देश के लिए वीर अब्दुल हमीद हुए शहीद, परिवार के लिए रसूलन बीबी ने दी कुर्बानी
परम वीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद ने देश के लिए तो रसूलन बीबी ने परिवार के लिए खुद को कुर्बान कर दिया।
गाजीपुर [दानिश] परम वीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद ने देश के लिए तो रसूलन बीबी ने परिवार के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। पति की शहादत के साथ उनकी दुनिया अंधेरी हो गई थी। महज 32 वर्ष की उम्र में पांच बच्चों के पालन-पोषण की बड़ी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ पड़ी। लेकिन गजब की हिम्मत व जज्बा दिखाया उन्होंने। वह तनिक भी विचलित नहीं हुईं। हिम्मत से काम लिया और सिलाई-कढ़ाई कर अपने बच्चों का पालन-पोषण कर अपने पैरों पर खड़ा किया।
दस सितंबर- 1965 को पाकिस्तान के साथ होने वाली जंग में वीर अब्दुल हमीद की शहादत के बाद इसकी सूचना मिलने पर रसूलन बीबी को काठ मार गया। उनकी तो दुनिया ही उजड़ गई। उनकी आंखों के सामने चार अबोध पुत्रों एवं एक पुत्री की परवरिश का सवाल खड़ा हो गया। समझ नहीं आ रहा था कि इतनी जिम्मेदारियों के बीच पहाड़ जैसी जिंदगी कैसे काटेंगी लेकिन कुछ ही देर में खुद को संभाल लिया और बच्चों को कलेजे से लगा कर उनकी परवरिश का जिम्मा उठाया। मायके वालों के साथ अन्य लोगों ने तरह-तरह की राय दी।
जीवन को नए सिरे से जीने की सलाह दी लेकिन रसूलन बीबी ने अपने पति की शहादत पर गर्व करते हुए उनकी विधवा बन कर जीने को तरजीह दी। सिलाई-कढ़ाई कर बच्चों की परवरिश करने लगीं। धीरे-धीरे बच्चे बड़े हो गए और सभी को उनके पैरों पर खड़ा करने में पूरा सहयोग किया। उनकी ही मेहनत का नतीजा था कि धामूपुर स्थित अपने पैतृक आवास के पास बड़ा सा पार्क का निर्माण करवाया जहां हर वर्ष शहादत दिवस के मौके पर दस सितंबर को बड़े कार्यक्रम का आयोजन होता है।
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