यूपी विधानसभा चुनाव 2022 : जौनपुर और सिंगरामऊ रियासत का राज परिवार पहले करता था राज और अब राजनीति
UP Chunav 2022 रियासतों का भारत में विलय का दौर मार्च 1948 में शुरू हुआ और सात चरणों का यह सिलसिला नवंबर 1956 में समाप्त हुआ। जौनपुर के राज परिवारों ने 1957 के विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेकर अपना सियासी सफर शुरू किया जो आज तक जारी है।

जौनपुर, दीपक उपाध्याय। जौनपुर की दो रियासतों का सियासत में प्रभावी हस्तक्षेप रहा। जौनपुर व सिंगरामऊ रियासत के राजा आजादी के पहले राज करते थे और आजादी के बाद राजनीति में सक्रिय रहे। राजनीति में इन दोनों घरानों का दबदबा रहा। खासतौर पर जौनपुर के राजा यादवेंद्र दत्त दुबे का राष्ट्रीय फलक पर नाम था। वह जनसंघ व भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से रहे। यादवेंद्र दत्त तीन बार विधायक तो दो बार सांसद चुने गए। सिंगरामऊ के राजा कुंवर श्रीपाल सिंह तीन बार विधायक चुने गए। इन घरानों की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भाजपा से नजदीकियां रहीं।
जौनपुर राजघराना राजनीति से दूर, सिंगरामऊ घराना सक्रिय
रियासतों का भारत में विलय का दौर मार्च, 1948 में शुरू हुआ और सात चरणों का यह सिलसिला नवंबर, 1956 में समाप्त हुआ। सबसे पहले जौनपुर के राज परिवारों ने 1957 के विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेकर अपना सियासी सफर शुरू किया जो आज तक जारी है। वर्तमान में जौनपुर राजघराना राजनीति से दूर हो गया तो सिंगरामऊ राजघराना की चौथी पीढ़ी आज भी सक्रिय है।
राजा जौनपुर यादवेंद्र दत्त दुबे
जौनपुर के पूर्व राजा यादवेंद्र दत्त दुबे का जन्म सात दिसंबर, 1918 को हुआ था। इन्होंने 1957 में पहली बार जनसंघ के टिकट पर जौनपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीता। उन्हें 34,502 मत मिले। उन्होंने कांग्रेस के भगवतीदीन तिवारी को 22,569 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। दोबारा जौनपुर सीट से 1962 के चुनाव में उनके सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता हरगोविंद सिंह थे। यादवेंद्र दत्त को 34,038 वोट मिले थे और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को 5,275 वोट से हराया। परिणाम रहा कि उन्हें विधानसभा में नेता विरोधी दल बनाया गया। उनकी बढ़ती ख्याति व लोकप्रियता देखते हुए जनसंघ के बड़े नेता पं.दीनदयाल उपाध्याय को 1963 के उपचुनाव में यहां से लडऩे के लिए भेजा गया था, जिसमें उनको हार मिली। वर्ष 1969 में जनसंघ का बड़ा नेता होने के कारण उन्हें बरसठी से चुनाव लडऩे भेज दिया गया, जहां उन्हें 21,559 वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी बीकेडी के मंजू राम को 17,713 मत प्राप्त हुए। उन्होंने 3,846 मतों से चुनाव जीत लिया। वह जौनपुर लोकसभा क्षेत्र से 1977 व 1989 में सांसद बने। उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभारी रहे। पुराने लोग बताते हैैं कि उनके सामने अटल बिहारी वाजपेयी भी सम्मान में बैठते नहीं थे। नौ सितंबर, 1999 को उनका निधन हो गया। इसके बाद से उनके इकलौते पुत्र कुंवर अवनींद्र दत्त दुबे की व राजघराने की सियासत से दूरी हो गई।
राजा सिंगरामऊ कुंवर श्रीपाल सिंह
कुंवर श्रीपाल सिंह ने 1957 में राजनीति में कदम रखते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर शाहगंज विधानसभा क्षेत्र चुनाव लड़ा। चुनाव में इन्हें 38,391 वोट मिले थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता लक्ष्मीशंकर यादव को मात्र 645 वोटों से हराकर कुंवर श्रीपाल ने जीत दर्ज की। इसके बाद 1962 का विधानसभा चुनाव आने पर इन्होंने जनसंघ के टिकट पर रारी विधानसभा क्षेत्र से भाग्य आजमाया। यहां इन्हें 17,337 वोट मिले। कुंवर श्रीपाल सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी रामलखन सिंह को 440 मतों से पराजित कर फिर जीत दर्ज की। इसके बाद इन्होंने 1974 का विधानसभा चुनाव प्रतापगढ़ के चांदा विधानसभा सीट से लड़ा। जनसंघ के टिकट पर विजय हासिल की। इसके बाद इनके पोते कुंवर जय सिंह बाबा ने सियासत में भाग्य आजमाया। इन्होंने भाजपा के टिकट पर 1996 में खुटहन, 2002 में सुल्तानपुर की लंभुआ सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा इनके प्रपौत्र कुंवर मृगेंद्र सिंह ने 2017 का विधानसभा चुनाव बदलापुर से लड़ा। टिकट न मिलने पर भाजपा से बगावत कर राष्ट्रीय लोकदल से चुनाव लड़े और पराजित हुए।
Edited By Saurabh Chakravarty