यूपी विधानसभा चुनाव 2022 : आजमगढ़ में सियासत की आंच तेज, सभी दस सीटों का समीकरण अलग-अलग
UP Vidhan Sabha Chunav 2022 आजमगढ़ में कुल विधानसभा सीटें की दस सीटें हैं और सभी का अलग-अलग समीकरण हैं। इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में नए समीकरण को ध्यान में रखकर राजनीति दलों की ओर से तैयारी की गई है। हर सीट पर अलग-अलग रणनीति भी बन रही हैं।
आजमगढ़, जागरण संवाददाता। सातवें चरण में चुनाव और सियासत 'सातवें आसमान पर। पूर्वांचल की राजनीति में अलग ही साख रखने वाले आजमगढ़ में इन दिनों ऐसा ही माहौल है। समाजवादियों का 'गढ़ कहे जाने वाले इस जिले में की सभी 10 सीटों पर आरक्षण और वोटों के समीकरण पर गौर करें तो पाएंगे कि यहां की धरती हर दल के लिए उर्वर साबित होती रही है। इन दिनों हर चट्टी-चौराहे पर चुनाव की ही चर्चा है। आजमगढ़ की सियासत की आंच भांपती राकेश श्रीवास्तव की रिपोर्ट...।
आजमगढ़ में कुल विधानसभा सीटें - 10
राजनीतिक दल------2012--------2017
भाजपा---------00------------01
सपा------------09------------05
बसपा----------01------------04
36,32,540 मतदाता हैैं आजमगढ़ जिले के सभी 10 विधानसभा क्षेत्रों में
54.12 फीसद मतदान हुआ था वर्ष 2012 में
56.09 फीसद मतदान हुआ था वर्ष 2017 में
प्रत्याशी घोषित करने में कांग्रेस आगे
कांग्रेस ने आजमगढ़ सदर से अपने जिलाध्यक्ष प्रवीण सिंह, मेंहनगर से महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष निर्मला भारती, सगड़ी से राना खातून, निजामाबाद से अनिल यादव को प्रत्याशी घोषित किया है, जबकि बसपा ने तीन सीटों पर प्रभारी प्रत्याशी घोषित किए हैं, जो अनंतिम सूची में हैं। भाजपा और सपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
बाजी पलट देने का माद्दा रखने वाले दिग्गज
- दुर्गा प्रसाद यादव (सपा)
- बलराम यादव (सपा)
- डा. बलिराम (बसपा)
- रमाकांत यादव (सपा)
- यशवंत सिंह (भाजपा)
आजमगढ़ सदर - 25 साल से रफ्तार भर रही साइकिल
कुल मतदाता - 3,75,021
क्षेत्र की विशेषताएं : दक्षिण मुखी देवी और बड़ा गणेश मंदिर, शिब्ली एकेडमी।
राजनीतिक इतिहास : यह क्षेत्र आजादी के बाद 1951 के पहले चुनाव का गवाह है। तब कांग्रेस से शिवराम राय 22,190 वोट पाकर पहले विधायक बने थे। उस समय इसकी पहचान सदर आजमगढ़ तहसील थी, जो बाद में आजमगढ़ सदर हो गया। दुर्गा प्रसाद यादव इस सीट से आठ बार नुमाइंदगी कर चुके हैं। 2017 में सपा के दुर्गा प्रसाद यादव 88,087 मत पाकर विजयी रहे। भाजपा के अखिलेश कुमार मिश्र गुड्डू को 61,625 मत मिले थे।
सामाजिक समीकरण : पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की संख्या अधिक। यादवों की धमक है। ब्राह्मïण, राजपूत, अनुसूचित जाति और व अल्पसंख्यक भी निर्णायक होते हैैं।
मौजूदा परिदृश्य : पिछले चुनाव में सपा के साथ रही कांग्रेस ने युवा नेता प्रवीण सिंह को उतारा है, तो बसपा ने सवर्ण पर ही बाजी लगाने के संकेत दिए हैं। सपा-भाजपा के पत्ते खुलने पर तस्वीर और साफ होगी।
दीदारगंज - सुखदेव राजभर की कर्मभूमि रहा यह क्षेत्र
कुल मतदाता - 3,41,579
क्षेत्र की विशेषता : अठरही माता के मंदिर से जनपद के लोगों की अटूट आस्था जुड़ी है।
राजनीतिक इतिहास : वर्ष 2012 में सरायमीर विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त होने के बाद दीदारगंज क्षेत्र का उदय हुआ। बसपा के कद्दावर नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. सुखदेव राजभर ने इसे अपनी कर्मभूमि बनाई थी। वर्ष 2012 में सपा के आदिल शेख जीते थे, जिन्हें 2017 में सुखदेव राजभर ने पटखनी दे दी।
सामाजिक समीकरण : पिछड़े वर्ग की बहुलता, लेकिन धमक राजभर मतदाताओं की। अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक व सवर्ण भी निर्णायक होते हैैं।
मौजूदा परिदृश्य : आदिल शेख यहां फिर से जमीन तैयार करने में जुटे हैैं, जबकि सुखदेव राजभर के बेटे कमलाकांत पिता की विरासत संभालने को सपा में जोर लगाए पड़े हैं। बसपा ने भूपेंद्र सिंह को फिलहाल प्रभारी प्रत्याशी घोषित किया है। वह 2012 में उलेमा कौंसिल से लड़े थे। भाजपा को इस सीट पर समीकरण साधने वाले अर्जुन की तलाश है।
मुबारकपुर - पिछले पांच चुनाव से बसपा का कब्जा
- कुल मतदाता - 3,17,233
क्षेत्र की विशेषताएं - यहां की रेशमी साडिय़ां पूरे देश में विशिष्ट पहचान रखती हैं।
राजनीतिक इतिहास - वर्ष 1962 में यह विधानसभा क्षेत्र में अस्तित्व में आया। यहां सीपीआइ के सुरजन राम इंडियन नेशनल कांग्रेस के विश्वनाथ को हराकर पहली बार विधायक बने थे।
सामाजिक समीकरण : पिछड़ा वर्ग बहुल। सवर्ण, अनुसूचित जाति व अल्पसंख्यक भी निर्णायक भूमिका निभाते हैैं।
मौजूदा परिदृश्य : बसपा के प्रभाव वाली इस सीट पर अबकी पेच फंसने के आसार हैं। बसपा से 2017 में दूसरी बार चुनाव जीते शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली पार्टी से अलग हो चुके हैं, तो दूसरी ओर यह सीट सपा के गठबंधन वाले एक दल के खाते में जाने की चर्चा है।
अतरौलिया - 1957 में अस्तित्व में आई थी यह सीट
कुल मतदाता : 3,59,276
क्षेत्र की विशेषता : प्रथम देव बहिरादेव का मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है। मान्यता है कि भगवान राम वन को निकले तो पहला पड़ाव इसी स्थान पर हुआ। इसीलिए इसे प्रथम देव कहा जाता है।
राजनीतिक इतिहास : आजादी के बाद वर्ष 1957 में यह विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। पहले चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के पद्माकर लाल ने 17,032 वोट पाकर कांग्रेस के बृज बिहारी को शिकस्त दी थी। वर्ष 2017 में सपा के संग्राम यादव 74,276 वोट पाकर यहां दूसरी बार विधायक बने, जबकि भाजपा के कन्हैया निषाद 71,809 वोट पाकर दूसरे स्थान पर थे। हालांकि संग्राम के पिता एवं सपा के कद्दावर नेता बलराम यादव यहां से इससे पहले पांच बार विधायक रह चुके हैं।
सामाजिक समीकरण : ब्राह्मïण मतदाताओं का प्रभाव। निषाद मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैैं।
मौजूदा परिदृश्य : भाजपा यहां जीत के लिए जोर लगाए है। वहीं, सपा भी अपने हाथ से इस सीट को जाने नहीं देना चाहती। बसपा भी इसे अपने पाले में लाना चाहती है।
गोपालपुर - यहां सपा का रहा वर्चस्व
कुल मतदाता : 3,35,970
क्षेत्र की विशेषता : सुंदरपुर स्थित नरोत्तम ब्रह्म बाबा के दरबार में प्रत्येक सोमवार को मेला लगता है।
राजनीतिक इतिहास : वर्ष 1957 में पहली बार विधानसभा-226 के नाम से चुनाव हुआ तो यहां से मुक्तिनाथ कांग्रेस के पहले विधायक बने थे। 1996 से 2017 तक हुए चुनाव में एक बार श्यामनारायण यादव बसपा से वर्ष 2007 में चुनाव जीते थे, जबकि शेष समय विधायकी सपा के ही हाथ में रही। वर्ष 2017 में नफीस अहमद विधायक बने हैं।
सामाजिक समीकरण : पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की बहुलता। अनुसूचित जाति, सवर्ण और मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक होते हैैं।
मौजूदा परिदृश्य : बसपा ने रमेश यादव को प्रभारी प्रत्याशी बनाकर लड़ाई में रोमांच जरूर पैदा कर दिया है। असली तस्वीर सपा और भाजपा के प्रत्याशियों की घोषणा के बाद ही स्पष्ट हो सकेगी।
सगड़ी - इलाके को विकास की दरकार
कुल मतदाता : 3,27,363
क्षेत्र की विशेषता : सरयू किनारे बसे इस विधानसभा क्षेत्र में विकास के नाम पर देखने-दिखाने को कुछ भी नहीं है।
राजनीतिक इतिहास : वर्ष 1951 में यहां पहली बार चुनाव हुआ। उस समय यह विधानसभा क्षेत्र सगड़ी ईस्ट के रूप में जाना जाता था। यहां कांग्रेस के बलदेव आलिया उर्फ सत्यानंद 4,969 वोट पाकर जीते थे।
सामाजिक समीकरण : कुर्मी मतदाताओं की बहुलता। जाति का समीकरण साध बसपा, सपा जीत हासिल करते रहे हैैं।
मौजूदा परिदृश्य : वर्ष 2017 में यहां से बसपा की बंदना सिंह चुनाव जीती थीं, जो अब भाजपा की हो चुकी हैं। इनसे पूर्व वर्ष 2012 में सपा के अभय नारायण पटेल, वर्ष 2007 में सपा के सर्वेश सिंह सीपू चुनाव जीते थे। यहां सीट को लेकर खींचतान चल रही है क्योंकि देवेंद्र सिंह पहले से भाजपा से सीट के दावेदार हैं।
निजामाबाद - कांग्रेस के चंद्रबली बने थे पहले विधायक
कुल मतदाता - 3,03,975
क्षेत्र की विशेषता : यह क्षेत्र ब्लैक पाटरी के लिए विश्व में विशेष पहचान रखता है।
राजनीतिक इतिहास : वर्ष 1957 में यहां पहली बार चुनाव हुआ तो कांग्रेस के चंद्रबली ब्रह्मचारी 10,553 वोट पाकर पहले विधायक बने थे।
सामाजिक समीकरण : पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम बहुल क्षेत्र। यादव मतदाताओं का अधिक प्रभाव।
मौजूदा परिदृश्य : वर्ष 2017 में सपा के आलमबदी बसपा के चंद्रदेव राम यादव को हराकर विधायक बने थे। आलमबदी लगातार दूसरी बार विधायक हुए हैं, हालांकि निजामाबाद की चौथी बार नुमाइंदगी कर रहे हैं। भाजपा यहां से किसी यादव चेहरे को उतारने की फिराक में है। ऐसा हुआ तो लड़ाई जरूर रोचक हो जाएगी।
फूलपुर-पवई - 151 में पहली विधायक बनीं आशा लता व्यास
कुल मतदाता - 3,04,955
क्षेत्र की विशेषता : यहां की लाल मिर्च को लाल सोने के रूप में जाना जाता है। आजीविका का बड़ा साधन खेती।
राजनीतिक इतिहास : वर्ष 1951 में यह फूलपुर साउथ विधानसभा था। यहां पहली बार कांग्रेस की आशा लता व्यास चुनी गईं थीं।
सामाजिक समीकरण : पिछड़ी जाति के मतदाताओं की बहुलता है। मुस्लिम और अनुसूचित जाति के मत भी निर्णायक होते हैैं।
मौजूदा परिदृश्य : 2017 में भाजपा के अरुणकांत यादव बसपा के अबुल कैस आजमी को हराकर विधायक बने। 2012 में सपा के श्यामबहादुर तो 2007 में सपा के अरुणकांत यादव विधायक चुने गए थे। यहां संगठन के कैडर पर जातीय समीकरण हावी दिखता है। अरुणकांत के पिता व पूर्व सांसद रमाकांत यादव की सपा से टिकट पर बातचीत की चर्चा है।
मेंहनगर - 1967 में गठित हुआ यह विस क्षेत्र
कुल मतदाता - 3,86,952
क्षेत्र की विशेषता : राजा दौलत खां के मकबरे के अवशेष जो पुरातत्व विभाग की देखरेख में हैैं। वर्तमान आजमगढ़ को दौलत खां के परिवार के आजम शाह ने बसाया था।
राजनीतिक इतिहास : मेंहनगर का अस्तित्व वर्ष 1967 में आया। पहली बार भारतीय जनसंघ से जैनू राम ने 15,885 वोट पाकर सीपीएम के छांगुर को हराया और विधायक चुने गए थे।
सामाजिक समीकरण : सवर्ण मतदाताओं की बहुलता है लेकिन सीट सुरक्षित है। मुस्लिम मतदाताओं का रुख निर्णायक साबित होता है।
मौजूदा परिदृश्य : 2017 में सपा के कल्पनाथ पासवान ने 69,036 वोट पाकर भाजपा समर्थित मंजू सरोज (63,625) को मात दी थी। वर्ष 2012 में सपा के ही बृजलाल सोनकर ने बसपा की विद्या चौधरी को हार का मुंह दिखाया था। वर्ष 2007 व 2002 के चुनाव में बसपा का इस सीट पर कब्जा रहा। इसी सीट से बसपा से चुनाव जीत चुकीं विद्या चौधरी अब सपा से टिकट मांग रही हैं।
लालगंज - भाजपा के सामने जीत की चुनौती
कुल मतदाता - 3,83,486
क्षेत्र की विशेषता : मां पाल्हमेश्वरी धाम शक्तिपीठ।
राजनीतिक इतिहास : वर्ष 1951 में यह विधानसभा क्षेत्र लालगंज नार्थ के नाम से जाना जाता था। 10,844 वोट पाकर निर्दल तेज बहादुर पहले विधायक बने थे।
सामाजिक समीकरण : सवर्ण मतदाताओं की बहुलता होने के बावजूद सीट सुरक्षित है। यहां राजपूत मतदाताओं के रुख से प्रत्याशियों की भाग्यरेखा बनती-बिगड़ती है।
मौजूदा परिदृश्य : वर्ष 2017 में बसपा के आजाद अरिमर्दन 72,715 वोट पाकर भी भाजपा के दरोगा सरोज से सिर्फ 2,227 वोट से जीत पाए थे। हालांकि यह सीट वर्ष 2012 में सपा के बेचई सरोज तो उससे पूर्व 2007 में सुखदेव राजभर के नाम रही। भाजपा इस सीट से किसी जमीनी नेता को उतारने की फिराक में है, ऐसे में लड़ाई किसी दल के लिए आसान नहीं होगी।