बोले BHU के विशेषज्ञ - 'जब तक कोई बड़ा म्यूटेशन नहीं होगा, तब तक इंसान बर्ड फ्लू से है सुरक्षित'
बर्ड फ्लू का काेहराम मचा हुआ है और छह राज्यों में अलर्ट भी जारी कर दिया गया है जिससे आम जनों में डर की भावना व्याप्त हो गई है। यह डर ही है कि लोग चिकन और नान वेज खाने पर प्रतिबंध लगाए बैठे हैं जबकि वास्तविकता इससे परे है।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। देश में बर्ड फ्लू का काेहराम मचा हुआ है और छह राज्यों में तो अलर्ट भी जारी कर दिया गया है, जिससे आम जनों में डर की भावना व्याप्त हो गई है। यह डर ही है कि लोग चिकन और नान वेज खाने पर प्रतिबंध लगाए बैठे हैं, जबकि वास्तविकता इससे परे है। असल में देश भर में बर्ड फ्लू के वायरस से ज्यादा अफवाह फैल रही है।इस पर चिंता व्यक्त करते हुए बीएचयू की पक्षी विज्ञानी प्रो. चंदना हलधर का कहना है कि बर्ड फ्लू वायरस का संक्रमण सबसे ज्यादा केरल में फैला है और वहीं पर मौत की पुष्टि भी हुई है।
वहीं इसके सैंपल की जांच भारत में केवल दो ही जगह बंगलुरु और भोपाल में होती हैं। ऐसे में कहीं भी जब कोई पक्षी चाहे कौवा या कबूतर मरते हैं तो वायरस का अफवाह फैला कर लोगों को डराया जाता है, जबकि सैंपल की जांच तक नहीं होती है। प्रो. हलधर बतातीं हैं कि ठंड और भीषण गर्मी दोनों ही मामले में पक्षियों की मौतें होतीं हैं। यह एक सामान्य सी घटना है, इस सीजन में इसे सनसनी की तरह से नहीं लेना चाहिए।
मसलन बत्तख, कुक्कुट और मुर्गे इस संक्रमण के सबसे अधिक शिकार होते हैं, बाकी के पक्षियों पर इसका असर काफी देर से पता चलता है। बर्ड फ्लू में सबसे खास बात यह कि बाहर से प्रवास कर आने वाली पक्षियों से ही इस वायरस का जहर सबसे ज्यादा फैलता है। दूसरे देशों से कई प्रकार की विदेशी पक्षियां बनारस प प्रयागराज समेत कई शहरों में प्रवास करने आती हैं, जो बर्ड फ्लू की सुपर स्प्रेडर साबित हो रहीं हैं। प्रो. चंदना हलधर ने कहा कि बिना सैंपल टेस्ट के अफवाह उड़़ाना गलत है। यदि इतना ही खौफ होता तो विश्व स्वास्थ्य संगठन तत्काल एंडेमिक स्थानिक महामारी घोषित कर देता।
मास कल्टिंग के द्वारा उबर सकते हैं इस संकट से
यदि किसी क्षेत्र या मुर्गी पोल्ट्री में बर्ड फ्लू का पता चले तो सरकार मास कल्टिंग के द्वारा सभी पक्षियों को तत्काल खत्म कर सकती है। इसमें पक्षियों के गर्दन मरोड़कर या अन्य विधि से मार दिया जाता है और उसके बाद उन्हें कहीं गड्ढे आदि में दफना कर नष्ट करा दिया जाता है। प्रो. हलधर के मुताबिक संक्रमण के साढ़े तीन से चार घंटे में ही पक्षी मर जाते हैं, इसलिए वायरस से बचने के लिए पक्षी गृह में साफ-सफाई व सैनिटाइजेशन कराए। इससे व्यक्ति को खांसी-बुखार और निमानिया आदि की तरह से स्वास्थ्य खराब हो सकता है।
इंसान पर बर्ड फ्लू के अटैक का मामला दुर्लभ
आइएमएस-बीएचयू के सिनियर वायरोलाजिस्ट प्रो. सुनीत सिंह का कहना है कि बर्ड फ्लू वायरस का संक्रमण इंसानों में बहुत कम ही देखा गया है। यह पक्षियों से पक्षियों में ही ज्यादा फैलता है। यह तब तक इंसानों के लिए खतरा नहीं होता है जब तक कि वायरस में कोई बड़ा म्यूटेशन या बदलाव न हो जाए। अभी तक कोई बड़ा म्यूटेशन इसमें नहीं देखा गया है। उन्होंने बताया कि यदि व्यक्ति संक्रमण का शिकार हो भी जाए तो कोरोना वायरस की तरह से तेजी से प्रसार नहीं करता। प्रो. सिंह के अनुसार बर्ड फ्लू दो प्रकार के होते हैं, हाई पैथोजेनिक इंफ्लुएंजा वायरस और लो पैथोजेनिक इंफ्लुएंजा। हाई पैथोजेनिक संक्रमण में पक्षियों की मृत्युदर बढ़ जाती है, जबकि लो पैथोजेनिक इंफ्लुएंजा में पक्षियों में पंख टूटने लगते हैं या बीमार हो जाते हैं। इसलिए जो भी पक्षी बीमार दिखे उनकी तत्काल डायग्नोसिस जरूरी है।