पंडा समाज और गंगा आरती के लिए शुल्क का प्रावधान के नियम-अधिनियम की अज्ञानता में फंसा निगम प्रशासन
गंगा घाट पर पंडा समाज व गंगा आरती के लिए शुल्क का प्रावधान कर वाराणसी नगर निगम प्रशासन फंस गया है यह अफसरों के नियम-अधिनियम की अज्ञानता से हुआ है।
वाराणसी [विनोद पांडेय]। गंगा घाट पर पंडा समाज व गंगा आरती के लिए शुल्क का प्रावधान कर नगर निगम प्रशासन फंस गया है। यह अफसरों के नियम-अधिनियम की अज्ञानता से हुआ है। इस मामले में न तो मिनी सदन से और न ही महापौर मृदुला जायसवाल को विश्वास में लिया गया। इतना ही नहीं शासन से भी कोई अनुमति नहीं ली गई। आखिर किस नियम से उपविधि बनाई गई। किस अधिकार से उसे प्रकाशित कर दिया गया। यह बड़ा सवाल है जिस पर जिम्मेदार मौन हैं तो महापौर ने भी किनारा कर लिया है।
राजस्व प्रभारी की ओर से प्रकाशित उपविधि के आदेश को लेकर गुरुवार को जब मामला फंसता दिखा। प्रदेश के मंत्री डा. नीलकंठ तिवारी ने गहरी नाराजगी जाहिर की तो नगर आयुक्त गौरांग राठी ने वर्ष 1999 के एक शासनादेश का हवाला देते हुए मातहत अफसरों के किए अस्तित्वहीन आदेश का बचाव किया लेकिन यह कोई ठोस जवाब नहीं था क्योंकि नगर निगम नियम-अधिनियम किसी शासनादेश पर शुल्क निर्धारण की अनुमति नहीं देता है। नगर निगम अधिनियम को आधार बनाकर उपविधि बनाने के लिए बकायदा प्रारूप बने हैं जिसमें स्थानीय सरकार यानी नगर निगम सदन की अहम भूमिका होती है।
उपविधि बनाने का यह है नियम
नगर निगम प्रशासन शुल्क के लिए सदन के पटल पर प्रस्ताव रखता है जिस पर महापौर की अध्यक्षता में सदस्य चर्चा करते हैं। जनहित को ध्यान में रखते हुए जरूरी संशोधन कर प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास होता है तो शासन में भेजा जाता है जहां से स्वीकृति मिलने के बाद गजट के लिए प्रयागराज स्थित राजकीय मुद्रण प्रेस में मुद्रित होता है। इसके बाद उपविधि को जनापत्ति व सुझाव के लिए उसका गजट किया जाता है। गजट का प्रावधान भी कई स्तरीय होता है। दो लीडिंग न्यूज पेपर में प्रकाशन के साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा किया जाता है। इसके लिए नगर निगम मुख्यालय समेत सभी जोनों में स्टॉल लगाना होता है जिस पर जनता आपत्ति व सुझाव दे सकती है। इनको फिर सदन में लाकर चर्चा के बाद उपविधि के नियमों को अंतिम रूप देकर आदेश को लागू किया जाता है। फिलहाल, नगर निगम के अधिकारियों ने इस मामले में नियमों का अनुपालन नहीं किया।
प्रकाशित नियमावली अभी पारित नहीं
नगर निगम द्वारा घाटों पर स्थित सार्वजनिक जमीन को रेगुलेट करने के लिए एक ड्राफ्ट नियमावली बनाई है। उस नियमावली का प्रारूप संभवत: किसी द्वारा जारी किया गया है। इसमें अधिकारिक रूप से बताया जाता है कि यह नियमावली अभी किसी भी तरह अंतिम रूप से पारित नहीं हुई है ना ही लागू हुई है। इसमें जो भी प्रयोगकर्ता घाट के जिस भी स्थान का प्रयोग कर अपनी आजीविका के लिए कर रहे हैं उसे वहीं रेगुलेट करने में वरीयता दी जाएगी। इसमें किसी भी शुल्क का निर्धारण नहीं किया गया है। विशेष रूप से प्रतिदिन प्रयोग करने वाले नाविक, पंडा पुजारी, डोम आदि किसी भी श्रेणी के लिए धनराशि लगाने का अंतिम कोई निर्णय नहीं लिया गया है। अभी केवल यह सुझाव मात्र हैं और बहुत ही शुरुआती दौर में ड्राफ्ट मात्र है। सभी लोगों के सुझाव लेकर उसके बाद सभी पक्षों को देखते हुए इसका निर्णय लिया जाएगा।
नगर विकास विभाग तक पहुंचा मामला
नगर निगम प्रशासन की ओर से घाटों पर तीर्थ पुरोहित व गंगा आरती के लिए शुल्क नियमावली प्रकाशित करने का मामला नगर विकास विभाग तक पहुंच गया है। यूं समझें कि प्रदेश सरकार ने संज्ञान लिया है। इस बाबत एमएलसी शतरुद्र प्रकाश कहा कि शासन स्तर के वरिष्ठ अफसर ने उनको मैसेज कर स्पष्ट किया है कि इस प्रकार का कोई टैक्स वाराणसी नगर निगम में लागू नहीं हुआ है।