने वालों की भी मीरा ने बहुत मदद की। उनके दरवाजे के सामने से जो भी जाता वे उनके नाश्ते के लिए पूछतीं ओर भूखों को तुरंत नाश्ता भी करातीं। यह क्रम महामारी के सबसे कठिन पलों तक जारी रहा। यहां तक कि गैर प्रांतों से लौटने वाले मजदूरों को जरूरत पडऩे पर भोजन के साथ ठौर भी दी।

जानवरों से भी लगाव : ऐसा नहीं था कि महामारी के इस काल में मीरा की ममता सिर्फ इंसानों पर बरस रही थी। उसकी बारिश में जानवर भी राहत पा रहे थे। कई लोगों ने चारे के अभाव में जानवरों को खुला छोड़ दिया। ऐसे मजबूर जानवरों के लिए मीरा ने चारे की व्यवस्था की। जब चारा खत्म हो गया तो उन्होंने जानवरों के लिए रोटियां बनानी शुरू की। इसमें भी सामाजिक संगठनों ने उनकी मदद की। मीरा इस जिजीविषा का श्रेय अपने पति ओमप्रकाश चौहान और बेटे सुशांत को भी देती हैं।


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