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गंगा और काशी ने जब-जब बुलाया दौड़ा चला आया, गंगा महोत्सव में बोले पद्मभूषण पं. विश्वमोहन भट्ट

मोहन वीणा के जनक ग्रैमी अवार्ड और पद्मभूषण पं. विश्वमोहन भट्ट बुधवार को काशी में गंगा महोत्सव के आयोजन में अपनी प्रस्तुति देने राजघाट आए। उन्होंने दैनिक जागरण प्रतिनिधि से विशेष बातचीत में कहा कि गंगा और काशी ने जब-जब मुझे बुलाया दौड़ा चला आया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 17 Nov 2021 09:50 PM (IST)Updated: Wed, 17 Nov 2021 11:42 PM (IST)
गंगा और काशी ने जब-जब बुलाया दौड़ा चला आया, गंगा महोत्सव में बोले पद्मभूषण पं. विश्वमोहन भट्ट
राजघाट पर गंगा महोत्सव के दौरान भावपूर्ण मुद्रा में मोहन वीणा वादन करते पद्म भूषण पंडित विश्व मोहन भट्ट।

वाराणसी, सौरभ चंद्र पांडेय। मोहन वीणा के जनक, ग्रैमी अवार्ड और पद्मभूषण पं. विश्वमोहन भट्ट बुधवार को काशी में गंगा महोत्सव के आयोजन में अपनी प्रस्तुति देने राजघाट आए। उन्होंने दैनिक जागरण प्रतिनिधि से विशेष बातचीत में कहा कि गंगा और काशी ने जब-जब मुझे बुलाया, दौड़ा चला आया। उन्होंने कहा कि अब तो मैं 71 वर्ष का हो चुका हूं। काशी से मेरा संबंध वर्ष 1981 से है। पहली बार मैंने चार घंटे की प्रस्तुति मैंने नागरी नाटक मंडली में दी थी।

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उन्होंने कहा कि काशी का गंगा महोत्सव और संकटमोचन संगीत समारोह शास्त्रीय संगीत के संरक्षण का अच्छा विकल्प है। उन्होंने पं. किशन महाराज को याद करते हुए कहा कि उनके साथ कई आयोजनों में मैंने जुगलबंदी किया। उनसे साथ बिताए हुए पल आज भी चर्चा करते तरोताजा हो उठते हैं। उन्होंने कहा कि काशी जैसा कोई शहर दुनिया में नहीं है। अब तक मैंने 80 देशों में मंच सजाया है। लेकिन जो मजा गंगा के किनारे आता है। वह और कहीं नहीं। काशी की गंगा आरती तो बेहद अद्भुत है। उसे देखकर काशी छोड़ने का मन नहीं करता है।

गंगा महोत्सव के अनुभव को उन्होंने स्वर्गीक बताया। गुरुवार सुबह मैं बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ, श्रीसंकट मोचन का दर्शन, उसके बाद शाम को मां गंगा की आरती और नौका विहार के बाद काशी से विदा लूंगा। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार को शास्त्रीय गायन के संवर्धन के लिए साधुवाद दिया।

पद्मभूषण पं. विश्वमोहन भट्ट का ने गंगा महोत्‍सव के तहत बुधवार रात साढ़े आठ बजे अपनी प्रस्‍तुति दी। झलक पाते ही काशीवासियों ने हर-हर महादेव के उद्घोष से उनका अभिनंदन किया। मौका था गंगा महोत्सव का। राजघाट पर उन्होंने 'मोहन वीणा' से गंगा तट पर सुर गंगा बहाई। वीणा की तान छेड़ते ही शाम पांच बजे से टकटकी लगाए बैठे दर्शक आनंदित हो उठे। पहली निशा में पिता के साथ 'सात्विक वीणा' पर पुत्र सलिल भट्ट ने योग्य शिष्य होने का प्रमाण दिया। भाव पूर्ण प्रस्तुति के दौरान श्रोता अंत तक सांसे थामे वीणा के तारों का कंपन महसूसते रहे। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत कर्नाटक स्केल पर आधारित अपने बनाए 'राग विश्वरंजनी' से किया और राग मधुवंती व राग शिवरंजनी की प्रस्तुति दी। पिता-पुत्र की जुगलबंदी ने श्रोताओं का मन मोह लिया। तबले पर बनारस घराने के अभिषेक मिश्र ने वीणा के तारों के साथ तबले की थाप को बनाए रखा। पिता-पुत्र की जोड़ी ने राग के विविध आयाम को पेश किया। श्रोताओं के विशेष आग्रह पर उन्होंने ग्रैमी विजेता के धुनों को सुनाया। राग पहाड़ी से उन्होंने प्रस्तुति को विराम दिया।


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