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वाराणसी भ्रमण के क्रम में अखंड भारत माता मंदिर देख भाव विभोर हुईं मुख्यमंत्रियों की पत्नियां

राज्यों के मुख्यमंत्रियों की पत्नियों ने मंगलवार को काशी का भ्रमण किया I इस क्रम में काशी विद्यापीठ रोड स्थित अखंड भारत माता मंदिर देख मुख्यमंत्रियों की पत्नियां भाव विभोर हो गईं और उनके मुख से सहज भाव से निकल पड़ा कि देश का अखंड भारत का सपना पूरा हो।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 14 Dec 2021 01:41 PM (IST)Updated: Tue, 14 Dec 2021 02:51 PM (IST)
वाराणसी भ्रमण के क्रम में अखंड भारत माता मंदिर देख भाव विभोर हुईं मुख्यमंत्रियों की पत्नियां
वाराणसी भ्रमण के क्रम में अखंड भारत माता मंदिर देख भाव विभोर हुईं मुख्यमंत्रियों की पत्नियां

वाराणसी, जागरण संवाददाता। देश के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों की पत्नियों ने मंगलवार को काशी का भ्रमण किया I इस क्रम में काशी विद्यापीठ रोड स्थित अखंड भारत माता मंदिर देख मुख्यमंत्रियों की पत्नियां भाव विभोर हो गईं और उनके मुख से सहज भाव से निकल पड़ा कि देश का अखंड भारत का सपना पूरा हो।

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मुख्यमंत्रियों की पत्नियां करीब बीस मिनट तय मंदिर परिसर का भ्रमण की I इस दौरान उनके साथ आए गाइड ने उन्हें मंदिर के इतिहास के बारे में विस्तृत से जानकारी दी । बताया कि भारत मां के इस मंदिर के निर्माण के पीछे बाबू शिवप्रसाद गुप्त का उद्देश्य था कि ये एक ऐसी जगह होगी जहां अपने वतन से प्रेम करने वाले लोग किसी भी जाती धर्म या संप्रदाय का हो वो आसानी से बिना किसी रोक - टोक के यहां आ सकें और स्वतंत्रता आन्दोलन को मजबूत किया जा सके. इस अनोखे मंदिर के निर्माण में 30 मजदूर और 25 राजमिस्त्री ने मिलकर किया जिनके नाम आज भी मंदिर के दिवार पर उकरे हुए है। इस मंदिर के मध्य में मकराना संगमरमर पर अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा (अब म्यामांर) और सेलोन (अब श्रीलंका) समेत अविभाजित भारत का एक मानचित्र है. मानचित्र की खासियत ये है कि इसमें करीब 450 पर्वत श्रृंखलाओं और चोटियों, मैदानों, जलाशयों, नदियों, महासागरों और पठारों समेत कई भौगोलिक ढांचों का बारीकी से नक्शा बनाया गया है और यहां मंदिर के नीचे ऐसी भी एक जगह है जहां से इस मानचित्र पर उकेरी गयी पर्वत श्रंखला और नदियां सभी को आसनी से देखा और महसूस किया जा सकता है।

महात्मा गांधी ने किया उद्घाटन

राष्ट्र रत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त को 1913 में करांची कांग्रेस से लौटते हुए मुंम्बई जाने का अवसर मिला था। वहां से वह पुणे गये और धोंडो केशव कर्वे का विधवा आश्रम देखा I आश्रम में जमीन पर 'भारत माता' का एक मानचित्र बना था, जिसमें मिट्टी से पहाड़ एवं नदियां बनी थींI वहा से लौटने के बाद शिवप्रसाद गुप्त ने इसी तरह का संगमरमर का भारत माता का मंदिर बनाने का विचार किया। उन्होंने इसके लिये अपने मित्रों से विचार-विमर्श किया. उस समय के प्रख्यात इंजीनियर दुर्गा प्रसाद सपनों के मंदिर को बनवाने के लिये तैयार हो गये और उनकी देखरेख में काम शुरू हुआ. इस मंदिर को बाबू शिव प्रसाद गुप्ता ने 1918 से 1924 के बीच बनवाया था. इसका उद्घाटन 25 अक्तूबर,1936 को महात्मा गांधी ने किया था. मंदिर का परिमाण अर्थात लंबाई और चौड़ाई 31 फुट 2 इंच और 30 फुट 2 इंच है.  


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