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धान के कटोरे में पक रही सियासी फसल, चंदौली में ठंड में राजनीतिक गर्माहट बढ़ने लगी

UP Vidhan Sabha Chunav 2022 चंदौली में विकास का मुद्दा तो बड़ा होगा ही जातिगत समीकरण भी असर डालेंगे। राजनीतिक दलों के संभावित उम्मीदवार इसे साधने की कोशिश में जुटे हुए हैं। चार विधानसभा सीटों पर सियासी समीकरण व मतदाताओं का रुख इस बार कौन सी नई पटकथा लिखेगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 05:48 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 05:48 PM (IST)
धान के कटोरे में पक रही सियासी फसल, चंदौली में ठंड में राजनीतिक गर्माहट बढ़ने लगी
UP Vidhan Sabha Chunav 2022 : चंदौली के चार विधानसभा सीटों पर सियासी समीकरण इस बार कुछ नया परिणाम देगा।

चंदौली, जागरण संवाददाता। विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद जनवरी की ठंड में भी सियासी गर्माहट बढऩे लगी है। प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार चंदौली में भाजपा पिछले पांच साल में कराए गए विकास कार्यों व सुशासन के नाम पर जनता के बीच जा रही तो विपक्ष महंगाई, भ्रष्टाचार व बेरोजगारी जैसे मुद्दे गिनाकर विकास के दावों को धता बताने की जुगत लगा रहा है। जिले की सभी चार विधानसभा सीटों पर सियासी समीकरण व मतदाताओं का रुख इस बार कौन सी नई पटकथा लिखेगा, यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा। इससे पहले आइए चलते हैं विजय सिंह जूनियर के साथ चंदौली के सियासी सफर पर...।

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चंदौली : कुल सीटें : चार

2012 2017

भाजपा 00 03

सपा 01 01

बसपा 01 00

कांग्रेस 00 00

अपना दल 00 00

निर्दल 02 00

चकिया (सु.) - भाजपा के लिए सीट बचाने की चुनौती

क्षेत्र की विशेषताएं : पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध। राजदरी-देवदरी जलप्रपात, औरवाटाड़, मूसाखाड़ जलप्रपात। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का पैतृक गांव भभौरा भी इसी विधानसभा क्षेत्र में है।

राजनीतिक इतिहास : इस क्षेत्र का राजनीतिक सफर वर्ष 1962 के आम चुनाव के साथ शुरू हुआ। चंदौली जिले से सामान्य तथा सुरक्षित दो सीटें थीं और दो विधायक चुने जाते थे। कांग्रेस से सामान्य सीट पर पं. कमलापति त्रिपाठी व सुरक्षित पर रामलखन निर्वाचित हुए थे। वर्ष 1989 में जनता दल से सत्य प्रकाश सोनकर विजयी हुए। वर्ष 1991 व 93 में भाजपा के राजेश कुमार बहेलिया विधायक बने। वर्ष 1996 में सपा से सत्यप्रकाश सोनकर फिर विधायक बने। 2002 में भाजपा के शिव तपस्या पासवान चुने गए। 2007 में बसपा के जितेंद्र कुमार जीते। 2012 में सपा की पूनम सोनकर ने बसपा के जितेंद्र कुमार को हराया था। 2017 में भाजपा के शारदा प्रसाद ने बसपा के जितेंद्र कुमार को शिकस्त दी थी।

सामाजिक समीकरण : सर्वाधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। यादव, ब्राह्मïण, राजपूत, मौर्या, वैश्य, मुस्लिम मत भी निर्णायक साबित होते हैैं।

मौजूदा परिदृश्य : भाजपा इस सीट पर कब्जा बरकरार रखना चाहती है तो सपा-बसपा ने भी पूरा जोर लगा रखा है। प्रत्याशियों की घोषणा के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।

कुल मतदाता : 3,67,582

सकलडीहा : अब तक नहीं खिला कमल

क्षेत्र की विशेषताएं : रामगढ़ में अघोराचार्य बाबा कीरानाम की जन्मस्थली व तपस्थली है। हेतिमपुर में हेतम खां का किला व भूल-भुलैया है।

राजनीतिक इतिहास : यह सीट 1995 में अस्तित्व में आई। इसके पूर्व यह सीट धानापुर विधानसभा के रूप में जानी जाती थी। अब तक यहां भाजपा को जीत नहीं मिल सकी है। 1995 में यहां से सपा के प्रभुनारायण सिंह यादव ने समता पार्टी के शिवकुमार सिंह को हराया था। 2001 में बसपा प्रत्याशी सुशील सिंह को महज 38 वोटों से हराकर दोबारा विधायक बने। 2007 में बसपा के सुशील सिंह ने लगभग 4,800 मतों से प्रभुनारायण को शिकस्त देकर जीत हासिल की। 2012 में निर्दल प्रत्याशी सुशील सिंह जीते थे। उन्हें 66,509 और प्रभुनारायण को 59,661 वोट मिले थे। 2017 में सपा ने तीसरी बार जीत हासिल की। प्रभुनारायण ने 79,875 मत हासिल किए तो भाजपा के सूर्यमुनि तिवारी को 64,906 मत ही मिले।

सामाजिक समीकरण : सबसे अधिक यादव मतदाता हैं। अनुसूचित जाति, ब्राह्मïण व राजपूत, मुस्लिम, राजभर, मौर्या मतदाता भी निर्णायक होते हैैं।

मौजूदा परिदृश्य

सपा के मौजूदा विधायक प्रभुनारायण यादव लगातार सक्रिय हैं। भाजपा भी जीत हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। यहां बसपा की भी नजर है। इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार हैैं।

कुल मतदाता : 3,32,614

सैयदराजा : बाहुबलियों में होती रही टक्कर

क्षेत्र की विशेषताएं : सैयदराजा को वीर बलिदानियों की धरती कहा जाता है। शहीद स्मारक व रेलवे स्टेशन स्वातंत्र्य संघर्ष के गवाह हैं।

राजनीतिक इतिहास : यह सीट बाहुबलियों की सियासी टक्कर की साक्षी रही है। 2012 में यहां प्रगतिशील मानव समाज पार्टी से माफिया बृजेश सिंह ने अहमदाबाद जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा। हालांकि निर्दल प्रत्याशी रहे मनोज कुमार सिंह डब्लू ने उन्हें पटखनी दी थी। 2017 में मुकाबला दिलचस्प रहा। भाजपा से सुशील सिंह तो बसपा से श्यामनारायण सिंह उर्फ विनीत सिंह और सपा से मनोज सिंह चुनावी मैदान में थे। विनीत ने रांची जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा। कड़े मुकाबले में सुशील सिंह ने जीत हासिल कर अपने चाचा बृजेश की हार का बदला लिया। सुशील को 78,869 व विनीत को 64,375 वोट मिले थे।

सामाजिक समीकरण : क्षत्रिय मतदाताओं की बहुलता। ब्राह्मïण, यादव, वैश्य और राजभर मतदाता भी निर्णायक होते हैैं।

मौजूदा परिदृश्य : भाजपा विधायक सुशील सिंह लगातार सक्रिय हैैं। सपा से टिकट के लिए मनोज सिंह 'डब्लूÓ का नाम चल रहा है। सपा-भाजपा में सीधी टक्कर होने के आसार हैैं।

कुल मतदाता : 3,31,666

मुगलसराय : यह सीट 1952 से ही अस्तित्व में

क्षेत्र की विशेषताएं : मुगलसराय जंक्शन व चंधासी कोयला मंडी।

राजनीतिक इतिहास : यह सीट 1952 से ही अस्तित्व में है। पहले विधायक कांग्रेस के उमाशंकर तिवारी चुने गए। 1974 व 1977 में गंजी प्रसाद ने विधायक बने। 1989 के चुनाव में निर्दल उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने तीसरी बार जीत दर्ज की। भाजपा के छब्बू पटेल ने 1991, 1993 व 1996 में लगातार तीन बार जीत दर्ज की। गंजी प्रसाद के पुत्र रामकिशुन यादव ने 2002 व 2007 में जीत हासिल की। 2012 में बसपा के बब्बन चौहान ने सपा को हराया था। बब्बन चौहान को 59,083 और बाबूलाल को 43,643 वोट मिले थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की साधना सिंह ने सपा के बाबूलाल यादव को हराया। साधना को कुल 87,401 और बालूलाल को 74,158 वोट मिले थे।

सामाजिक समीकरण : यादव और मुस्लिम मतदाताओं का बाहुल्य। क्षत्रिय, वैश्य, खटिक, ब्राह्मïण भी नर्णिायक होते रहे हैैं।

मौजूदा परिदृश्य : मौजूदा विधायक साधना सिंह ने सपा को कड़ी टक्कर देकर जीत हासिल की थी। इस बार यहां भाजपा को टक्कर देने के लिए सपा-बसपा व कांग्रेस भी ताल ठोक रही हैं।

कुल मतदाता - 3,90,758

(इनपुट : मनोज सिंह, विवेक दुबे, आशीष विद्यार्थी, प्रेमशंकर त्रिपाठी, अजीत चौरसिया)


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