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भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक फ्रैंक विलजैक ने बीएचयू के शोध का लिया सहारा

नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक फ्रैंक विलजैक ने अपनी खोज में महिला महाविद्यालय बीएचयू में वर्तमान में तैनात भौतिकी के शिक्षक के शोध का सहारा लिया और उसका जिक्र किया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 11:16 AM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 10:25 PM (IST)
भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक फ्रैंक विलजैक ने बीएचयू के शोध का लिया सहारा
भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक फ्रैंक विलजैक ने बीएचयू के शोध का लिया सहारा

वाराणसी, जेएनएन। दुनियाभर के साइंटिस्ट बेजोड़ काम कर नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं और नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित हो रहे हैं, लेकिन यह कहना कि भारतीय वैज्ञानिक या यहां की प्रतिभा विश्व फलक पर चमक बिखेरने में नाकाम हैं, न्यायोचित नहीं है। वर्ष 2019 के लिए नोबेल पुरस्कार विजेताओं के नाम की घोषणा की जा चुकी है। 10 दिसंबर को सभी पुरस्कृत किए जाएंगे। वर्ष 2004 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक फ्रैंक विलजैक ने अपनी खोज में महिला महाविद्यालय, बीएचयू में वर्तमान में तैनात भौतिकी के शिक्षक के शोध का सहारा लिया और उसका जिक्र भी किया। वैसे भी बीएचयू में तमाम ऐसे शोध होते रहते हैं, जो न केवल विज्ञान के नजरिए से महत्वपूर्ण हैं बल्कि जनोपयोगी भी हैं। प्रस्तुत है कुछ प्रमुख शोध कार्य पर आधारित मुहम्मद रईस की रिपार्ट....। 

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डार्क मैटर खोज के करीब पहुंच चुके हैं बीएचयू के विशेषज्ञ 

वैज्ञानिकों के सामने वर्तमान में सबसे बड़ा संकट डार्क मैटर को पहचानने का है। दुनिया का लगभग 25 फीसद पदार्थ डार्क मैटर के रूप में फैला हुआ है। अमेरिकी भौतिक शास्त्री व नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रैंक विलजैक व उनके साथी स्टीवन वेनबर्ग, रोबर्ट व हेलेन क्वीन आज से लगभग 40 साल पहले एक पदार्थ के होने का अनुमान लगाया था। उसका नाम दिया था 'एग्जियॉन'। तब से लेकर आज तक इस पदार्थ की खोज जारी है। इस खोज में महिला महाविद्यालय, बीएचयू में भौतिकी पढ़ा रहे असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अविजित कुमार गांगुली के नेतृत्व में शोध छात्र अंकुर चौबे, मनोज जायसवाल, प्रोफेसर पंकज जैन व डा. सुभायन मंडल की टीम पिछले कई सालों से लगी है। प्रो. विलजैक ने फिजिकल रिव्यू लेटर्स में हाल ही में प्रकाशित अपने शोध पत्र में डा. गांगुली के कार्यों की पुष्टि करते हुए प्रशंसा की है जो एग्जियान के साथ प्रकाश ऊर्जा के इंट्रैक्शन (परस्पर क्रिया) से जुड़ा है। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेज अंतरिक्ष से पृथ्वी तक आती हैं। प्रकाश के पोलराइजेशन (ध्रुवण) का गहन अध्ययन करने पर वह कितना मिल रहा है और उसे कितना होना चाहिए, का पता लगाया जा सकता है। दोनों का अंतर बताता है कि बीच में कहीं 'डार्क मैटर' हो सकते हैं। 

मेडिकल इमेजिंग तकनीक बनाई एडवांस 

बीएचयू में भौतिकी विज्ञान विभाग के शोध छात्रों की टीम ने प्रो. व्यंकटेश सिंह के नेतृत्व में प्लास्टिक बेस की बजाय सिरामिक फाइबर शीट का इस्तेमाल कर चार्ज पिक-अप पैनल बनाने में सफलता हासिल की है। लचीला होने के कारण इसे किसी भी आकार में ढाला जा सकता है। आकार के हिसाब से आरसीपी डिटेक्टर फिट किए जाने पर यह हर तरह के रेडियोएक्टिव सिग्नल पकडऩे में पूरी तरह सक्षम है। इस शोधकार्य को यूरोपियन जर्नल जे-आइएनएसटी (जर्नल ऑफ इंस्ट्रूमेंट) में प्रकाशित भी किया जा चुका है। बेलनाकार चार्ज पिक-अप पैनल व रेजिस्टिव प्लेट चैंबर (आरसीपी) डिटेक्टर शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाली सूक्ष्म गड़बडिय़ों की सटीक जानकारी देंगे। 

खत्म होगी सिग्नल लॉस की समस्या 

बीएचयू के शोधार्थी प्रो. व्यंकटेश के नेतृत्व में अमेरिका व ताहवान के वैज्ञानिकों संग मिलकर न्यूट्रिनो (भुतहा कण) के माध्यम से सूर्य की संरचना व उत्पत्ति के रहस्यों को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिक शोध के अनुसार सूर्य के कोर (केंद्र) से सतह तक आने में जहां फोटान (प्रकाश ऊर्जा) को करीब एक लाख वर्ष का समय लगता है, वहीं न्यूट्रिनो इतनी ही दूरी को मात्र 2.3 सेकेंड में तय कर लेता है। यह सीधी रेखा में चलता है और रास्ते में पडऩे वाली धातुओं के भीतर से बिना किसी प्रतिक्रिया के गुजर जाता है। संचार क्षेत्र में इससे न सिर्फ सिग्नल लॉस जैसी समस्या खत्म होगी, बल्कि डाटा भी सुरक्षित रहेगा। यह तकनीक सैटेलाइन फोन से भी कई गुना ज्यादा एडवांस साबित हो सकता है। न्यूट्रिनो का पता लगाने में प्रयुक्त रेजिस्टिव प्लेट चैंबर (आरपीसी) डिटेक्टर में प्रयोग होने वाले चार्ज पिकअप पैनल के स्वरुप में बीएचयू ने कई बदलाव किए हैं। 

हल्दी के औषधीय तत्व का पूर्ण उपयोग

माइक्रोबायोलाजी विभाग, बीएचयू के एसोसिएट प्रोफेसर डा. प्रद्योत प्रकाश के नेतृत्व में शोधछात्र आशीष कुमार सिंह ने हल्दी में पाए जाने वाले 'करकूमिन' नामक तत्व का अतिसूक्ष्म कण बना लिया है। इस महत्वपूर्ण खोज से अल्जाइमर, पार्किंसन व कैंसर जैसे असाध्य रोगों के निदान की दिशा में नई राहें खुल सकेंगी। संशलेषण की इस प्रक्रिया के पेटेंट प्रक्रिया चल रही है। इस शोधकार्य को फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोलाजी जर्नल में भी प्रकाशित किया जा चुका है। 

 

हड्डी व दंत प्रत्यारोपण आसान, मिला पेटेंट

दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय-बीएचयू व धातुकीय अभियंत्रिकी विभाग-आइआइटी की संयुक्त टीम ने कामर्शियल प्योरिटी (व्यवसायिक शुद्धता) टाइटेनियम पर अल्ट्रासोनिक शॉट पीनिंग विधि का प्रयोग किया था। इसमें सतह के कणों को मानव कोशिकाओं के बराबर तक छोटा कर दिया गया, जो बोन फार्मिंग सेल्स इंप्लांट सर्फेस यानी ओसियोइंटीग्रेशन के लिए एकदम उपयुक्त था। परीक्षण में पाया गया कि इंप्लांट के बाद टाइटेनियम से हड्डी के जुडऩे की जो प्रक्रिया करीब पांच से छह माह में पूरी होती थी, उसमें 50 फीसद तक की वृद्धि हुई। यानी अब एक से दो माह में ही हड्डी से इंप्लांट जुडऩे लगे। वहीं इस विधि से तैयार टाइटेनियम इंप्लांट का खर्च भी आधे से भी कम हो गया। दंत प्रत्यारोपण के अलावा हड्डी प्रत्यारोपण में भी इसके बहुत की सकारात्मक परिणाम मिले। 

उत्तर व दक्षिण भारत से जुड़ी हैं लक्षद्वीप की जड़ें

बीएचयू के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की टीम ने पहली बार लक्षद्वीप की आबादी का अनुवांशिक अध्ययन किया। यहां की पूरी जनसंख्या तीन मातृ और तीन पैतृक फाउंडर्स से आबाद हुई। शोध में पाया गया कि दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों से घुले-मिले होने के बाद भी यहां के निवासियों की मातृ वंशावली दक्षिण भारत व पितृ वंशावली उत्तर भारत से जुड़ी है। 

वसीयतनामे से हुई थी पुरस्कार की शुरूआत

प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार प्रतिवर्ष रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस, द स्वीडिश एकेडमी, द कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट, एवं द नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी की ओर से उन विशिष्ट लोगों अथवा संस्थाओं को प्रदान की जाती है जिन्होंने रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, साहित्य, शांति, एवं औषधि विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया हो। नोबेल पुरस्कारों की स्थापना अल्फ्रेड नोबेल के वसीयतनामे के मुताबिक वर्ष 1895 में हुई थी, जिसके मुताबिक नोबेल पुरस्कारों का प्रशासकीय कार्य नोबेल फाउंडेशन देखेगा। 

इन्हें आज मिलेगा नोबेल पुरस्कार 

चिकित्सा : अमेरिका के विलियम केलिन, ग्रेजग सेमेंजा और ब्रिटेन के पीटर रैटक्लिफ को संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार दिया जा रहा है। इन्होंने ऑक्सीजन की उपलब्धता समझने और उसके अनुकूल बनने की कोशिकाओं की क्षमता तलाशी। इससे कैंसर के इलाज के नए तरीके ढूंढनें में मदद मिलेगी।

रसायन : इसके लिए जॉन बी गुडएनफ, स्टैनली विटिंघम और अकीरा योशिनो को नोबेल दिया जा रहा है। तीनों ने मिलकर लिथियम आयन बैटरी विकसित की थी। इन बैटरियों का इस्तेमाल आज अंतरिक्ष से लेकर इलेक्ट्रिक गाडिय़ों व रोजमर्रा की चीजों में भी बड़े स्तर पर हो रहा है। 

भौतिक : कनाडा-अमेरिका के जेम्स पीबल्स, स्विट्जरलैंड के माइकल मेयर और डिडियर क्वेलोज को इस क्षेत्र का नोबेल दिया जाएगा। इन्होंने अपने काम के जरिए दुनिया को समझाया कि बिग बैंग के बाद ब्रह्मांड का विकास कैसे हुआ।

साहित्य : 2019 और 2018 के लिए साहित्य के नोबेल पुरस्कार की घोषणा एक साथ की गई थी। 2019 का पुरस्कार पीटर हैंडके को दिया जाएगा जो आस्ट्रियाई मूल के लेखक हैं। वहीं पीटर को भाषा में नवीनतम प्रयोगों के लिए ये पुरस्कार मिलेगा। जबकि लेखिका साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका निभाने वाली ओल्गा टोकारजुक को 2018 का साहित्य का नोबेल प्रदान किया जाएगा।  


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