Move to Jagran APP

Varanasi आठ भारत रत्नों का शहर, देश के उच्चतम नागरिक सम्मान की 2 जनवरी को हुई थी स्थापना

कोई शहर बस उनका नहीं होता जो वहां पैदा होते हैं या अंतिम सांस लेते हैं। शहर उनका भी होता है जो उसे जीते हैं। इस लिहाज से वाराणसी आठ भारत रत्नों का शहर है। भारत रत्‍न की स्थापना 2 जनवरी 1954 को राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 01 Jan 2021 08:36 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jan 2021 03:33 PM (IST)
Varanasi आठ भारत रत्नों का शहर, देश के उच्चतम नागरिक सम्मान की 2 जनवरी को हुई थी स्थापना
वाराणसी आठ भारत रत्नों का शहर है।

वाराणसी, जेएनएन। कोई शहर बस उनका नहीं होता जो वहां पैदा होते हैं या अंतिम सांस लेते हैं। शहर उनका भी होता है जो उसे जीते हैं। इस लिहाज से वाराणसी आठ भारत रत्नों का शहर है। ये आठ काशी रत्न हैैं-डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डा. भगवान दास, लालबहादुर शास्त्री, पंडित रविशंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, सीएनआर राव, मदन मोहन मालवीय और भूपेन हजारिका। देश के उच्चतम नागरिक सम्मान भारत की स्थापना 2 जनवरी, 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की थी। इस मौके पर पेश है भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से नवाजे गए काशी के आठ भारत रत्नों की संक्षिप्त कहानी।

loksabha election banner

काशी के आठ भारत रत्न

डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन : स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुतनी ग्राम में हुआ था। उन्होंने वेल्लूर व मद्रास से शिक्षा प्राप्त की। युवावस्था में विवेकानंद, वीर सावरकर को पढ़ा और उनके विचारों को आत्मसात किया। आगे चलकर वेदों और उपनिषदों के गहन अध्येता बने और अपने लेखों और भाषणों से दुनिया को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। कई विश्वविद्यालयों के कुलपति, रूस में भारत के राजदूत भी रहे। बीएचयू में 1939 से लेकर 1948 तक कुलपति रहे। जीवन में करीब 40 वर्ष शिक्षक रहे राधाकृष्णन 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किए गए। मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार ने टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया, जो धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार पाने वाले वह प्रथम गैर-ईसाई थे। 17 अप्रैल 1975 को निधन हुआ। जयंती शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैैं।

डा. भगवान दास:  प्रमुख शिक्षाशास्त्री, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, दार्शनिक (थियोसोफी) एवं कई संस्थाओं के संस्थापक थे। 1955 में भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किए गए थे। बनारस में सेंट्रल ङ्क्षहदू कालेज की स्थापना में एनी बेसेंट की मदद की जो आगे चलकर काशी ङ्क्षहदू विश्वविद्यालय बना। काशी विद्यापीठ की स्थापना की और वहां के प्रमुख अध्यापक भी रहे।  और संस्कृत मे 30 से भी अधिक पुस्तकों का लेखन किया है। 18 सितंबर 1958 को निधन हुआ।

लालबहादुर शास्त्री: 2 अक्टूबर 1904 को पंडित दीन दयाल उपाध्याय (तत्कालीन मुगलसराय) नगर में जन्मे लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे। करीब 18 माह का उनका कार्यकाल कई मायनों में अद्वितीय है। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी। उनके शासनकाल में 1965 का भारत-पाक युद्ध हुआ। इस उन्होंने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था। उनके नेतृत्व में सारा देश एकजुट हो गया और पाकिस्तान की करारी शिकस्त हुई। तत्कालीन यूएसएसआर के ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए उसी वर्ष मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए गए।

पंडित रविशंकर:  विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्कृष्टता के सबसे बड़े उद्घोषक पंडित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को काशी में हुआ था। उन्हें विदेशों में बहुत अधिक प्रसिद्धि मिली। वह जब दस वर्ष के थे, संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू हुआ। कलाजगत में प्रवेश अपने विश्वविख्यात बड़े भाई पंडित उदय शंकर की तरह नर्तक के रूप में किया लेकिन जल्द सितार के होकर रह गए। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय लाखों शरणार्थियों की मदद के लिए कार्यक्रम किया। तीन ग्रैमी पुरस्कार जीते। अमेरिका के महानतम वायलिन वादक येहूदी मेन्युहिन, महान तबलावादक उत्साद अल्ला रक्खा खां और बीटल्स ग्रुप के जार्ज हैरिसन के साथ उनकी जुगलबंदी बेहद मशहूर हुई। सत्यजित राय की विख्यात अपू त्रयी, गुलजार की मीरा और रिचर्ड एंटीबरो की गांधी फिल्म का संगीत दिया। 1982 के दिल्ली एशियाड (एशियाई खेल समारोह) के स्वागत गीत को स्वर दिया। 1999 में भारत रत्न मिला। 11 दिसंबर 2012 को अमेरिका के सैन डिएगो में अंतिम सांस ली।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां : कहा जाए कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खां और शहनाई एक दूसरे की पहचान हैैं तो गलत नहीं होगा। 1947 में देश की आजादी की पूर्व संध्या पर जब लालकिले पर भारत का तिरंगा फहरा रहा था, बिस्मिल्लाह खां की शहनाई भी वहां से आजादी का संदेश बांट रही थी। तब से हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद उनका शहनाई वादन एक परंपरा बन गई। 21 मार्च, 1916 को बिहार के डुमरांव में जन्मे उस्ताद छह साल की उम्र में बनारस आए तो फिर यहीं के होकर रह गए। उन्हें उनके चाचा अली बक्श विलायतु ने संगीत की शिक्षा दी, जो काशी के विश्वनाथ मंदिर में अधिकृत शहनाई वादक थे। 21 अगस्त 2006 को काशी में ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 1969 में एशियाई संगीत सम्मेलन के रोस्टम पुरस्कार और 2001 में भारत रत्न सम्मान मिला।

सीएनआर राव: चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव का जन्म 30 जून, 1934 को बेंगलुरु में हुआ था। सहयोगियों में भारत का मिस्टर साइंस और डॉक्टर साइंस के नाम से मशहूर राव के बारे में कहा जाता है कि एक दिन रसायन का नोबेल पुरस्कार अवश्य मिलेगा। उन्होंने बीएचयू से एमएससी और आइआइटी खडग़पुर से पीएचडी की। महज 24 साल की आयु में पीएचडी करने वाले वह सबसे युवा वैज्ञानिकों में थे। सालिड स्टेट और मैटीरियल केमिस्ट्री के क्षेत्र में वह दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में माने जाते हैैं। 2014 में भारत रत्न से सम्मानित किए गए। सीवी रमन और अब्दुल कलाम के बाद इस पुरस्कार से सम्मानित वह तीसरे वैज्ञानिक हैैं।

महामना मदन मोहन मालवीय:  महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् और समाज सुधारक मदन मोहन मालवीय का जन्म प्रयागराज में 25 दिसंबर 1861 को हुआ था। इलाहाबाद हाई कोर्ट में अधिवक्ता थे और 1885 से 1907 के बीच तीन पत्रों हिंदुस्तान, इंडियन यूनियन, अभ्युदय का संपादन भी किया। 1909, 1918 में कांग्रेस अध्यक्ष रहे। तीन बार हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और 1915 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। सन 1906 ई. में इलाहाबाद के कुंभ के अवसर पर सनातन धर्म का विराट अधिवेशन कराया, जिसमें सनातन धर्म-संग्रह नामक एक बृहत ग्रंथ तैयार कराकर महासभा में उपस्थित किया। 2014 में मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा। 12 नवंबर 1946 को उनका निधन हो गया था।

भूपेन हजारिका:  असम के शदिया में 8 सितंबर 1926 को जन्मे भूपेन हजारिका को असम नहीं बल्कि पूरे संसार के लिए विश्व रत्न कहना श्रेष्ठ होगा। वह अपने गीत खुद लिखते, संगीतबद्ध करते और गाते थे। असमिया संस्कृति को विश्व मंच तक पहुंचाने वाले भूपेन बहुआयामी कलाकार और सच्चे अर्थों में मानवतावादी थे। शुरुआती पढ़ाई गुवाहाटी, तेजपुर में हुई। बीएचयू से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया। 1952 में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की। 10 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत लिखा और गाया। गंगा पर लिखे और गाए उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए। फिल्म रूदाली के गीत 'दिल हूं हूं करे के जरिए ङ्क्षहदी क्षेत्र के लोगों ने उन्हें जाना। उनकी चिरंजीवी आवाज में बिहू के गीत अमर हैैं। 1992 में दादा साहेब फाल्के और 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किए गए। पांच नवंबर 2011 को दुनिया को अलविदा कहा।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

- भारत रत्न 26 जनवरी को भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है

- इस पुरस्कार विजेता को प्रोटोकॉल में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, पूर्व राष्ट्रपति, उपप्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा स्पीकर, कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता के बाद जगह मिलती है

- प्रारंभ में इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं था, 1955 में इसे जोड़ा गया

- यह अनिवार्य नहीं है कि भारत रत्न सम्मान प्रतिवर्ष दिया जाएगा

- एक वर्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों को ही भारत रत्न दिया जा सकता है  

- इस सम्मान के साथ कोई धनराशि नहीं दी जाती

- इस पुरस्कार को कुछ समय (13 जुलाई, 1977 से 26 जनवरी, 1980) के लिए निलंबित कर दिया था  

- 2011 में खेलकूद के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि प्राप्त करने वाले खिलाडिय़ों को भी शामिल किया गया

राजीव सबसे युवा, कर्वे सबसे बुजुर्ग विजेता

- भारत रत्न से सम्मानित पहली भारतीय महिला इंदिरा गांधी थीं

- राजीव गांधी को सबसे कम उम्र में यह सम्मान मिला। उन्हेंं 47 साल की उम्र में मरणोपरांत सम्मानित किया गया

- डी.के. कर्वे सबसे अधिक उम्रदराज भारत रत्न थे। 100 साल की उम्र में नवाजे गए

- सुभाष चंद्र बोस को 1992 में मरणोपरांत सम्मान, लेकिन एक जनहित याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मरणोपरांत शब्द वापस लिया गया 

- भारत के पहले शिक्षा मंत्री अब्दुल कलाम आजाद का नाम प्रस्तावित किया गया तो उन्होंने मना कर दिया कि चयन समिति के सदस्यों को पुरस्कार नहीं मिलना चाहिए। 1992 में मरणोपरांत सम्मानित किए गए 

विदेशी भारत रत्न

- भारत रत्न देने के संबंध में कोई लिखित प्रावधान नहीं है कि यह केवल भारतीय नागरिकों को ही दिया जाएगा

- 1987 में विदेशी मूल की पहली शख्सियत खान अब्दुल गफ्फार खान को सम्मानित किया गया। 1990 में नेल्सन मंडेला नवाजे गए

देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान का महत्व

- भारत रत्न प्राप्त करने वाले व्यक्ति को वीवीआइपी का दर्जा

- इनकम टैक्स न भरने की छूट, संसद की बैठकों और सत्र में भाग ले सकते हैैं

- गणतंत्र व स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रमों में विशेष अतिथि के तौर पर भाग ले सकते हैं

- हवाई जहाज, ट्रेन या बस में नि:शुल्क यात्रा कर सकतें हैं

- किसी राज्य के भ्रमण पर जाते हैं तो राज्य अतिथि का दर्जा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.